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रसातल में सेंसेक्स

वैश्विक वित्तीय संकट गहराने के साथ भारतीय शेयर बाजार रसातल की गोद में जा बैठा है। जनवरी, 2008 में 21,000 अंकों से ऊपर की रिकॉर्ड ऊंचाई छू चुके मुंबई स्टॉक एक्सचेंज के सेंसेक्स ने गोता खाते हुए 10,000...

 रसातल में सेंसेक्स
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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वैश्विक वित्तीय संकट गहराने के साथ भारतीय शेयर बाजार रसातल की गोद में जा बैठा है। जनवरी, 2008 में 21,000 अंकों से ऊपर की रिकॉर्ड ऊंचाई छू चुके मुंबई स्टॉक एक्सचेंज के सेंसेक्स ने गोता खाते हुए 10,000 अंकों की मनोवैज्ञानिक सीमा तोड़ दी है। कई ब्लूचिप कंपनियों के शेयर 28 महीने पहले के भाव से नीचे आ चुके हैं। कोई नहीं जानता कि बाजार और कितना गिरगा? असली गहरा संकट अमेरिका व यूरोप में है, जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति अपेक्षाकृत सुरक्षित है। फिर भी, तमाम आशंकाओं और भय के चलते भारतीय बाजार उसकी चपेट में आया है तो इसका सीधा अर्थ यही निकाला जा सकता है कि विश्वास के संकट ने घेर लिया है। 60,000 करोड़ रु. की लिक्िवडिटी बढ़ाने के रिार्व बैंक के उपायों के बावजूद स्थिति न सुधरने से यही संकेत मिलता है कि फिलवक्त अनिश्चितता के दौर-दौर में भारतीय बाजार की जान फंसी रहेगी। मामूली सुधार आया भी तो अपने हाथ झुलसा चुके आम निवेशकों को विशेष राहत नहीं मिल सकती। दुर्भाग्य यह है कि विगत के कई बड़े संकटों (हर्षद मेहता व केतन पारिख कांड) के बावजूद आम निवेशकों ने सही सबक नहीं सीखे, वर्ना हालत इतनी खराब नहीं होती। बाजार तेजी के शबाब पर था तो मुनाफावसूली के बजाय वे शेयरों और म्युचुअल फंड्स में अपना निवेश बढ़ाते जा रहे थे और अब जब, तलहटी में समा रहा है तो उनके पास नकदी नहीं बची। इस करुण कहानी की पुनरावृत्ति अनेक बार हो चुकी है और न जाने कितनी बार दोहराई जाएगी। दूसरी बात, अपनी बचत पर आय कमाने के लिए सिर्फ शेयर बाजार पर निर्भर रहना उचित नहीं। बैंकों में एफडी हो या जमीन-मकान की खरीद या फिर लघुबचत योजनाएं, सुरक्षित निवेश के ऐसे विकल्प हमेशा मौजूद रहते हैं और इनमें कम, किंतु निश्चित लाभ मिलता है। ऐसे लोगों की तादाद बहुत बड़ी होगी, जिन्होंने जल्दी व ज्यादा मुनाफे के लालच में अंधाधुंध तरीके से शेयरों में धन लगाया और अब वे रहे हैं। बाजार की लुटिया डूबने के बाद अब सर्वाधिक निचले स्तर पर हड़बड़ी में शेयरों की बिकवाली गंभीर मूर्खता ही कही जाएगी, क्योंकि बुरा वक्त हमेशा कायम नहीं रहता। विगत में कई गंभीर झटके खाने के बावजूद कुछ सालों बाद शेयर बाजार में रौनक फिर लौटी थी। क्या इस उम्मीद पर भरोसा करना बेहतर नहीं होगा?

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