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हल्की-फुल्की फिल्मों का दौर है

15 साल के लंबे संघर्ष के बाद नवोदित निर्देशक समीर तिवारी की पहली फिल्म मिस्टर जो बी कारवाल्हो अब दर्शकों के बीच  है। ताजा मुलाकात में वह कहते हैं कि यह दौर हल्की-फुल्की फिल्मों का है, इसलिए...

हल्की-फुल्की फिल्मों का दौर है
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 03 Jan 2014 08:27 PM
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15 साल के लंबे संघर्ष के बाद नवोदित निर्देशक समीर तिवारी की पहली फिल्म मिस्टर जो बी कारवाल्हो अब दर्शकों के बीच  है। ताजा मुलाकात में वह कहते हैं कि यह दौर हल्की-फुल्की फिल्मों का है, इसलिए मैंने भी कॉमेडी फिल्म बनाई है।

पहले तो इसका टाइटल स्पष्ट करें?
यह सही टाइटल है। मि. जो बी कारवाल्हो फिल्म के मुख्य किरदार का नाम है। यह बेवकूफ टाइप का इंसान है, इसलिए लोग इसे जो भी करवा लो बुलाते हैं। 

फिल्म बनाने का ख्याल कैसे आया?
मैं पिछले एक अरसे से अरशद के साथ कोई फिल्म बनाना चाहता था। तीन फिल्मों के सब्जेक्ट को ड्रॉप करके इस सब्जेक्ट पर आम सहमति बनी। इन दिनों ऐसी ही हल्की-फुल्की ज्यादा बन रही हैं। मैं गोलमाल, अंगूर जैसी पुरानी क्लासिक कॉमेडी फिल्मों का क्रेजी हूं, इसलिए लाइट फिल्म से शुरुआत करना ठीक समझा।

इसमें किस तरह की कॉमेडी है?
पहले तो यह साफ कर दूं कि इसमें कोई गूढ़-गंभीर कहानी नहीं है। कुछ रोचक घटनाएं हैं.. जोरदार ट्रीटमेंट है। सब कुछ मजे के लिए है।

अरशद की इसमें क्या भूमिका है?
वह इसमें एक स्टुपिड इंसान का रोल कर रहे हैं, जो अपनी हरकतों से कुछ भी कर सकता है। पूरी सिचुएशन ही उन पर बेस्ड है।

उनके साथ आपने पहले भी कई फिल्मों की योजना बनाई थी?
मैंने पहले अरशद के साथ एक सीरियस फिल्म की योजना बनाई थी, क्योंकि अरशद चाहते थे कि वह अपनी लाइट इमेज से बाहर आएं। मगर वह प्रोजेक्ट फाइनल नहीं हो पाया, तब हमने एक सेमी कॉमेडी बनाने की प्लानिंग की। उस पर काफी काम हुआ, मगर वह फिल्म भी फ्लोर पर नहीं जा पाई। तब हमने इसे बनाने का निर्णय लिया। अरशद को  इसकी स्क्रिप्ट बेहद पसंद आई। 

पुलिस इंस्पेक्टर के रोल में सोहा को ही क्यों पसंद किया?
देखिए, यह जरा भी सीरियस फिल्म नहीं है। इसका हीरो ही नहीं, विलेन भी बहुत बेवकूफ-सा लगता है। ऐसे में सोहा का चुनाव इसलिए किया, क्योंकि उनकी इमेज सीरियस टाइप की नहीं है। उनकी सीरियसनेस भी फिल्म में एक मजाक की तरह लगती है।

लेकिन सोहा का लुक इस रोल के अनुकूल नहीं है?
यही तो मजे की बात है। वह जब अपने पतले-दुबले शरीर के सहारे गुंडों की पिटाई करती है तो वह सब कुछ इस फिल्म के मूड के अनुकूल लगता है।

सोहा को आपने बिकिनी पहनाई है?
मैंने कहा न, यह फिल्म पूरी तरह से ट्रीटमेंट व सिचुएशन पर निर्भर करती है। फिल्म में ऐसी एक सिचुएशन थी। मैं जानता था कि वह पहली बार किसी फिल्म में बिकिनी पहन रही हैं। उनका आग्रह था कि वह बिकिनी अपनी पसंद की पहनेंगी। हमें कोई आपत्ति नहीं थी।

फिल्मों से कैसे जुड़ाव हुआ?
हमारा परिवार उत्तर प्रदेश के उन्नाव से आकर राजस्थान में बसा है। मुझे फिल्मों का शौक था तो  मुंबई चला आया। यहां एड फिल्में बनाने लगा। मैंने शाहरुख और महेंद्र सिंह धौनी जैसे स्टार के साथ एड फिल्में बनाईं। साथ में फीचर फिल्में बनाने की कोशिश भी जारी थी। कुछेक बड़े निर्माताओं से बात हुई,पर वे फिल्में शुरू नहीं हो पाईं। फिर मैंने अरशद से बात की। उनके सहयोग के चलते फिल्म बन कर रिलीज हो पाई है। 15 साल की मेरी स्ट्रगल अब समाप्त हुई है।

एड फिल्मों से फीचर फिल्मों की तरफ आये हैं, कोई परेशानी?
वह तो आनी ही थी। मिनटों की एक एड फिल्म हम तीन दिन में फिल्माते हैं, जबकि फीचर फिल्मों को बहुत झटपट फिल्माना पड़ता है।

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