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सर्दी में दमा देता है ज्यादा दर्द

सर्दी का मौसम आमतौर पर स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होता है, लेकिन अस्थमा यानी दमा के मरीजों के लिए यह मौसम कष्टदायक ही नहीं, बल्कि जानलेवा भी बन जाता है। डॉंक्टर बताते हैं, ऐसे मौसम में लापरवाही...

सर्दी में दमा देता है ज्यादा दर्द
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 03 Jan 2014 12:19 PM
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सर्दी का मौसम आमतौर पर स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होता है, लेकिन अस्थमा यानी दमा के मरीजों के लिए यह मौसम कष्टदायक ही नहीं, बल्कि जानलेवा भी बन जाता है। डॉंक्टर बताते हैं, ऐसे मौसम में लापरवाही की वजह से दमा के अटैक आने की आशंका बढ़ जाती है। इससे बचाव के लिए क्या करें क्या नहीं, बता रहे हैं अरविंद ऋतुराज

दमा एक विश्वव्यापी बीमारी है और भारत के कोने-कोने में इस बीमारी का प्रकोप है, लेकिन दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में इसका असर थोड़ा ज्यादा ही है। घनी आबादी, निर्माण कार्यो के चलते वायुमंडल में धूलकणों की अधिक मात्रा, अत्यधिक ट्रैफिक, प्रदूषित पानी और खाद्य पदार्थ जैसी चीजें राजधानी के लोगों को दमा की गिरफ्त में ढकेल रही हैं। एक सर्वे के मुताबिक राजधानी में कुल आबादी के 15 फीसदी से अधिक लोग दमे की बीमारी से पीडित हैं।

क्या है दमा
दमा सांस की बीमारी है। इसमें फेफड़े तक आवश्यकता से कम हवा पहुंचती है। सूजन के चलते फेफड़े तक जाने वाली नलिका संकरी हो जाती है, जिससे हवा के जाने और आने में अवरोध हो जाता है। जरूरत भर हवा लेने के लिए सांसें जोर-जोर से चलने लगती हैं। सांस की नली फेफड़े के पास पहुंचने पर दो भागों में बंट जाती है, जिसे ब्रोनकाई कहते हैं। आगे चलकर ये ब्रोनकाई पतली-पतली नलिकाओं में बंट जाती हैं, जिन्हे ब्रोनकाइओल्स कहते हैं। ये ब्रोनकाइओल्स काफी संवेदनशील होती हैं और जरा सी असामान्य स्थिति को ये बर्दाश्त नहीं कर पाती हैं। एलर्जी या संक्रमण से इनमें सूजन आ जाती है, जिससे हवा पास होने में कठिनाई होती है। कम हवा पास होने की ऐसी अवस्था को ही दमा कहा जाता है। 

दमा के लक्षण
सांस फूलना:
शरीर के अंदर की सारी गतिविधियों के लिए एक निर्धारित मात्रा में ऑक्सीजन की जरूरत होती है। सांस की नलिका संकरी होने से व्यक्ति न तो उचित मात्रा में हवा अंदर खींच सकता है और न ही बाहर फेंक सकता है। इससे सांसें फूलने लगती हैं और व्यक्ति बेचैन हो जाता है।

घरघराहट की आवाज आना: सांस की नलिका संकरी होने और उचित मात्रा में हवा लेने और छोड़ने की कोशिश में व्यक्ति की श्वसन प्रणाली से एक खास किस्म की आवाज आती है। इस घरघराहट की आवाज को साफ तौर पर सुना जा सकता है।

खांसना और कफ आना: बार-बार खांसना दमा मरीजों का सामान्य लक्षण है। खांसने के क्रम में मरीज के मुंह से कफ भी निकलता है। कफ निकलने के बाद मरीज को थोड़ी देर के लिए आराम मिलता है, लेकिन खांसी फिर शुरू हो जाती है।

