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दल से ऊपर उठ कर होती थी राजनीति

पहली लोकसभा के सदस्य रहे हैं रिशांग कीशिंग। उनके पास पहली संसद की ढेर सारी रोचक यादें हैं। अपनी उन यादों को उन्होंने यहां ‘हिन्दुस्तान’ के पाठकों के साथ बांटा। पहली लोकसभा का...

दल से ऊपर उठ कर होती थी राजनीति
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 01 Mar 2014 11:10 PM
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पहली लोकसभा के सदस्य रहे हैं रिशांग कीशिंग। उनके पास पहली संसद की ढेर सारी रोचक यादें हैं। अपनी उन यादों को उन्होंने यहां ‘हिन्दुस्तान’ के पाठकों के साथ बांटा।


पहली लोकसभा का पहला सत्र कैसा था?
पहली लोकसभा का गठन 1952 में हुआ। पहला सत्र 13 मई 1952 को केंद्रीय कक्ष में हुआ। मुङो वहां मौजूद रहने का सौभाग्य प्राप्त है। तब मैं नौजवान सांसद था। कई चीजें मुङो आज भी याद आती हैं। तब काफी उत्साह और जोश भरा हुआ था। कुछ करने की इच्छा थी। राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने संयुक्त सत्र को संबोधित किया। अपने संबोधन में उन्होंने आजादी के बाद देश के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों से निपटने का जिक्र किया था। सभी सांसदों ने दलगत राजनीति से उठ कर चुनौतियों से निपटने की शपथ ली।
तब और आज की लोकसभा का फर्क क्या है?
मुङो याद आ रहा है कि तब कोई मंत्री, सदस्य यदि बोल रहा होता था तो कोई उसे डिस्टर्ब नहीं करता था। सभी ध्यान से बातें सुनते थे। उसके बाद अपनी बात कहते थे। बड़ा नेता हो या छोटा, सभी एक दूसरे को सम्मान देते थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू सदस्यों द्वारा उठाए मुद्दों को काफी तरजीह देते थे। यही कारण है कि पहली लोकसभा की रिकॉर्ड 677 बैठकें हुईं। देखिए! लेकिन आज छोटे-बड़े नेता संसद के भीतर बच्चाों की तरह झगड़ते हैं। तब कम से कम ऐसा तो नहीं था।  
कभी पीएम से सीधे मुखातिब हुए?
हां, मुङो तिथि तो ठीक से याद नहीं, लेकिन एक बार मैंने संसद सत्र के दौरान पंडित नेहरू को संसद की लॉबी में रोका और कहा कि भूमिगत नगा आंदोलनकारी आपसे बात करना चाहते हैं। आप उन्हें टाइम दें। पहले तो मुङो लगा कि वे नाराज हो जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने मेरा हाथ थामा। बोले, कीशिंग, ऐसा करो पहले गृह मंत्री से मिलो, फिर मैं बात करूंगा।  
वेतन कितना मिलता था?
सांसदों को वेतन नहीं मिलता था। हां, संसद की कार्यवाही में हिस्सा लेने पर 35 रुपये प्रतिदिन मिलते थे। हम इतने में खुश थे। बहुत होते थे इतने रुपये।
मणिपुर से दिल्ली कैसे आते-जाते थे?
दिल्ली आने में तीन दिन से अधिक का समय लगता था। इंफाल से दीमापुर होते हुए गुवाहाटी तक पैदल। फिर वहां से ट्रेन पकड़ कर बिहार और फिर दूसरी ट्रेन लेकर दिल्ली। तब ब्रrापुर नदी पर रेल पुल नहीं था। नाव से पार करते थे और ट्रेन पकड़ते थे। दिल्ली के घर में मैंने संसद जाने के लिए एक साइकिल रखी थी।
तब संसद में कैसे मुद्दे उठते थे?
सदस्य दलगत राजनीति से हट कर जनता के मुद्दे उठाते थे।
प्रस्तुति : मदन जैडा

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