बैंक हुए आम, बना नया राष्ट्र
हमारे देश के स्वातंत्र्योत्तर इतिहास में 1960-70 के दशक बेहद महत्वपूर्ण हैं। इन वर्षों के दौरान केंद्र पर सत्तासीन कांग्रेस सरकार ने न केवल बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया बल्कि इसी दौरान पड़ोस में...
हमारे देश के स्वातंत्र्योत्तर इतिहास में 1960-70 के दशक बेहद महत्वपूर्ण हैं। इन वर्षों के दौरान केंद्र पर सत्तासीन कांग्रेस सरकार ने न केवल बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया बल्कि इसी दौरान पड़ोस में बांग्लादेश भी अस्तित्व में आया था, जिसके कारण उपमहाद्वीप में बड़े भू-राजनीतिक परिवर्तन हुए थे। गौरतलब यह है कि इन वर्षों में कई बड़े फैसलों के पीछे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं। यहां प्रस्तुत है ऐसे ही कुछ मुद्दों की पहली कड़ी।
इंदिरा गांधी
आजादी के बाद भारत में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में तीन आम चुनावों (वर्ष 1951-52, 1957 और 1962) में जीत हासिल की। इंदिरा गांधी वर्ष 1938 में ही कांग्रेस में औपचारिक रूप से शामिल हो गई थीं। वर्ष 1947 से 1964 तक उन्होंने पिता के साथ काम किया और राजनीति की बारीकियां सीखीं। वर्ष 1962 में चीन से हुए युद्ध में भारत को शिकस्त झेलनी पड़ी और इस गम की वजह से नेहरू बीमार रहने लगे। इस बीमारी के दौरान ही 27 मई 1964 को नेहरू की हृदयाघात से मौत हो गई। पिता की मौत के बाद इंदिरा के सामने प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव रखा गया, लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया। नेहरू की नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए लाल बहादुर शास्त्री को देश का अगला प्रधानमंत्री बनाया गया। इसी साल उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया और वह शास्त्री मंत्रिमंडल में सूचना और प्रसारण मंत्री बनीं। 11 जनवरी, 1966 को ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद 24 जनवरी, 1966 को इंदिरा गांधी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। इंदिरा का प्रधानमंत्री बनना देश और चुनाव के इतिहास के लिए काफी महत्वपूर्ण था। इंदिरा के प्रधानमंत्री बनने के साथ ही कांग्रेस दो फाड़ हो गई। समाजवादी विचारधारा वाले गुट का इंदिरा और परंपरावादी विचारधारा वाले गुट का मोरारजी देसाई नेतृत्व कर रहे थे। कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान का असर वर्ष 1967 में हुए लोकसभा चुनावों पर साफ नजर आया। इस चुनाव में कांग्रेस को 60 सीटों को नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन इसके बाद भी 545 में से कांग्रेस ने 297 सीट जीतीं। इंदिरा ने मोरारजी को उप-प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री बनाकर शांत किया।
बांग्लादेश का उदय
इंदिरा गांधी को पांचवें आम चुनाव में जीते कुछ ही महीने हुए थे कि पाकिस्तान ने भारत के विरुद्ध हमला बोल दिया। पाकिस्तान ने 3 दिसंबर 1971 को भारत के 11 हवाई अड्डों पर हवाई हमला किया। 13 दिन चली लड़ाई में भारत की जीत हुई। इस जीत ने भारतीय उपमहाद्वीप का इतिहास ही नहीं भूगोल भी बदल दिया। दुनिया के मानचित्र पर एक नए देश बांग्लादेश का उदय हुआ। अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन की धमकी की परवाह न करते हुए प्रधानमंत्री इंदिरा ने पूर्वी पाकिस्तान की मदद का निर्णय लिया और एक इतिहास रच दिया। दरअसल, पाकिस्तानी सेना पूर्वी पाकिस्तान में शेख मुजीब के नेतृत्व में उभरे जन आंदोलन पर कहर ढा रही थी। इसका सबसे अधिक असर भारत पर पड़ रहा था। पूर्वी पाकिस्तान के लाखों शरणार्थी भारत आ रहे थे। इस सबके बीच इंदिरा ने कार्रवाई शुरू की और वह अंत तक यही कहती रहीं कि यह आम लोगों की जीत है। भारत ने बांग्लादेश को मुक्त कराने की कार्रवाई तेजी से की। हजार साल तक भारत से जंग लड़ने का ऐलान कर चुके पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को शिमला समझौते के लिए झुकना पड़ा। इसके अलावा, पाकिस्तान सीमा विवाद को भी शांतिपूर्वक हल करने को राजी हो गया। पाकिस्तान के 93 हजार बंदी सैनिक भारत की ताकत के गवाह थे। पूरे देश में हर ओर इंदिरा की जय जयकार हो रही थी। इस जीत के बाद इंदिरा की ख्याति और प्रतिष्ठा काफी बढ़ गई। विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने उनकी तुलना दुर्गा से की।
