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सुनहरी यादें

आत्मगौरव और आत्मविश्वास के लिए कई बार इतिहास में झांकना आवश्यक होता है। लार्डस के मैदान में कपिल देव की टीम ने करिश्मा किया था, इसीलिए पच्चीस बरस बाद उसका जश्न मनाना जरूरी है। आज क्रिकेट देश में धर्म...

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लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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आत्मगौरव और आत्मविश्वास के लिए कई बार इतिहास में झांकना आवश्यक होता है। लार्डस के मैदान में कपिल देव की टीम ने करिश्मा किया था, इसीलिए पच्चीस बरस बाद उसका जश्न मनाना जरूरी है। आज क्रिकेट देश में धर्म का दर्जा पा चुका है, किन्तु इस खेल में हमारी गौरवगाथा 1े विश्वकप से शुरू होती है। तब दो बार की चैंपियन वेस्टइंडीा को हराना परी कथा जसा लगता था। लार्डस की बालकनी का नाारा याद कर विजेता भारतीय टीम के सदस्य आज भी आंखें मलने लगते हैं। कपिल के हाथ में प्रुडेंशल कप देखने के बाद भारतीय उपमहाद्वीप में क्रिकेट जुनून बन गया। बाद में पाकिस्तान व श्रीलंका भी विश्व विजेता बने, किन्तु सबसे पहले सर्वश्रेष्ठ होने का आत्मविश्वास कपिल ने ही दिया था। आईसीएल बनाम आईपीएल विवाद गहराने के बाद लगा था कि भारत द्वारा एकमात्र विश्व कप जीतने का रात जयंती समारोह मनाया नहीं जाएगा। बीसीसीआई के पदाधिकारियों की कपिल से खुन्नस कोई छिपी बात नहीं है। भला हो सुनील गावस्कर का, जिसने पहल कर असंभव को संभव कर दिया। 83 के विश्व विजेता दल के प्रत्येक सदस्य को सम्मान स्वरूप 25-25 लाख रुपए देकर बोर्ड ने बड़प्पन दिखाया है। करोड़ रुपए उसके हाथ के मैल जसे हैं, लेकिन 83 में उसकी माली हालत खस्ता थी। चैंपियन टीम के खिलाड़ियों को एक-एक लाख रुपए का पुरस्कार देने के लिए लता मंगेशकर को दिल्ली में संगीत समारोह करना पड़ा था। कपिल की विजेता टीम को विश्वकप जीतने पर पुरस्कार स्वरूप मात्र तीन लाख दस हाार रुपए मिले थे, जिसे सुनकर आज हंसी आएगी, किन्तु पैसे से उस आत्मसम्मान और संतोष को नहीं तौला जा सकता जो विश्व विजेता दल के 15 सदस्यों ने भोगा है। 83 के बाद दक्षिण अफ्रीका में हुए विश्व कप में भारत फाइनल तक पहुंचा। पिछले विश्व कप में तो हम पहले चरण से ही बेआबरू होकर लौट आए। हां, धोनी के दल ने 20-20 के विश्व कप को जीतकर घावों पर मरहम लगाने का काम जरूर किया है। विश्व कप क्रिकेट का रात जयंती समारोह मनाना अच्छी पहल है। हॉकी, फुटबाल, एथलेटिक, टेनिस आदि से जुड़ी उपलब्धियों का जश्न भी ऐसे ही मनाया जाना चाहिए।ड्ढr

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