भूकंप : जर्जर स्कूलों के हवाले बच्चे
एक बार फिर सैकड़ों बच्चों को प्राणों से हाथ धोना पड़ा। 12 मई की दोपहर चीन के सिचुआन प्रांत के दुजिआंग्यान नगर में जुयुआन मिडिल स्कूल की तीन मंजिली इमारत भूकंप के झटके न झेल सकी, ताश के महल की तरह ढह...
एक बार फिर सैकड़ों बच्चों को प्राणों से हाथ धोना पड़ा। 12 मई की दोपहर चीन के सिचुआन प्रांत के दुजिआंग्यान नगर में जुयुआन मिडिल स्कूल की तीन मंजिली इमारत भूकंप के झटके न झेल सकी, ताश के महल की तरह ढह गई और बच्चों के प्राण हर ले गई। इसी प्रकार सिचुआन प्रांत के पांच अन्य स्कूलों के भवन भी ध्वस्त हो गए-ाान-माल के नुकसान के विवरण प्रतिदिन आ रहे हैं। हाल के वर्षो में तुर्किमेनिस्तान (1गुजरात (भारत-2001), अल्जीरिया (2003), मोरक्को (2004) और मुजफ्फराबाद (पाकिस्तान-2005) में आए भूकंप में हाारों बच्चे बेमौत मार गए। इनका दोष मात्र इतना था कि जिन विद्यालयों में ये पढ़ रहे थे, उनके भवन भूकंप रोधी नहीं थे। भूकंप कब आएगा, कितने परिमाण का होगा यह पूर्वानुमान लगा पाना तो अभी संभव नहीं हुआ है, पर भूकंपविज्ञान ने इतनी उन्नति अवश्य कर ली है कि कौन क्षेत्र भूकंप के लिए कितने आपद हैं, इनकी पहचान हो चुकी है। हमार हिमालयी क्षेत्र सर्वाधिक आपद क्षेत्रों में आते हैं। वहां भारतीय प्लेट पांच से.मी. प्रतिवर्ष की दर से तिब्बती प्लेट के अंदर जा रही है। इसी चलायमान भारतीय प्लेट के स्थिरप्रज्ञय तिब्बती प्लेट से टकराने से गगनचुंबी हिमालय पर्वत श्रेणी का जन्म हुआ। इसी कारण इस क्षेत्र में आज भी भयानक भूकंप आते हैं। पूर्व में आए भूकंपों के विवरण को आधार मानकर भूकंप सुोद्यता (वलनरबिलिटी) के मानचित्र तैयार किए जाते हैं। सर्वाधिक परिणाम के भूकंप के लिए आशंकित क्षेत्र को जोन 5 में रखा जाता है। यदि उत्तराखंड का उदाहरण लें तो बागेश्वर व चमोली जनपद शतप्रतिशत इस जोन में आते हैं। इनके अतिरिक्त रुद्रप्रयाग का 18.3 प्रतिशत, अल्मोड़ा का 18 और उत्तरकाशी का 17 प्रतिशत क्षेत्र भी इस जोन में आता है। चम्पावत, हरिद्वार, नैनीताल, उधमसिंहनगर एवं देहरादून जनपद जोन 4 में आते हैं। इसके अतिरिक्त गढ़वाल का 17 प्रतिशत, टेहरी गढ़वाल का 16.8 प्रतिशत, अल्मोड़ा का 82 प्रतिशत क्षेत्र और उत्तरकाशी का 83 प्रतिशत जोन 4 में आता है। एक सव्रेक्षण के अनुसार उत्तराखंड के13 जनपदों के ग्रामीण क्षेत्रों के प्राइमरी, अपर प्राइमरी, सेकेन्ड्री और हायर सेकेन्ड्री स्तर के 20,000 से अधिक स्कूल हैं। यदि इनमें शहरी क्षेत्रों के स्कूल भी जोड़ दिए जाएं तो यह संख्या 23,000 के ऊपर चली जाती है। जोन 5 के बागेश्वर और चमोली के ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में ही 2350 स्कूल हैं। इनके अतिरिक्त पॉलीटेकनिक कॉलेजों की संख्या भी कम नहीं है। प्रतिदिन हाारों की संख्या में इन शिक्षण संस्थानों में छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं। अमेरिकी भूकंप विज्ञानी रोगर बिलहम के अनुसार इस समय केन्द्रीय कुमाऊं बड़े भूकंप के लिए सर्वाधिक आपद क्षेत्र है। दुर्भाग्यवश उत्तराखंड का यह क्षेत्र घनी आबादी वाला क्षेत्र है।ड्ढr भारत भूवैज्ञानिक सव्रेक्षण (भाभूस) के भूकंप विज्ञानी समय-समय पर इन क्षेत्रों का सव्रेक्षण करते रहते हैं। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कार्यक्रम के निर्देशों के बावजूद इन क्षेत्रों (विशेषकर जोन 5) में अभी भी या तो पुराने ‘मड प्लास्टर’ से बने स्कूल भवन हैं या घटिया दज्रे के कंक्रीट से बनाए गए भवन हैं। जानेमाने भूकंपविद प्रभास पांडे के अनुसार ये जीर्णशीर्ण भवन या उससे अधिक तीव्रता के भूकंप के झटके को नहीं झले सकते। यही हाल लगभग सार हिमालयी क्षेत्र का है। जरा सोचिए कितने लाखों बच्चों का जीवन हमने उनके भाग्य के भरोसे छोड़ दिया हैं।ड्ढr फ्रांस में स्थिति 30 देशों के संघ, आर्गेनाक्षेशन फार इकोनौमिक कोपरशन एंड डेवेलेपमेन्ट (ओपीईडी) ने सदस्य देशों के स्कूल भवनों में भूकंप से कुचल कर मार जाने से बचाने के लिए पुराने भवनों को मजबूत (रट्रोफिटिंग) कर भूकंप रोधी बनाया, आवश्यकतानुसार नए भूकंप रोधी भवन निर्मित किए। जो रट्रोफिटिंग के हथौड़े नहीं बर्दाश्त कर सकते थे उनके स्थान पर लकड़ी या अन्य सामान का प्रयोग कर हल्के, सुरक्षित भवन बना लिए। अमेरिकी पत्रकार एंड्रय़ू रवकिन के अनुसार पुराने भवन की रट्रोफिटिंग में पांच प्रतिशत अतिरिक्त लागत आती है। कैलिफोर्निया और जापान में कहीं अधिक भूकंप आने के बावजूद स्कूल भवनों के ढहने या बच्चों के मार जाने के समाचार नहीं आते। इस बात का महत्व समझते हुए पड़ोसी राज्य नेपाल के गैर सरकारी संगठनों ने एक मुहिम छेड़ कर सभी स्कूल भवनों को भूकंप रोधी बना लिया।ड्ढr ओपीईडी ने भूकंप आपदा क्षेत्रों के लिए भवन निर्माण के लिए तकनीकी मार्गदर्शन से लेकर बच्चों एवं शिक्षकों को भूकंप के खतरों के प्रति जागरूक रहने तक के निर्देश बनाए हैं। पैसे से अधिक इस कार्य के लिए राजनीतिक इच्छा शक्ित, निष्ठा एवं ईमानदारी की जरूरत है। क्या हमार बच्चे हिमालय के जर्जर हो चुके स्कूल भवनों में सुरक्षित हैं? इस प्रश्न का उत्तर तो शायद समय एवं सरकारं ही दे पाएंगे!ं