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बेटे की खातिर फतेहपुर में सिमटे नसीमुद्दीन सिद्दीकी

लोकसभा चुनाव का बिगुल चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही बज चुका है। ऐसे में सभी सियासी दल और उसके प्रत्याशी लोकसभा सीटों पर तेजी से प्रचार में जुट गए हैं। इसके लिए कई दलों ने जहां फिल्मी सितारों और...

बेटे की खातिर फतेहपुर में सिमटे नसीमुद्दीन सिद्दीकी
एजेंसीFri, 07 Mar 2014 11:50 AM
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लोकसभा चुनाव का बिगुल चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही बज चुका है। ऐसे में सभी सियासी दल और उसके प्रत्याशी लोकसभा सीटों पर तेजी से प्रचार में जुट गए हैं।

इसके लिए कई दलों ने जहां फिल्मी सितारों और नामी-गिरामी हस्तियों को चुनाव प्रचार में उतारने का निर्णय लिया है, वहीं बड़े नेता भी हमेशा की तरह इस बार स्टार प्रचारक की भूमिका में होंगे। खासतौर से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) में प्रचार की कमान पार्टी मुखिया मायावती सहित राष्ट्रीय महासचिव सतीशचंद्र मिश्र, नसीमुद्दीन सिद्दीकी और स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नामों के हाथों में होगी।

बसपा फिल्मी संस्कृति से परहेज करती आई है और उसका वोटबैंक भी पार्टी के नेताओं को ही तवज्जो देता है। इसलिए बात चाहे सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले की हो या दलितवोट बैंक की, पार्टी अपने नेताओं को ही आगे करती है। हालांकि लोकसभा चुनाव में पार्टी नेता इस बार खून के रिश्तों को ज्यादा अहमियत देने में लगे हुए हैं और उनका सारा ध्यान अपनों से जुड़ी संसदीय सीटों पर ही है, इस वजह से अन्य लोकसभा प्रत्याशियों को इन्तजार करना पड़ सकता है।

बसपा के बडे़ कद वाले नेता और मायावती के खास सिपहसालार नसीमउद्दीन सिद्दीकी का नाम इस मामले में सबसे ऊपर दिखाई दे रहा है और उन पर बेटे की सियासी जमीन तैयार करने की खातिर पुत्रमोह जैसे आरोप भी लग रहे हैं।

दरअसल, नसीमुद्दीन फतेहपुर जनपद की सियासत में भाग्य आजमाने आए बेटे अफजल सिद्दीकी को बतौर लोकसभा प्रत्याशी के रूप में उतारने के बाद अपना पूरा ध्यान बेटे को सांसद बनाने पर ही केंद्रित करते नजर आ रहे हैं। यूं तो नसीमुद्दीन का गृह जनपद बांदा है और वह बुंदेलखंड की राजनीति पर अच्छी पकड़ रखते हैं, साथ ही पूर्व के चुनाव में प्रदेश की विभिन्न सीटों पर उनके दौरे होते थे और लेकिन इस बार वह लंबे समय से फतेहपुर में ही सक्रिय दिखाई दे रहे हैं।

पिछले डेढ़ वर्षों के दरम्यान जनपद में गांव-गांव खाक छान चुके नसीमुद्दीन का अभी भी इस जनपद के चुनावी क्षेत्रों पर जाना बरकरार है, वहीं बसपा शासनकाल में हुए व्यापक गड़बड़ घोटालों में उनकी सीधी संलिप्तता की जांच और बड़े न्यायालयों में चल रहे मामलों के बावजूद वह अपने को पाक साफ साबित करने की कोशिशों में भी लगे हैं, जिससे इसकी आंच उनके बेटे के सियासी करियर पर न आए।

नसीमुद्दीन चुनाव तारीखों के ऐलान के बाद अभी और कई दिनों तक बेटे का चुनाव दुरुस्त करने के बावत अलग-अलग विधान सभा क्षेत्रों में जूझते दिखाई देंगे, इसके लिए उनका कार्यक्रम तय हो चुका है। वहीं बसपा प्रत्याशी के चुनाव को गति देने के लिए वह लंबे समय से पार्टी में अपने सियासी कद का भी भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके लिए पूर्व मंत्रियों के कार्यक्रम भी तय किए गए हैं। इनमें पूर्व मंत्री इंद्रजीत सरोज जहां पहले से ही सक्रिय हैं, वहीं रामवीर उपाध्याय का भी सात मार्च को दौरा है।

दरअसल, अपने बेटे को चुनावी वैतरणी पार कराने के लिए नसीमुद्दीन कोई भी कोशिश नहीं छोड़ना चाहते। इसके लिए जहां मुस्लिम मतदाताओं पर पकड़ बनाने के लिए उन्होंने खुद प्रचार की कमान संभाल रखी है, वहीं ब्राह्मण सहित दूसरी जातियों को रिझाने के लिए पार्टी के अन्य नेताओं को जुटा रखा है, जो लंबे समय से अपनी-अपनी बिरादरी में अफजल की जीत के लिए अपील कर रहे हैं।

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