जल्दी-जल्दी सांस लेना: एक स्वस्थ व्यक्ति एक निश्चित अंतराल में सांस लेता और छोड़ता है। दमा के मरीज उचित मात्रा में हवा लेने की कोशिश में जल्दी-जल्दी सांस लेते हैं।

दमा के कारण
जेनेटिक कारण: यदि किसी परिवार में दमा होने का इतिहास रहा है तो उस परिवार में जन्म लेने वाले शिशु में दमा होने की अधिक आशंका होती है। मेडिकल वैज्ञानिकों ने सौ से ज्यादा ऐसे जीनों का पता लगा लिया है, जो दमे की बीमारी से जुड़े हुए हैं। कुछ महत्वपूर्ण जीन हैं जीएसटीएम1, आईएल10, सीटीएलए4, एसपीआईएनके5, एलटीसी4एस, आईएल4आर, एडीएएम33। इनमें से ज्यादातर जीन ऐसे हैं, जो व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता या सूजन पैदा करने से जुड़े हुए हैं। एक प्रयोग के परिणाम के मुताबिक अगर किसी महिला को जुड़वा बच्चे पैदा होते हैं और इनमें से एक बच्चा दमा का मरीज है तो दूसरे बच्चे में दमा होने की आशंका सामान्य बच्चे से 25 फीसदी अधिक होती है। आयुर्वेद के विशेषज्ञ डॉं. आर. पी. पाराशर का कहना है कि स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर जेनेटिक कारणों के प्रभाव को भी कम किया जा सकता है।

पर्यावरणीय कारण
एलर्जी:
फेफड़े में हवा का वितरण करने वाली नलिकाएं-ब्रोनकाइओल्स अत्यधिक संवेदनशील होती हैं। सांस के माध्मय से बाहर से आने वाली कई चीजों को वे सहन नहीं कर पाती हैं। हर व्यक्ति की ब्रोनकाइओल्स बाहरी चीजों पर अलग ढंग से प्रतिक्रिया करती है। किसी की ब्रोनकाइओल्स धूल को बर्दाश्त नहीं कर पाती तो किसी की धुएं को। इससे ब्रोनकाइओल्स में सूजन आ जाती है या फिर वे संक्रमित हो जाती हैं। ऐसे में वे काफी संकरी हो जाती हैं और उनसे होकर हवा ठीक से पास नहीं हो पाती।

वायु प्रदूषण: वायु प्रदूषण जहां एक ओर आम लोगों को धीरे-धीरे दमा का मरीज बना रहा है, वहीं दूसरी ओर दमे के मरीज के दर्द को बढ़ा देता है। वायु में कई गैसों का आनुपातिक मिश्रण होता है। इन गैसों के अलावा इसमें धूलकण जैसे और कई महीन कण मौजूद होते हैं। पर्यावरण में प्रदूषण की वजह से धूलकण आदि की मात्रा बढ़ जाए या फिर गैसों की आनुपातिक संरचना बदल जाए तो वायु प्रदूषित हो जाती है। सांस के जरिए जब प्रदूषित हवा अंदर जाती है तो संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है।

धूम्रपान: सिगरेट, बीड़ी, गांजा, सिगार आदि का सेवन करने वाले लोगों में दमा होने की आशंका अधिक होती है। इनके धुएं ब्रोनकाई और ब्रोनकाइओल्स को नुकसान पहुंचाते हैं।

खान-पान: अधिक चर्बी पैदा करने वाले खाद्य पदार्थों के सेवन से भी दमा होने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे खाद्य पदार्थों से शरीर में अधिक चर्बी जमा हो जाती है। इससे नलिकाएं और संकरी हो जाती हैं, जिससे सांस लेने की क्षमता घट जाती है।