आपातकाल
वर्ष 1973 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल का संकट गहरा रहा था। इसकी वजह से देश में महंगाई तेजी से बढ़ रही थी। ‘गरीबी हटाओ’ का नारा जाने कहां खो गया था। देश में बढ़ती महंगाई और भ्रष्टाचार के चलते विपक्ष ने आंदोलन शुरू कर दिया। सबसे पहले गुजरात के छात्रों ने इस आंदोलन की शुरुआत की और देखते ही देखते यह आंदोलन पूरे देश में फैल गया इस आंदोलन की कमान भारत छोड़ो आंदोलन के नायक रहे जयप्रकाश नारायण के हाथ आ गई। आंदोलन के लगातार बढ़ते दबाव के चलते इंदिरा अपने बेटे संजय गांधी पर निर्भर होती गईं। धीरे-धीरे संजय सत्ता के केंद्र में आ गए। 12 जून, 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के रायबेरली चुनाव को अवैध ठहराया। देश की सुरक्षा को खतरा बताते हुए 25 जून 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गई। यह घोषणा तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री की सलाह पर की। इस दौरान विपक्ष के लगभग सभी बड़े नेता जेल में डाले गए। प्रेस पर पाबंदियां लगीं। आपातकाल की घोषणा के बाद देश में इंदिरा और संजय की तानाशाही चल रही थी। बड़ी संख्या में नसंबदी और फर्जी मुठभेड़ों को अंजाम दिया गया। इस दौरान इंदिरा ने देश के विकास के लिए 20 सूत्री कार्यक्रम की घोषणा भी की। कहते हैं कि आपातकाल के दौरान रेलें सही समय पर चलने लगी थीं और सरकारी दफ्तरों में भी काम होने लगा था। आपातकाल 21 मार्च, 1977 तक लागू रहा।
बैंकों का राष्ट्रीयकरण
इंदिरा गांधी देश के बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण करना चाहती थीं, लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी समस्या थे वित्त मंत्री मोरारजी देसाई। मोरारजी बैंकों के राष्ट्रीयकरण के खिलाफ थे और उनके चलते इंदिरा इस काम को अंजाम नहीं दे सकती थीं। इसलिए रणनीति के तहत इंदिरा ने मोरारजी देसाई से वित्त मंत्रलय वापस ले लिया। इसके बाद नाराज मोरारजी ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। इस दौरान राष्ट्रपति चुनाव की गहमागहमी भी शुरू हो गई। कांग्रेस ने नीलम संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति का उम्मीदवार घोषित कर दिया। इसी बीच इंदिरा ने अपने अधिकारियों को चुपचाप बैंकों के राष्ट्रीयकरण की योजना बनाने को कहा। 19 जुलाई 1969 को सरकार ने देश के 14 बैंकों के राष्ट्रीकरण का अध्यादेश लागू कर दिया। इससे जहां कांग्रेस फिर से दो गुटों में बंट गई, वहीं आम जनता के बीच खुशी की लहर दौड़ गई। इंदिरा गांधी की प्रतिष्ठा सातवें आसमान पर जा पहुंची। लोकसभा में इस अध्यादेश पर बहस के दौरान उन्होंने मजबूत तर्क रखे। विधेयक का कम्युनिस्ट और सोशलिस्ट पार्टी के सदस्यों ने भी समर्थन किया। इसके बाद राष्ट्रपति चुनाव के दौरान इंदिरा गांधी ने वीवी गिरि का समर्थन किया और वह राष्ट्रपति चुन लिए गए। इसके बाद समय से पहले वर्ष 1971 के चुनाव में इंदिरा ने जोर शेर से प्रचार किया और ‘गरीबी हटाओ’ के नारे के साथ जबदरस्त जीत दर्ज की।
वैश्विक स्तर पर भारत की बुनियाद इंदिरा से बनी
1966-77 का दौर भारतीय राजनीति के लिए बेहद महत्वपूर्ण रहा, उस समय देश नई चुनौतियों से रूबरू हो रहा था। इस बीच कई ऐसी घटनाएं घटीं, जिन्होंने राजनीति, अर्थ और विदेश कूटनीति के मोर्चे पर भारत को सशक्त बनाया। इन्हीं मसलों पर राजनीतिक विशलेषक नीरजा चौधरी से प्रवीण प्रभाकर की बातचीत:
1966-77 का समय इंदिरा गांधी का रहा। आप इस दौर का कैसे मूल्यांकन करती हैं?
