फोटो गैलरी

Hindi News धान पर सियासत

धान पर सियासत

धान के समर्थन मूल्य में 105 रुपए प्रति कुंतल की वृद्धि के बावजूद बबाल खड़ा होना स्वाभाविक है। बढ़ती महंगाई से भयभीत संप्रग सरकार ने कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की सिफारिश 1000 रुपए प्रति कुंतल, को...

 धान पर सियासत
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
ऐप पर पढ़ें

धान के समर्थन मूल्य में 105 रुपए प्रति कुंतल की वृद्धि के बावजूद बबाल खड़ा होना स्वाभाविक है। बढ़ती महंगाई से भयभीत संप्रग सरकार ने कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की सिफारिश 1000 रुपए प्रति कुंतल, को दरकिनार कर कीमत 850 रुपए तय की है। विरोध की आशंका भांप कर ही प्रधानमंत्री ने घोषित मूल्य को तदर्थ बताया और अन्तिम निर्णय के लिए मामला अपनी आर्थिक सलाहकार परिषद को सौंप दिया है। ऐसे में जब तक परिषद की सिफारिश सामने नहीं आती तब तक धान को लेकर राजनैतिक गर्मा-गर्मी चलती रहेगी। धान उत्पादक किसान उत्तर से दक्षिण भारत तक फैले हैं और इस वर्ष मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान जसे भाजपा शासित राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों को देखकर धान के समर्थन मूल्य पर किसानों को जोड़ने-तोड़ने की कोशिश होती रहेगी। कृषि मूल्य एवं लागत आयोग एक स्वायत्तशासी संगठन है, जिसका गठन 1में संसद की सहमति से किया गया था। किसी भी फसल की लागत, मांग व आपूर्ति की स्थिति, अन्य फसलों का समतुल्य मूल्य तथा विचाराधीन फसल के अंतरराष्ट्रीय भाव को ध्यान में रखकर ही न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाता है। अब तक एक बार को छोड़कर, सदैव आयोग की सिफारिश के अनुसार या कुछ बढ़ाकर ही सरकार कीमत घोषित करती आई है। जब महंगाई सिर चढ़कर नाच रही हो तब किसान की लागत बढ़ना लाजिमी है। गेहूँ का समर्थन मूल्य इस बार एक हाार रुपए रहा तथा दुनिया की मंडी में चावल की कीमत सरकार द्वारा घोषित मूल्य से लगभग दो गुना है। ऐसे में सीएसीपी की सिफारिश की अनदेखी करना सरकार को भारी पड़ सकता है। इस मुद्दे पर भाजपा ने बाहें चढ़ा ली हैं, वामदल भी नाखुश हैं। अच्छा हो सरकार सीएसीपी की मूल सिफारिश स्वीकार कर ले। पेट्रोलियम पदार्थो, उर्वरक व सार्वजनिक वितरण प्रणाली की मदों पर सरकार सब्सिडी का बोझ निरंतर बढ़ता जा रहा है। थोक मूल्य सूचकांक में चावल का ‘वेट’ 2.45 प्रतिशत है जो डीाल (2.02 प्रतिशत) से भी अधिक है। ऐसे में धान का समर्थन मूल्य बढ़ाने से महंगाई के बेकाबू हो जाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। क्या समर्थन मूल्य बांधकर क्या सरकार करोड़ों किसानों को नाराज करने का खतरा मोल ले सकती है? यह मनमोहन सिंह की कठिन परीक्षा की घड़ी है।ड्ढr

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें