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गहराता रहस्य

एटीएस की रपटों के लीक होने के साथ उग्र हिंदू संगठनों की गतिविधियों पर संदेह की छाया गहराती जा रही है। इसी के साथ गहरा होता जा रहा है आतंकवाद पर छिड़ा विवाद। राज्य के आतंकवाद बनाम कमजोर देश और...

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लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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एटीएस की रपटों के लीक होने के साथ उग्र हिंदू संगठनों की गतिविधियों पर संदेह की छाया गहराती जा रही है। इसी के साथ गहरा होता जा रहा है आतंकवाद पर छिड़ा विवाद। राज्य के आतंकवाद बनाम कमजोर देश और अल्पसंख्यक समाज के आतंकवाद का विवाद तो बहुत पुराना है। अमेरिका ने अल-कायदा के बहाने जब अफगानिस्तान पर हमला किया था, तब नोम चॉमस्की जसे बुद्धिाीवियों ने अमेरिकी आतंकवाद पर निशाना साधा था। भारत में आजकल बहुसंख्यक आतंकवाद बनाम अल्पसंख्यक आतंकवाद की बहस छिड़ी हुई है। देश के सेक्यूलर बुद्धिाीवी और अल्पसंख्यक समाज के प्रतिनिधि इस बात से खुश हैं कि चलो बहुसंख्यक समाज का आतंकवाद पकड़ लिया गया है, इसलिए अल्पसंख्यक समाज के आतंकवाद की चर्चा कम होगी। आतंकवाद की वास्तविक घटनाओं की जांच से अलग एक तरह से देश में आतंकवाद पर जवाबी कव्वाली चल रही है, लेकिन अगर हिंदू संगठनों के भीतर ऐसे उग्रवादी पैदा हो गए हैं, जो संघ परिवार के शीर्ष नेताओं को ही खत्म करने की साजिश रच रहे थे तो यह मामला सिर्फ नकारने या प्रत्यारोप से हल होने वाला नहीं है। इन खबरों से देश का सभ्य समाज ही नहीं, उदार हिंदू भी बेचैन है। वह जानता है कि संघ ने पहले यह मिथक पैदा किया कि हिंदू सांप्रदायिक नहीं हो सकता, वह तो स्वाभाविक रूप से धर्मनिरपेक्ष है। फिर उन्होंने पूरी ताकत लगा कर उसके एक हिस्से को सांप्रदायिक बना दिया। अब उन्हीं के भीतर से यह मिथक भी टूटने को तैयार है कि हिंदू आतंकवादी नहीं हो सकता। इसमें कोई दो राय नहीं कि जिन मूल मुद्दों के आधार पर संघ परिवार ने हिंदू समाज को गोलबंद करना शुरू किया था, उनमें से किसी एक को भी वे पूरा नहीं कर सके हैं। ऐसे में उनके समर्पित कार्यकर्ताओं में निराशा होना स्वाभाविक है। जब पार्टी सत्ता से दूर रहती है तो यह निराशा और भी बढ़ती है। ये प्रवृत्तियां एक हद तक बढ़ जाने के बाद सत्ता मिलने से खत्म नहीं होतीं। लेकिन किसी भी समाज का बड़ा हिस्सा हिंसक नहीं होता, चाहे वह बहुसंख्यक हो या अल्पसंख्यक। आज जरूरत भारतीय समाज के आत्ममंथन की है ताकि वह अहिंसा और सहिष्णुता के उन मूल्यों को फिर कायम कर सके जिनके आधार पर राष्ट्रपिता ने भारतीय लोकतंत्र की नींव रखी थी और जिनके बिना कोई लोकतंत्र चल नहीं सकता।

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