अभी भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगा
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक कल्याणी शंकर का कहना है कि आगामी चुनावों की भविष्यवाणी अभी से करना जल्दबाजी होगी। उनका मानना है कि देश में कांग्रेस के खिलाफ माहौल है। आम चुनाव के मद्देनजर हरिकिशन शर्मा ने...
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक कल्याणी शंकर का कहना है कि आगामी चुनावों की भविष्यवाणी अभी से करना जल्दबाजी होगी। उनका मानना है कि देश में कांग्रेस के खिलाफ माहौल है। आम चुनाव के मद्देनजर हरिकिशन शर्मा ने की उनसे बातचीत।
चुनाव पूर्व सर्वेक्षण लोकसभा चुनाव में भाजपा और तीसरे मोर्चे की बढ़त दिखा रहे हैं, ये अनुमान कितने सही हैं?
देश में माहौल कांग्रेस के खिलाफ है। लोगों के मन में एक ही बात है कि कांग्रेस को सत्ता से हटाना है। इस तरह कांग्रेस विरोधी माहौल से जो जगह बनेगी, उसे भाजपा तथा सपा, बसपा, जदयू, तृणमूल कांग्रेस और अन्नाद्रमुक जैसे क्षेत्रीय क्षत्रप भरने की कोशिश करेंगे, लेकिन आम आदमी पार्टी के मैदान में आने से शहरी इलाकों में प्रतिस्पर्धा और बढ़ जायेगी। इस तरह अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि किसका पलड़ा भारी है। जहां तक भाजपा का सवाल है तो उसके लिए 200 से अधिक सीटें लाना आसान नहीं होगा।
उत्तर प्रदेश और बिहार में भाजपा का प्रदर्शन कैसा रहने की उम्मीद है?
यूपी और बिहार में लोकसभा की 120 सीटें हैं। कांग्रेस और भाजपा में से जो भी दल यहां सर्वाधिक सीटें पायेगा, केंद्र में उसी की सरकार बनने की ज्यादा संभावना होगी। 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया था। राज्य में हाल में मुजफ्फरनगर में दंगा समेत कई सांप्रदायिक घटनाएं हुई हैं, जिससे सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण होने के आसार हैं। इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है। ऐसी स्थिति में सपा और कांग्रेस दोनों को नुकसान होगा, हालांकि बसपा अपने जनाधार को बचाए रख सकती है। दूसरी ओर बिहार में जदयू से गठबंधन टूटने के बाद उच्च जातियां भाजपा के साथ जुड़ती प्रतीत होती हैं।
कांग्रेस और राजद के बीच संभावित गठबंधन से बिहार की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा?
फिलहाल जो राजनीतिक समीकरण हैं, उसमें कांग्रेस और राजद के साथ आने पर चुनाव के परिणाम भिन्न हो सकते हैं। इन दोनों दलों के साथ पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदाय के मतदाता एकजुट हो सकते हैं। भाजपा के साथ उच्च जातियां जा सकती हैं। ऐसे में ज्यादा संभावना है कि जदयू को उतनी सीटें न मिलें।
भाजपा मान कर चल रही है कि देश में मोदी के नाम की लहर है, क्या वास्तव में ऐसा है?
इसमें कोई दो राय नहीं कि मोदी एक कारक हैं। मोदी रोजाना टीवी पर आते हैं, इसलिए लोग उनका नाम जानते हैं। लेकिन आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल भी टीवी पर आते हैं। लोग केजरीवाल को भी जानते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि पूरे देश में लोग केजरीवाल को वोट दें। अगर गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और कुछ उत्तरी राज्यों को छोड़ दें तो दक्षिणी राज्यों और पूवरेत्तर में भाजपा का प्रदर्शन फीका है। दक्षिण के चार राज्यों में 130 सीटें हैं, जिनमें से भाजपा को बमुश्किल 10-15 सीटें मिल सकती हैं। इसलिए पूरे देश में मोदी की लहर बताना ठीक नहीं है।
लोकसभा चुनाव में अभी दो महीने बाकी हैं, क्या आपको लगता है कि अभी आए चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों के अनुमान बदल सकते हैं?
पहली बात तो यह कि सवा अरब की आबादी वाले देश में चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों का सेंपल साइज काफी कम है। इसके अलावा अभी तय नहीं है कि कौन सा दल किसके साथ मिल कर चुनाव लड़ेगा। मसलन महाराष्ट्र नव निर्माण सेना किसके साथ चुनाव लड़ेगी। राष्ट्रवादी कांग्रेस किस ओर जायेगी। जम्मू कश्मीर में कांग्रेस नेशनल कान्फ्रेंस के साथ जाएगी या फिर पीडीपी के साथ। इसके अलावा तेलंगाना का गठन हो पायेगा या नहीं। कई मुद्दे अभी स्पष्ट होने हैं। इसलिए भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगा।