संत सोहिरोबा नाथ
संत सोहिरोबा नाथ का, महाराष्ट्र की संत-परंपरा में अद्वितीय स्थान है। उन्होंने अपनी आध्यात्मिक साधना और चिंतन-शक्ित द्वारा, जनता को सत्य का संदेश दिया, घर-घर में भगवत् भक्ित का प्रचार किया। संत...
संत सोहिरोबा नाथ का, महाराष्ट्र की संत-परंपरा में अद्वितीय स्थान है। उन्होंने अपनी आध्यात्मिक साधना और चिंतन-शक्ित द्वारा, जनता को सत्य का संदेश दिया, घर-घर में भगवत् भक्ित का प्रचार किया। संत सोहिरोबा नाथ ने एक सारस्वत ब्राह्मण परिवार में सन 1714 ई. में जन्म लिया था। वह बचपन से ही ईश्वर-भक्ित, साधु-संतों की सेवा और सत्संग में लीन रहते थे। ऐसा माना जाता है कि संत सोहिरोबा के मन में, नाथ सम्प्रदाय के परम योगी गहिनी नाथ की कृपा से ही वैराग्य का भाव उत्पन्न हुआ था। इसलिए संत गहिनीनाथ को ही संत सोहिरोबा का गुरु मानते हैं। वे नाम-स्मरण और भजन कीर्तन में विश्वास करते थे। उन्होंने कहा- ‘वाणी का श्रंगार भगवान के नाम का स्मरण है। भगवान का नाम संकीर्तन भव भय का नाश कर देता है।’ उनकी वाणी में ज्ञान और भक्ित तथा सगुण और निगरुण का अत्यंत संतुलित समन्वय मिलता है। मराठी संत-साहित्य की उन्नति में उनकी रचनाओं की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उनकी साधना का स्वरूप भगवान की लीलाओं का चिंतन था। वे कहते थे- ‘भगवान गोविन्द का नाम बोलिए। तन, मन और धन से, अपने हृदय में निरंतर इसी प्रकार का विचार करना चाहिए, इसी को सर्वस्व समझिए। व्यर्थ रात-दिन बक-बक करने से कुछ भी लाभ नहीं है। भगवान का नाम-स्मरण करने से भव भय मिट जाता है। समस्त सुख-विभूति मिलती है। केवल मुझे ही नहीं, आपको भी इसी भगवन्नाम का आश्रय ग्रहण करना चाहिए। इससे सांसारिक विषय-सुख का मिथ्या मान नष्ट हो जाता है।’ उन्होंने वैराग्य विषय पर कई ग्रंथ लिखे। उनका विचार था कि निरंतर अपने इष्ट राम के नाम पर जप करने से परमपद की प्राप्ति होती है। मन भक्ित, मुक्ित और विरक्ित में रमण करने लगता है। हृदय में निष्काम भाव जागता है। अपने आपकी पहचान होती है। उन्होंने कहा- ‘परमात्मा की परिव्याप्ति से रहित यह शरीर केवल शव मात्र है। परमात्मा ही शरीर के चेतन अथवा प्राणतत्व हैं।’