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.. आयी सावन की बहार

ऐतिहासिक स्मारकों पर सजने लगी है सुर-ताल की महफिल। राजधानी के तमाम मशहूर धरोहरों पर महीने में एक बार पर्यटन विभाग गीत-संगीत का आयोजन कर रहा है। इसी बहाने पर्यटकों को रिझाने की जोरदार कोशिश हो रही है।...

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लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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ऐतिहासिक स्मारकों पर सजने लगी है सुर-ताल की महफिल। राजधानी के तमाम मशहूर धरोहरों पर महीने में एक बार पर्यटन विभाग गीत-संगीत का आयोजन कर रहा है। इसी बहाने पर्यटकों को रिझाने की जोरदार कोशिश हो रही है। शनिवार को 0 साल पुराने धरोहर पटना संग्रहालय से कजरी व वायलिन वादन की धुन सुन लोगों के पांव उस ओर बरबस खिंचे जा रहे थे।ड्ढr ड्ढr युवा चíचत शास्त्रीय संगीत की गायिका रुचिरा काले ने जब कजरी ‘.. रंग रसिया आयी सावन की बहार’ सुनायी तो सब झूम उठे। फिर उन्होंने राग गौड़ मल्हार में एक-दो बंदिशें सुनायीं। इसके पहले युवा वायलिन वादक हृषिकेश कुमार ने वायलिन वादन से दिलों के तार झंकृत कर दिए। मौका था पर्यटन विभाग व स्पिक मैके द्वारा संयुक्त रूप से शनिवार को 0 साल पुराने पटना संग्रहालय में आयोजित संगीत संध्या का।ड्ढr ड्ढr पर्यटन विभाग की प्रधान सचिव रश्मि वर्मा ने समारोह का उद्घाटन करते हुए कहा कि ऐतिहासिक धरोहरों के गौरव धीर-धीर कम होते जा रहे हैं। विभाग स्मारकों पर गीत-संगीत का आयोजन कर लोगों की अभिरूचि बढ़ाने के साथ ही पर्यटकों को भी लुभा रहा है। विभाग द्वारा अगले साल मार्च तक का कैलेंडर बना लिया गया है। हर महीने के पहले शनिवार को धरोहरों पर संगीत का आयोजन किया जाएगा। पटना संग्रहालय के अपर निदेशक डा. उमेशचंद्र द्विवेदी ने संग्रहालय के बार में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि मौर्यकाल से आधुनिक काल के कई अनमोल धरोहरं यहां पर हैं। विभाग के उपनिदेशक विनय कुमार ने स्वागत भाषण किया। वायलिन वादन में तबले पर साथ दिया राजशेखर ने जबकि रुचिरा के साथ हारमोनियम पर रजनीश व तबले पर अशोक सिंह ने संगत की। इस मौके पर चेतना झा, यशवंत, अंशुमन व डा. परशुराम पांडेय आदि भी मौजूद थे।

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