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्नसैम को सलाम

ील्ड मार्शल सैम हरमूसजी फै्रमजी जमशेदजी मानेकशा के नाम के साथ भारतीय सेना के गौरवपूर्ण अध्याय का सबसे सुनहरा अध्याय जुड़ा है, इसलिए निधन के बाद भी उनकी कीर्ति अक्षत रहेगी। वह 1े भारत-पाकिस्तान युद्ध...

 ्नसैम को सलाम
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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ील्ड मार्शल सैम हरमूसजी फै्रमजी जमशेदजी मानेकशा के नाम के साथ भारतीय सेना के गौरवपूर्ण अध्याय का सबसे सुनहरा अध्याय जुड़ा है, इसलिए निधन के बाद भी उनकी कीर्ति अक्षत रहेगी। वह 1े भारत-पाकिस्तान युद्ध के महानायक थे, एक विजयी सेना के सेनापति थे। उन्होंने युद्ध ही नहीं जीता, दुनिया के नक्शे पर एक नया देश (बांग्लादेश) भी खड़ा कर दिया था। आधुनिक सैन्य इतिहास में जिस सम्मान के साथ जर्मनी के जनरल रोमेल का नाम लिया जाता है, उसी मान से सदैव अपने ‘सैम बहादुर’ को भी याद किया जाएगा। आज जब सेना योग्य अधिकारियों की कमी से जूझ रही है, तब मानेकशा की जांबाजी के किस्से सुनकर अनेक युवा सेना की ओर सहा आकर्षित हो सकते हैं। योग्यता, कर्मठता, सूझबूझ और युद्ध नीति पर महारथ के कारण वह सेना के पहले फील्ड मार्शल नियुक्त किए गए। 71 की लड़ाई के बाद उनकी लोकप्रियता सेना की सरहद पार कर जन-ान तक पहुंच गई थी। अनेक राजनीतिज्ञों को उनसे ईष्र्या और असुरक्षा अनुभव होने लगी थी, किन्तु सैम ने कभी सेना की चारदीवारी से बाहर निकलने की महत्वाकांक्षा नहीं पाली। दूसरों के मामले में नाक घुसेड़ने की उनकी आदत नहीं थी, सो सक्रिय सैन्य जीवन के बाद के 35 बरस उन्होंने शांति और सम्मान से गुजार। ‘सैम बहादुर’ को कड़ियल सिपाही होने के साथ-साथ हंसोड़ स्वभाव के लिए भी याद किया जाएगा। विकट परिस्थिति में चहुल करने का उनका गुण अद्वितीय था। मजाक करते समय वह सामने वाले को क्या खुद को भी नहीं बख्शते थे। चुटकुला सुनाते समय ोद नहीं बरतते थे। हंसी-हंसी में बड़ी बात कह जाते थे। नार्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (नेफा-अब अरुणाचल प्रदेश) के मोर्चे पर 62 के आक्रमण के दौर में उन्होंने घबराए भारतीय सैनिकों से पूछा था कि क्या चीनी सिपाही दस फुट के होते हैं? इस चुभते व्यंग्य से सैनिकों के पैर थम गए, मनोबल बढ़ गया। अपनी गोरखा राीमेंट से तो उन्हें इतना लगाव था कि नब्बेवें जन्मदिन का केक चाकू से नही खुखरी से काटा था। वह कहते थे कि जिसे डर नहीं सताता वह या तो झूठ बोलता है या गोरखा है। मानेकशा न तो झूठ बोलते थे, न ही गोरखा थे और न ही उन्हें डर सताता था। वह सिर्फ सैम बहादुर थे इसलिए ऐसे थे। देश को उन जसे बहादुरों की ही जरूरत है।

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