वैट और परिवहन व्यवस्था बना बहाना
झारखंड सरकार की अदूरदर्शिता का खामियाजा आम उपभोक्ताओं के साथ-साथ व्यवसायियों को भी उठाना पड़ रहा है। पहली अप्रैल से राज्य में अतिआवश्यक वस्तुओं चावल, आटा, मैदा, सूजी के साथ-साथ आलू-प्याज को भी कर के...
झारखंड सरकार की अदूरदर्शिता का खामियाजा आम उपभोक्ताओं के साथ-साथ व्यवसायियों को भी उठाना पड़ रहा है। पहली अप्रैल से राज्य में अतिआवश्यक वस्तुओं चावल, आटा, मैदा, सूजी के साथ-साथ आलू-प्याज को भी कर के दायर में लाया गया। इसके पहले राज्य में ये सभी वस्तुएं करमुक्त थीं। कर लगते ही बाजार में सामानों की कीमतें आसमान छूने लगीं। चुनाव में बुरी तरह से प्रभावित परिवहन व्यवस्था के कारण सामानों की आवाजाही में हुई परशानी ने महंगाई की घी में आग लगाने का काम किया और जीवन जीने के लिए अतिआवश्यक सामानों के दाम आसमान छूने लगे। इस मौके का लाभ उठाने में चंद कालाबाजरी भी पीछे नहीं रहे। सरकार के पास बिना रािस्ट्रेशन के ही वैट के नाम पर चार प्रतिशत कीमतें बढ़ गयीं और आम उपभोक्ताओं को सामान महंगे मिलने लगे। बाजार में कई सामानों की कीमतें दो रुपये किलो से 10 रुपये किलो तक बढ़ गयी। व्यापारियों के सामने भी बड़ी समस्या खड़ी हो गयी है कि उन्हें अब अनावश्यक रूप से रािस्ट्रेशन कराना पड़ेगा।ड्ढr व्यापारियों के साथ-साथ आम लोग इसे यूपीए सरकार की अदूरदर्शिता मान रहे हैं, जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है। वैट लगने के पहले राज्य के व्यावसायिक संगठन फेडरशन चैंबर द्वारा खाद्यान्न और आलू-प्याज को वैट से मुक्त रखने की लगातार मांग के बाद भी सरकार की कानों में जूं नहीं रंगी और गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों के तो निवाले पर भी आफत आ गयी। साथ ही व्यापारियों पर अलग से नकेल कसने का प्रयास किया गया। महंगे होनेवाले सामानों में आटा, सूजी, आलू, प्याज, गेहूं, चावल आदि भी शामिल हैं। राज्य सरकार ने झारखंड में खाद्यान्न और आलू-प्याज को वर्ष 2008 में एक साल के लिए करमुक्त किया था। इसकी अवधि 31 मार्च 200ो खत्म हो गयी। इन चीजों को नये वित्तीय वर्ष में करमुक्त रखने की अधिसूचना जारी नहीं हो सकी और इन सामानों पर चार प्रतिशत की दर से कर लग गया। व्यवसायी भी मौके का फायदा उठाते हुए बिना रािस्ट्रेशन के वैट की राशि लेने लगे हैं।ड्ढr वैट में क्या होगाड्ढr विभाग के नियमानुसार राज्य में खाद्यान्न पर वैट लगते ही पांच लाख से अधिक व्यवसायी कर जमा करने के दायर में आ गये, लेकिन विभाग की तरफ से रािस्ट्रेशन कराने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया। वैट के प्रावधान के तहत पांच लाख से अधिक वार्षिक टर्न ओवर (औसतन 1400 रुपये प्रतिदिन का व्यापार करनेवाले) वाले व्यवसायी टैक्स के दायर में आ जाते हैं। उन्हें सेल्स टैक्स विभाग में रािस्ट्रेशन कराकर टीन नंबर लेना चाहिए। झारखंड में वर्तमान में सात से आठ लाख खुदरा व्यापारी हैं, जिनका टर्नओवर पांच लाख से अधिक है। लेकिन टीन नंबर नहीं ले पाये हैं। विभाग की तरफ से किसी प्रकार का कार्रवाई नहीं की जा रही है। इसके पहले इन व्यवसायियों को विभाग में कर जमा करने का प्रावधान नहीं था। व्यवसायियों का कहना है कि पहले से जो व्यापारी अपना निबंधन कराकर व्यापार कर रहे हैं, उनके द्वारा जमा किये गये कर का एसेसमेंट पेंडिंग है। अगर पांच लाख व्यापारियों का नया निबंधन होगा तो फिर विभाग कैसे काम करगा। इस स्थिति में व्यवसायी भी पिस जायेंगे।