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चुनाव में बटन

मुहर लगाने के दिन लद गए। बटन दबान के दिन आ गए। जब से इस देश की राजनीति में निर्वसन होन की शुरुआत हुई है, बटन का महत्व बढ़ गया है। कपड़ों पर न सही, चुनावों में ही सही। बटन कहीं तो बरकरार है। कुछ तो...

 चुनाव में बटन
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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मुहर लगाने के दिन लद गए। बटन दबान के दिन आ गए। जब से इस देश की राजनीति में निर्वसन होन की शुरुआत हुई है, बटन का महत्व बढ़ गया है। कपड़ों पर न सही, चुनावों में ही सही। बटन कहीं तो बरकरार है। कुछ तो लाज-शरम बची रहेगी। लोग अब पत्र तक नहीं लिखते। कंप्यूटर पर बैठे, ई-मेल कर दिया। मोबाइल पर बातें कर लीं। एसएमएस भेज दिया। जब पत्रों का महत्व घट गया, तो मतपत्रों की क्या मजाल थी! उन्हें भी परिवर्तन की इस आंधी में उड़ना ही था। अब न मतपत्र रहे, न मतपेटियां। ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) ने चुनावों का कारोबार संभाल लिया है। जब इस मुल्क में राजनीति का औद्योगीकरण हो गया है, तब चुनावी प्रक्रिया का मशीनीकरण तो होना ही था। अब मतदाता वोट डालने नहीं आते हैं, बटन दबाने आते हैं। मशीन के सामने खड़े हुए, दबाया और डल गया। न मतपेटी, न पैड, न मुहर, न लोहे की पत्ती से मतपत्र ठूंसते मतदान कर्मी। धोती वाली राजनीति का युग गया। पायजामा पहनने वाले फ॥कत अपने नारे ही लगाते रह गए। पैंट-कोट वाले ‘जिपों’ं और ‘चेनों’ में फंसकर रह गए। राजनीतिक वेशभूषा से बटन खारिज होता जा रहा था। भूले-भटके से अगर लोग कुर्ता-सदरी में बटन लगवाते भी थे, तो सीना खोल कर चलन की वजह से बटन का महत्व दा कौड़ी का हो चुका था। सीनाखोल बाहुबलियों को बटन से क्या लेना-देना? वे तो बंदूक की बट जानते हैं। एक वह भी जमाना था, जब नेता अपनी अचकनों में बटन के साथ फूल भी लगाया करते थे। आज फूल पर बटन दबान के नारे सुनाई पड़ते हैं। कोई कहता है, हाथी पर बटन दबाओ। कोई कैंची पर, कोई साइकिल पर। एक पार्टी तो हाथ पर ही बटन दबवा रही है। किसी मसखरे ने जब ऐसी ही अपीलें सुनीं तो बोला,‘क्यों साहब, इनके फूलों, पंजों, हाथियों, घोड़ों वगैरह पर सुई-धागे से ही बटन न टांक दें! पुख्ता जुगाड़ रहेगा। कपड़ों पर फूल की कढ़ाई तो सुनी थी, फूल पर बटन की लगवाई ! बहुत खूब।’ पहले उद्घाटन फीता काट कर होता था, अब वह भी बटन दबा कर होता है। सुदूर बैठे हुए माननीय जी रिमोट के जरिए बटन दबाते हैं। रिमोट एरियाओं में निवास करने वाली पब्लिक भौंचक देखती रह जाती है। चुनाव आते हैं। वे गुहार लगाते हैं-‘बटन दबाइए।’ पब्लिक समझ रही है, वे बटन के बहाने अपना ‘काज’ संवारन की फिराक में हैं। चुनावोपरांत असली बटन उनके हाथ में होता है। तब वे उसके सुराख से सुई की मानिंद निकल लेते हैं।

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