मैं समझती हूं कि इंदिरा गांधी का दौर 1984 तक जाता है। आप इसे आपातकाल से पहले और बाद के समय में बांट सकते हैं। जहां आपातकाल से पहले ढेर सारी उपलब्धियां हैं, वहीं आपातकाल के बाद कुछ खामियां भी आईं। स्वयं आपातकाल एक बड़ी खामी थी। इंदिरा के दौर में मैं सक्रिय तो थी, मगर ज्यादा नहीं। जब हम शुरू से देखते हैं, यानी 1966 में जब इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनी थीं, तब उन्हें ‘गूंगी गुड़िया’ कहा गया था। सिंडिकेट गुट यह मानकर चल रहा था कि वह उनके नियंत्रण में होंगीं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वह इस गुट को शांत करने में कामयाब रहीं और बांग्लादेश निर्माण के समय उन्हें एम. एफ. हुसैन और अटल बिहारी वाजपेयी ने ‘दुर्गा’ की उपाधि दी। इंदिराजी के समय में संसद के अंदर पक्ष-विपक्ष के बीच तीखी बहस होने लगी थी, लेकिन आज जैसी स्थिति नहीं थी कि विपक्ष को विरोधी की तरह देखा जाए। एक उदाहरण देखिए कि संजय गांधी की मौत के बाद इंदिराजी से अटल बिहारी वाजपेयी मिलने पहुंचते हैं और वह उनका हाथ पकड़कर फफक-फफक कर रोने लगती हैं। ऐसी मर्यादा अब कहां दिखती है? खैर, इंदिरा की उपलब्धियों में ‘पाकिस्तान विभाजन’, बैंकों का राष्ट्रीयकरण और प्रीवी पर्स का खत्म होना प्रमुख है। वह अंतरराष्ट्रीय मोर्चो पर बेहद सशक्त नेता साबित हुईं। तो आज जो वैश्विक स्तर पर भारत की पहचान महाशक्ति की है, उसकी बुनियाद इंदिरा गांधी ने ही डाली थी। देवकांत बरूआ ने कहा कि ‘इंदिरा इज इंडिया ऐंड इंडिया इज इंदिरा।’ 62 में चीन से हारने के बाद शास्त्रीजी के समय में पाकिस्तान को हराकर हमने अपना मनोबल ऊंचा किया था, लेकिन जब 71 में हमने पाकिस्तान को बुरी तरह हराया, उससे पहली बार पूरे विश्व को लगा कि भारत एक सुरक्षित देश है और उसकी सुरक्षा-व्यवस्था पुख्ता है। मुझे याद है 1971 का आम चुनाव, क्योंकि वह मेरा पहला चुनावी अनुभव था। इंदिरा ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया। मैं समझती हूं कि ‘गरीबी हटाओ’ उसी समय एक ओजस्वी नारा था, बाद के समय में यह एक जुमला बनकर रह गया।
लेकिन इसी समय में कांग्रेस में फूट पड़ने लगी थी।
देखिए नेहरू जी की बेटी होने का उन्हें फायदा तो मिला ही। साथ ही, वह मजबूत नेता थीं। खुद ही फैसले लेती थीं। ऐसे में, सिंडिकेट वाले, जो उन्हें अपने नियंत्रण में रखना चाहते थे, नाराज होने लगे। ऐसी सूरत में इंदिराजी को अपनी अहमियत साबित करनी थी। उन्हों कांग्रेस को ‘लेफ्ट फ्रंटेड टिल्ट’ देना शुरू किया। इससे सिंडिकेट वाले परंपरावादी और दक्षिणपथी नेता अलग-थलग पड़ने लगे, लेकिन इसी लेफ्ट फ्रंटेड टिल्ट की वजह से बैंकों का राष्ट्रीयकरण हुआ, प्रीवी पर्स का खात्मा हुआ और कई लोक-कल्याणकारी फैसले हुए। जब पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हुई, तो फूट स्वाभाविक थी।
उनकी खामियों को कैसे आंकती हैं?
जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि आपातकाल अपने आप में बड़ी खामी थी। इसके अलावा, इंदिरा जी के कैबिनेट सचिव सी. आर. कृष्णास्वामी राव ने अपनी किताब में लिखा है कि ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद इंदिराजी को लग गया था, इसके परिणाम गलत होंगे। दरअसल, बाद में वह संजय गांधी की मौत से टूट गई थीं। जहां तक मतदान में ‘मसल पावर’ और ‘मनी पावर’ का मुद्दा है, तो वे तब भी थे, पर आज की तरह अधिक नहीं थे। हालांकि, आज यह अच्छी बात है कि इस पर चर्चाएं होती हैं।
चुनाव डेस्क