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बाढ़ के दर्द में डूबा वोट का जज्बा

बरसात के दिनों में कहर बरपाने वाली मृत बागमती का हसनपुर बांध। चहूंओर गूंज रही चुनावी रणभेरी से बेखबर यहां के लोग दो माह बाद शुरू होने वाली जीवन की संभावित जंग जीतने की तैयारी में जुटे हैं। उन्हें पता...

 बाढ़ के दर्द में डूबा वोट का जज्बा
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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बरसात के दिनों में कहर बरपाने वाली मृत बागमती का हसनपुर बांध। चहूंओर गूंज रही चुनावी रणभेरी से बेखबर यहां के लोग दो माह बाद शुरू होने वाली जीवन की संभावित जंग जीतने की तैयारी में जुटे हैं। उन्हें पता है कि जनप्रतिनिधि क्षेत्र की तस्वीर बदलें या न बदलें बाढ़ तो यहां का भूगोल बदल ही देगी। लिहाजा अभी से ही शुरू हो गई इसकी तैयारी। उम्मीदवार संसद में अपनी सीट सुरक्षित कराने के लिए उनके दरवाजे मत्था टेक रहे हैं लेकिन उन्हें तो बांध पर दस फुट जमीन के लिए भी मारामारी करनी पड़ रही है। अपनी तैयारी में मशगूल गांव वाले उन्हें किसी राहगीर से ज्यादा तबज्जो नहीं दे पा रहे। बातें तो उनकी वे सुनते जरूर हैं लेकिन थोड़ी ही देर बाद उन्हें यह याद भी नहीं रहता कि वहां किस पार्टी के लेाग आये थे। दर्जनों झोपड़ियां लग चुकी हैं। पचासों लोग जुटे हैं दूसरी झोपड़ियों को अस्थाई आवास का स्वरूप देने में।ड्ढr ड्ढr समस्तीपुर संसदीय क्षेत्र के उम्मीदवार इसे लाख भूलने की कोशिश करं लेकिन यहां के ग्रामीण वोटरों के लिए बाढ़ से बड़ा मुद्दा कुछ नहीं है। साल के छह माह प्रकृति से जिस प्रकार वे संघर्ष करते हैं वह किसी भी लड़ाई से ज्यादा भयावह होता है। चुनाव से भी ज्यादा रोमांच पैदा करती है उनकी जिन्दगी की कहानी। यही कारण है कि लगभग हर दल के उम्मीदवार शहरी इलाकों में चाहे जो चर्चा करं गांवों में पहुंचते ही कुछ ऐसी चर्चाओं में सिमट जाते हैं। जद यू उम्मीदवार महेश्वर हाारी वर्ष 2007 की बाढ़ में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा चलाये गये राहत अभियान की याद दिलाकर वोटरों को रिझाने में जुटे हैं। वे केन्द्र के असहयोग की चर्चा कर कांग्रेसी प्रत्याशी को घेरने का भी प्रयास करते हैं। कांग्रेस के डा. अशोक कुमार भी यह कहकर उनके दलील की हवा निकालने की कोशिश करते हैं कि केन्द्र अगर पैसा नहीं देता तो राहत बंटती कैसे। लोजपा प्रत्याशी रामचन्द्र पासवान को सेल द्वारा चलाये गये राहत अभियान व मेडिकल कैम्पों पर भरोसा है। इन्हीं बातों की चर्चा कर वे वोटरों का दिल जीतने की कोशिश में जुटे हैं।ड्ढr ड्ढr गांववाले भी सब समझते हैं। वोट के महत्व को भी जानते हैं और वो बूथों पर भी जरूर जाएंगे लेकिन, उन्हें किसी प्रत्याशी की बात सुनने में कोई दिलचस्पी नहीं है। वे अपने अतीत की याद को दिल में समेटे फैसला कर चुके हैं। हसनपुर बांध पर झोपड़ी बनाने में जुटे अकलू राम, कमलपुर के जीवछ पासवान और कोलहट्टा के रामसेवक मुखिया आदि कहते हैं कि -‘पछला बायढ में नीतीश कुमार त खाएक व्यवस्था केलथीन , लेकिन हुनकर हाकिम सब इंदिरा आवास दय में कांूसी करय छथिन्ह। ’ बछौली बांध पर मणिलाल, श्याम नारायण, कमल पासवान आदि कहते हैं कि -‘बायढ में जे हमरा सब के देखलक हुनके भोट देबहन’। रामविलासो जी बायढ में खूब मदद केलखिन। समना के रतन ठाकुर, बुलाकी ठाकुर, त्रिवेणी शर्मा आदि कहते हैं कि -‘भोटक समय सब आबै छै, जखन बायढ में हम सब मरत रहै छी तखन कैकरो छाहौ न देखय छी।’

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