दमे से बचने के उपाय
अगर आपके परिवार में किसी सदस्य को दमे की बीमारी है तो आप विशेष रूप से सावधान रहें।
स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं और कोशिश करें कि अच्छे खान-पान और व्यायाम से आपकी प्रतिरोधक क्षमता बढ़े।
किसी भी प्रकार के धूम्रपान का सेवन न करें। धूम्रपान धीरे-धीरे आपको दमे का मरीज बना देगा।
धूल और धुएं से बचने की कोशिश करें।
अपने शरीर को बेहतर ढंग से समझने की कोशिश करें कि आपको किसी वस्तु से एलर्जी तो नहीं है। एलर्जी वाली चीजों से दूर रहना ही दमे से बचने का सबसे अच्छा उपाय है।

क्या कहते हैं आंकड़े
पिछले तीस वर्षों में दिल्ली में दमे के मरीजों की संख्या में 15 गुना से अधिक वृद्धि हुई है।
सर गंगाराम अस्पताल के डॉं. के. चुघ और डॉं अनुपम सचदेवा की ओर से 2012 में किए गए सर्वेक्षण में पाया गया कि दिल्ली के एक स्कूल में 8.1 फीसदी बच्चे श्वसन की बीमारी के शिकार हैं, जबकि रेवाड़ी के इसी तरह के एक स्कूल में 4 फीसदी बच्चे श्वसन की बीमारी के शिकार हैं। इस सर्वेक्षण का परिणाम यह दर्शाता है कि दिल्ली के स्कूलों के बच्चों में सांस की बीमारी का प्रकोप अधिक है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में एक साल (2004) में 57 हजार लोगों की मौत दमे के कारण हुई।
दुनिया भर में एक साल (2005) में दो लाख 55 हजार लोगों की मौत दमे के कारण हुई।
विश्व भर में 30 करोड़ लोग दमे के शिकार हैं।

जरूरी सावधानियां
सर्दी का मौसम दमे के मरीजों के लिए काफी कष्टदायक होता है। ऐसे मौसम में दमे के मरीजों को सुबह और शाम की सैर नहीं करनी चाहिए। उनको किसी और वक्त सैर करनी चाहिए। सुबह और शाम वायुमंडल का प्रदूषण निचले स्तर पर आ जाता है, जो दमे के मरीजों के लिए काफी नुकसानदेह साबित हो सकता है।
एलर्जी वाली वस्तुओं से दूर रहें। दमे के मरीजों को धूल और धुएं से एकदम दूर रहना चाहिए।
भीड़-भाड़ वाले इलाकों में जाने से बचें। अगर जाने की मजबूरी हो तो यह कोशिश करें कि ऐसी जगहों पर कम-से-कम समय रहना पड़े। नाक को साफ कपड़े से ढके रखें।
मौसम में होने वाले बदलाव को बारीकी से समझें। तुरंत ठंडा और तुरंत गर्म जैसी स्थिति दमे के मरीजों के लिए नुकसानदायक है।
दमे की परेशानी बढ़ते ही डॉंक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
डॉक्टर के परामर्श पर इनहेलर का इस्तेमाल करना चाहिए।

इस मौसम में दमे के मरीज का दर्द ज्यादा बढ़ जाता है। धूल कण की अधिक मात्रा और स्मोग के कारण दमे के मरीजों के लिए यह मौसम अधिक कष्टदायक साबित होता है। इसलिए सैर में सावधानी बरतें व प्रदूषण से बच कर रहें।
डॉं सर्वेश कुमार, चेस्ट फिजिशियन

रिसर्च बताते हैं कि प्रतिरोधक क्षमता कम होने से व्यक्ति में दमे के शिकार होने की आशंका बढ़ जाती है। इसलिए खान-पान आदि पर ध्यान देकर प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर बनाए रखें। 
डॉं आर पी पाराशर, आयुर्वेद विशेषज्ञ

पौष्टिक आहार खाकर दमे के असर को कम कर सकते हैं। दमा मरीजों को इस बात पर खास गौर करना चाहिए कि किस तरह के खाद्य पदार्थों से उसे एलर्जी है। ऐसे पदार्थो से बचें। वसा वाले भोजन से भी बचें।
दिव्या अग्रवाल, अमेरिकन फूड कंपनी में डायटीशियन

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