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बीस गुना बढ़ चुका है प्रति मतदाता चुनाव खर्च

देश में चुनाव दर चुनाव मतदाताओं और उम्मीदवारों की संख्या में बढो़तरी होने के साथ ही चुनाव पर होने वाले सरकारी खर्च में भी तेजी से वृद्धि हुयी है। यह 60 पैसे से बढ़कर 12 रुपये प्रति मतदाता तक पहुंच...

बीस गुना बढ़ चुका है प्रति मतदाता चुनाव खर्च
एजेंसीTue, 11 Mar 2014 03:43 PM
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देश में चुनाव दर चुनाव मतदाताओं और उम्मीदवारों की संख्या में बढो़तरी होने के साथ ही चुनाव पर होने वाले सरकारी खर्च में भी तेजी से वृद्धि हुयी है। यह 60 पैसे से बढ़कर 12 रुपये प्रति मतदाता तक पहुंच गया है।
 
सरकारी आंकड़ों के अनुसार 1951-52 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में प्रति मतदाता केवल साठ पैसे खर्च कर चुनाव सम्पन्न करा लिए गए थे, जो 2009 के आम चुनाव में बढ़कर बारह रुपये हो गया था। इस तरह पहली लोकसभा से वर्ष 2009 में हुयी पंद्रहवीं लोकसभा चुनाव में सरकारी खर्च प्रति मतदाता बीस गुना बढ़ गया। इस दौरान तकनीक से लेकर अन्य क्षेत्रों में भारी बदलाव भी हुए। हरेक चुनाव में कुछ न कुछ नया करने का भी प्रयोग हुआ।
 
यदि कुल खर्च के रूप में देखा जाये तो 1951-52 के आम चुनाव के दौरान 10.45 करोड़ खर्च किये गए थे जो 2009 के चुनाव में बढ़कर 846.67 करोड़ रुपये हो गया था। वर्ष 2004 का लोकसभा चुनाव सरकारी खर्च के हिसाब से सबसे महंगा साबित हुआ था। इस चुनाव पर कुल 1114 करोड़ रुपये खर्च किये गए थे।
 
वर्ष 2004 के आम चुनाव के दौरान प्रति मतदाता सबसे अधिक खर्च किया गया। इस में सरकार ने प्रति मतदाता 17 रुपये खर्च किये जो 1999 के चुनाव की तुलना में 17.53 प्रतिशत अधिक है। जबकि इस दौरान मतदान केन्द्रों की संख्या में 11.26 प्रतिशत की कमी हुई थी।
 
पहले छह आम चुनावों के दौरान प्रति मतदाता सरकारी खर्च एक रुपये से भी कम था। लेकिन इसके बाद चुनाव खर्चों में काफी वृद्धि हुई। इस दौरान महंगाई में वृद्धि और रुपये के अवमूल्यन के कारण भी चुनाव खर्च तेजी से बढा़।
 
इस अवधि में अनेक नयी पार्टियों का उदय हुआ तथा अधिक निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़ने लगे। इसके साथ ही मतदाता जागरुकता अभियान, मतदाता पर्ची वितरण व्यवस्था शुरु किया गया। 2014 के चुनाव में वोटर वेरीफाइड पेपर आडिट ट्रेल [वीवीपीएटी] का पहली बार प्रयोग किया जायेगा, जिससे चुनाव खर्च बढ़ भी सकता है। लेकिन यह लोकतंत्र के लिए जरुरी है।

1952 के चुनाव में कुल 10.45 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। उस समय कुल 17 करोड़ 32 लाख 12 हजार 343 मतदाता थे और 1,96,084 मतदान केन्द्र बनाये थे। 1957 के चुनाव में लगभग दो करोड़ मतदाता बढ़ गए इसके बावजूद चुनाव खर्च घटकर 5.9 करोड़ रुपये हुआ।
 
1962 से लगातार चुनाव खर्च लगातार बढता गया तथा 1984-85 में 81.51 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। वर्ष 1989 में चुनाव खर्च लगभग दो गुना बढ़कर 154.22 करोड़ रुपये हो गया था। 1991-92 में 359.1 करोड़ रुपये, 1996 में 597.34 करोड़ रुपये, 1998 में 666.22 करोड़ रुपये और 1999 में 947.68 करोड़ रुपये केन्द्र सरकार ने खर्च किये थे।

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