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पापन पॉलिटिक्स

इधर राजनीति का जो करक्टर सामने आ रहा है, उससे वह भले घर की बहू-बेटी नहीं लगती। मेरे जसे साप्ताहिक व्यंग्यकार के लिए ऐसी हर्राफा और बदचलन के लिए बदनाम होना साहित्य के हित में नहीं है। मैं उनमें से...

 पापन पॉलिटिक्स
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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इधर राजनीति का जो करक्टर सामने आ रहा है, उससे वह भले घर की बहू-बेटी नहीं लगती। मेरे जसे साप्ताहिक व्यंग्यकार के लिए ऐसी हर्राफा और बदचलन के लिए बदनाम होना साहित्य के हित में नहीं है। मैं उनमें से नहीं जो इश्क में धर्य धारण कर सके। राजनीति तो अब भी कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना वाली भूतपूर्व हिरोइन है। जिसके पीछे सारे नेता, उनके पीछे थकाऊ अभिनेता, लास्ट में पिटे हुए व्यंग्यकार लगे हों मुझे उस लाइन में नहीं लगना। इससे तो राखी सावंत का खुल्लम-खुल्ला स्वयंवर अच्छा। जो पहले आए। पहले पाए। एक जमाना था, शायद किसी नेहरू जी का रहा हो कि राजनीति और लेडी माउंटबेटन में ज्यादा फर्क नहीं था। मैं इसे किसी भारतीय द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ बदले की कार्यवाही मानता हूं। सब जानते हैं कि मतदाता में गधे के गुण होते हैं। वोट देने ओर बोझ उतारने के बाद दोनों संतोषी भाव से विचरते हैं। राजनीति सुलक्षणा होती तो आज के गधे कब के घोड़े हो गए होते। इन्हीं घोड़ों के कारण अभी भी माधुरी दीक्षित अपने वयोवृद्ध हुसैन के चित्रों में वात्सल्य भाव से विराजी हुई है। टुच्ची राजनीति तो वो मैली गंगा है, जो नेताओं और गुंडों को समान भाव से अपने पाप धोने को आमंत्रित करती है। बाद में वो धोने वाले का हाथ खींच कर उसे पूर्ण रूप से डुबो देती है, ताकि आप और पुण्यों से तौबा कर लें। ऐसी ममतामयी राजनीति में डूब कर किसी में रीढ़ की हड्डी नहीं रहती। आपका जीवन किसी होशियार तवायफ के तबलची जसा हो जाता है। राजनीति कभी इंद्र से प्रारंभ हुई थी आज वो मानवीय इन्द्रियों में है। चुनाव आयोग की हनक जसे चुनावों के बाद खत्म हो जाती है, वैसे ही मरने के बाद शरीर व आत्मा नहीं कफन की राजनीति शुरू होती है। मैंने कई बार इस दुष्टा राजनीति पर न लिखने की शपथ खाई पर जसे दर्जनों बार शपथ ग्रहण किए नेताओं-मंत्रियों को शपथ का एक शब्द याद नहीं रहता। मुझे भी नहीं रहा। राजनीति भले ही कुलटा हो पर है तो गरीब की जोरू। राजनीति के कारण ही कृष्ण पर कब्जा जताने के लिए देवकी और यशोदा मुकदमा करने लगती हैं। युधिष्ठिर और दुर्योधन छ:-छ: महीने तक हस्तिनापुर के राजा बनने पर सहमत होते हैं। कृष्ण-सुदामा तक में हाथापाई होने लगती है। सगे भाइयों में कांग्रेस-वामपंथियों वाला टुच्चापन उभरने लगता है। हरक के भाग्य में सोमनाथ चटर्ाी होना नहीं लिखा होता। राजनीति का नया एपीसोड टीवी पर आने वाला है। राखी सावंत के स्वयंवर के रूप में। वहां अभी से शादीशुदाओं की लाइन लगी है। दूर से मुझे ये सब शपथ ग्रहण समारोह लग रहा है। मैं स्वयं कुंवारा दुष्ट हूं।

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