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जमीन मामले में बुरी तरह फंसे सांसद भूदेव चौधरी

भागलपुर, वरीय संवाददाता। मोजाहिदपुर के काजीचक मोहल्ले में पत्नी के नाम से खरीदी गई जमीन मामले में जमुई के जदयू सांसद बुरी तरफ फंसते जा रहे हैं। डीसीएलआर के कोर्ट से मकान खाली करने के आदेश पर सवाल...

जमीन मामले में बुरी तरह फंसे सांसद भूदेव चौधरी
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 03 Jan 2014 12:39 AM
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भागलपुर, वरीय संवाददाता। मोजाहिदपुर के काजीचक मोहल्ले में पत्नी के नाम से खरीदी गई जमीन मामले में जमुई के जदयू सांसद बुरी तरफ फंसते जा रहे हैं। डीसीएलआर के कोर्ट से मकान खाली करने के आदेश पर सवाल उठने लगे हैं। सिविल कोर्ट में मामला लिंबत रहने के बावजूद सांसद की पत्नी की तरफ से डीसीएलआर कोर्ट में बिहार भूमि विवाद निवारण अधिनियम के तहत वाद दायर किया।

कोर्ट को लिंबत केस की जानकारी तक नहीं दी गई। जानकारों का कहना है कि कोर्ट को अंधेरे में रखकर या मिलीभगत से आदेश प्राप्त करने के मामले में सांसद के विरुद्ध कानूनी कार्रवााई भी हो सकती है। स्व. साधो मिस्त्री की पत्नी मोसमात दया देवी ने सांसद भूदेव चौधरी की पत्नी चन्द्राणी देवी के विरुद्ध 19 मई 2008 को टाइटिल सूट (176/ 2000) दाखिल किया था। टाइटिल सूट की वर्तमान में सुनवाई सब जज एक के यहां चल रही है।

इस मामले में नोटिस के बाद चन्द्राणी देवी कोर्ट में 24 फरवरी 2009 को कोर्ट में वकालतनाम और वकील के साथ कोर्ट में उपस्थित हुई। उनकी तरफ से लिखित बयान के लिए कोर्ट से समय की मांग की गई। 16 जून 2009 को चन्द्राणी देवी की तरफ से टाइटिल सूट में लिखित बयान दर्ज किया गया। इसके बाद से दोनों पक्षकार की तरफ से कोर्ट में हाजरी दी जा रही है। इस मामले में दया देवी द्वारा कोर्ट में 18 मार्च 2009 को आवेदन देकर कहा गया था कि विपक्षी द्वारा विवादित जमीन पर निर्माण कार्य या बेचने की कोशिश कर सकते हैं।

इस पर रोक लगाई जाए। आवेदन सीपीसी की धारा 94,151 और 39 के नियम एक और दो के तहत दिया गया था। इसकी प्रित विपक्षी चन्द्राणी देवी को भी दिया गया। इस बिन्दु पर सुनवाई के लिए वाद लंबित है। कई महीनों से कोर्ट में न्यायिक पदाधिकारी का पद खाली है। सुनवाई की अगली तिथि नौ जनवरी निर्धारित है। डीसीएलआर के आदेश पर प्रशासन द्वारा मकान खाली करवाकर सांसद को सौंपने के बाद मकान को बुलडोजर लगाकर ध्वस्त कर दिया गया।

डीसीएलआर के आदेश पर उभरे विवाद के बाद से सांसद लगातार कह रहे हैं कि उन्हें जानकारी नहीं है कि उस जमीन को लेकर कोई मामला सिविल कोर्ट में चल रहा है। सांसद यह भी तर्क दे रहे हैं कि जब केस की जानकारी नहीं है तो डीसीएलआर कोर्ट में कैसे दी जा सकती है। सवाल उठता है कि सांसद द्वारा क्यों इस तरह का बयान दिया गया जबकि चार साल पहले उनकी पत्नी की तरफ से कोर्ट में वकील उपस्थित हो रहे हैं।

वकालतनामा पर चन्द्राणी देवी का हस्ताक्षर है। जाहिर है कि अगर सांसद द्वारा डीसीएलआर के कोर्ट सिविल केस की जानकारी दी जाती तो कोर्ट चाहकर भी मकान खाली करने का आदेश नहीं दे सकता था। यही कारण है कि पूरी सुनवाई के दौरान सब जज एक के कोर्ट में लिंबत केस की चर्चा नहीं की गई है। जानकारों का कहना है कि डीसीएलआर और सांसद द्वारा साजिश के तहत सिविल केस की चर्चा नहीं की गई। 2009 में ही दाखिल खारिज के मामले को तत्कालीन डीसीएलआर ने सक्षम न्यायालय में जाने का निर्देश देते हुए वाद को खारिज कर दिया था।

ऐसे में डीसीएलआर को सांसद की पत्नी द्वारा दायर आवेदन में इसकी जानकारी लेनी चाहिए कि क्या पूर्व के आदेश या संबिंधत जमीन को लेकर कोई सिविल केस चल रहा है कि नहीं। कम से कम इस संबंध में चन्द्राणी देवी से शपथ पत्र लेना चाहिए कि मकान से संबिंधत मामला डीसीएलआर के अलावा किसी कोर्ट में नहीं चल रहा है। एक पक्ष के उपस्थित नहीं होने पर तो यह और अनिवार्य हो जाता है क्योंकि कोर्ट के समक्ष एक पक्ष के तर्क और कागजात के अलावा और कोई साक्ष्य या प्रमाण उपलब्ध नहीं रहता है।

जिंस तरह से आनन-फानन में एकपक्षीय सुनवाई कर आदेश दिया गया है उससे साजिश की बू आती है। ऐसे मामलों में डीसीएलआर और सांसद पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है । मोसमात दया देवी के अधिवक्ता मदन मोहन मिश्रा का कहना है कि यह शुद्ध रूप से धोखाधड़ी का मामला है। इसके लिए डीसीएलआर और सांसद दोनोंजिंम्मेदार हैं। अपील की सुनवाई के दौरान आयुक्त को इस पर संज्ञान लेकर कानूनी कार्रवाई करने का निर्देश देना चाहिए। जमीन विवाद से संबिंधत टाइटिल सूट चल रहा है तो दूसरे कोर्ट में मामला दायर ही नहीं करना चाहिए।

कोर्ट के समक्ष सत्य को छिपाना कानूनन अपराध है। तथ्य को कोई छिपा नहीं सकता है। यह काम डीसीएलआर और सांसद की मिलीभगत और साजिश के तहत किया गया है। आदेश की सच्ची प्रतिलिपि मिलने के बाद इसका पर्दाफाश किया जाएगा। कोर्ट को इस आशय का शपथ पत्र लेना चाहिए था। सोच समझ कर जमुई से डीसीएलआर के भागलपुर आने के बाद केस की सुनवाई हुई और आदेश का पालन उस समय किया गया जब सिविल कोर्ट बंद था। दुर्भाग्य की बात है कि जो पक्ष चार साल से अधिक समय से केस में हाजिर हो रहा है और उसकी तरह से जानकारी तक नहीं दी जा रही है।

जानकारी मिली है कि डीसीएलआर द्वारा आदेश भी बड़ी बारिकी से किया गया है। इसमें सिविल केस का जिक्र तक नहीं किया गया है। इसकी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए।

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