चुनाव आचार संहिता को दुरुस्त करने की जरूरतः कुरैशी
मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने रविवार को कहा कि चुनावों में आदर्श आचार संहिता को और अधिक दुरुस्त करने की जरूरत है, जिसे वैधानिक संरक्षण देने के एक विवादास्पद कदम को सरकार ने जल्दीबाजी में वापस...
मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने रविवार को कहा कि चुनावों में आदर्श आचार संहिता को और अधिक दुरुस्त करने की जरूरत है, जिसे वैधानिक संरक्षण देने के एक विवादास्पद कदम को सरकार ने जल्दीबाजी में वापस लिया था।
कुरैशी ने उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान संपन्न होने के बाद कहा कि चुनाव आयोग के पास कानून के तहत निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव कराने के पर्याप्त अधिकार हैं और ज्यादा अधिकारों की जरूरत नहीं है।
उत्तर प्रदेश में हाल ही में सरकार के कुछ मंत्री और नेता आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के कारण घेरे में आए। कुरैशी ने कहा कि हमें और अधिकारों की जरूरत नहीं है। आदर्श आचार संहिता पर्याप्त है। लेकिन हमें आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के लिए दंड को और अधिक सख्त करने के लिए जन प्रतिनिधित्व कानून के कुछ प्रावधानों को दुरुस्त करने और उन्हें आधुनिक बनाने की जरूरत है।
जब कुरैशी से पूछा गया कि क्या आयोग को और अधिकारों की जरूरत है तो उन्होंने कहा कि हमने दिखा दिया है कि हमारे अधिकार पर्याप्त हैं और हमने विवेकपूर्ण तरीके से उनका इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि कानून के तहत आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के लिए फिलहाल जुर्माना हास्यास्पद है। उदाहरण के लिए कानून के तहत उल्लंघन के लिए केवल 500 रुपये का जुर्माना तय है, जिसे मौजूदा हकीकतों की तर्ज पर लाने के लिए संशोधन की जरूरत है।
आदर्श आचार संहिता के लिए वैधानिक संरक्षण की दलील का विरोध करते हुए सीईसी ने कहा कि यह एक विशेष दस्तावेज है जिसे राजनीतिक दलों ने चुनावों के दौरान अनुशासन के लिए खुद विकसित किया। उन्होंने कहा कि यह बहुत प्रभावी तरीके से काम कर रहा है। इसमें केवल कुछ सुधारों की जरूरत है।
हाल ही में चुनाव आयोग ने केंद्रीय मंत्रियों सलमान खुर्शीद, बेनी प्रसाद वर्मा और श्रीप्रकाश जायसवाल को उनके विवादास्पद बयानों पर आदर्श आचार संहिता के कथित उल्लंघन के लिए नोटिस थमाये थे।
इस बीच प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता वाले एक मंत्रिसमूह के एजेंडे में आदर्श आचार संहिता को वैधानिक संरक्षण देने पर विचार किया गया, लेकिन प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों की आलोचनाओं के बाद इसे जल्दीबाजी में वापस ले लिया गया। प्रतिद्वंद्वी दलों ने सरकार पर चुनाव आयोग के अधिकारों को कम करने की कोशिश करने का आरोप लगाया था।
आलोचकों की दलील थी कि आदर्श आचार संहिता को वैधानिक संरक्षण देना चुनाव में उल्लंघनों पर चुनाव आयोगों के अधिकारों को लेने और उन्हें अदालतों को देने के समान होगा जिससे बहुत विलंब होगा। इससे आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले को लंबा समय मिलेगा जबकि मौजूदा प्रणाली के तहत आयोग हालात से निपटने के लिए तत्काल हस्तक्षेप कर सकता है।
कुरैशी ने कहा कि दुनिया आदर्श आचार संहिता को हैरानी के साथ देखती है। यह एक विशेष तरह का दस्तावेज है। किसी को आदर्श आचार संहिता का अवमूल्यन नहीं करना चाहिए। आदर्श आचार संहिता को वैधानिक संरक्षण देने के सरकार के कदम पर आपत्ति जताते हुए कुरैशी ने मौजूदा प्रणाली का ही समर्थन किया।
सीईसी ने कहा कि आदर्श आचार संहिता को वैधानिक संरक्षण देना बहुत हल्का सुझाव है। जब हमें किसी अधिकार की जरूरत नहीं है तो आप हमें जबरन इसे क्यों दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि आदर्श आचार संहिता त्वरित कार्रवाई की तरह है जो उसी तरह काम करती है जैसे आग बुझाने के लिए दमकल।
कुरैशी ने कहा कि यदि ऐसे मामले अदालत में जाते हैं तो छह से सात साल लगेंगे। अभी यह बहुत प्रभावी है। उन्होंने कहा कि आपने पिछले तीन-चार साल में देखा है कि कोई नफरत भरा भाषण या एक-दूसरे के खिलाफ निजी हमला नहीं हुआ है। यह देश के कई कानूनों से अधिक प्रभावी है।