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किसी ने नहीं ली किसानों की सुधि

अब तो शांत हो गई चुनाव की दुदुंभि लेकिन नहीं ली गई किसानों की सुधि। उम्मीदवारों के समर्थन में प्रचार के लिए राजनीतिक दलों के नेता उड़नखटोले पर हवा में उड़ते रहे और किसान क्रय केन्द्रों के पास धान के...

 किसी ने नहीं ली किसानों की सुधि
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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अब तो शांत हो गई चुनाव की दुदुंभि लेकिन नहीं ली गई किसानों की सुधि। उम्मीदवारों के समर्थन में प्रचार के लिए राजनीतिक दलों के नेता उड़नखटोले पर हवा में उड़ते रहे और किसान क्रय केन्द्रों के पास धान के बोरों पर रातें गुजारते रहे। कुछ दिन पहले तक खाद की कालाबाजारी, सिंचाई सुविधाओं का अभाव और समर्थन मूल्य से जुड़ी समस्याएं नेतागिरी के लिए मुद्दा बनी रहीं। लेकिन चुनाव आते ही किसान राजनीतिक दलों के एजेन्डे से गायब हो गये। नतीजा यह हुआ कि एक बार फिर चुनावी मुद्दा नहीं बन सका खेती-किसानी। उनके वोटों पर तो सबकी नजर रही लेकिन बुनियादी समस्याओं में उलझे किसानों के मुद्दे किसी ने नहीं उठाये।ड्ढr ड्ढr हद तो यह है कि सूबे के लगभग 14 लाख किसानों के लगभग 2600 करोड़ की ऋण माफी की केन्द्र की उपलब्धि को कांग्रेस ने भी भुनाने से परहेा किया तो किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए दर्जनाधिक योजनाएं चलाने वाली राज्य सरकार के नुमाइंदे भी उनसे आंख चुराते रहे। वाम दलों के प्रभाव वाले क्षेत्रों में भी किसान चुनावी मुद्दा नहीं बन सके। सभी उन्हें ‘मधुमक्खी का खोता’ मान उसमें हाथ डालने से बचते रहे। लोकसभा चुनाव के दौरान सूबे में विकास की चर्चा चहुंओर हुई।ड्ढr ड्ढr चकाचक सड़क, भीड़ भर अस्पताल और केन्द्र की विकास योजनाओं की चर्चा सबने अपने-अपने ढंग से की। पर राज्य के 70 फीसदी किसान इससे बाहर रहे। राजनीतिक दलों को पता है कि सूबे में खेती योग्य भूमि का आधा हिस्सा अभी सिंचाई सुविधाओं से वंचित है। समर्थन मूल्य पाने के लिए किसान क्रय केन्द्रों पर मार-मार फिरते रहे और खाद की किल्लत उनकी परशानी का सबसे बड़ा कारण बनी रही। राज्य में खेती योग्य भूमि लगभग 7लाख हेक्टेयर है लेकिन उसमें 47.67 लाख हेक्टेयर भूमि पर ही सिंचाई की सुविधा है। कुल सिंचित भूमि का 63 प्रतिशत नलकूप पर आश्रित है। सरकारी नलकूपों की स्थिति क्या है इसे किसान और राजनेता दोनों बेहतर जानते हैं। इसके अलावा राज्य में प्रति हेक्टेयर 125 किलोग्राम खाद की जरूरत होती है। केन्द्र से प्राप्त आवंटन से भी इसकी पूर्ति नहीं की जा सकती। किसानों को समथर्न मूल्य पाने का हाल यह है कि 8 अप्रैल तक 8,14,5टन धान की खरीद हो सकी थी। राज्य सरकार की एजेंसियों में पैक्सों ने किसानों से सबसे अधिक 2,70,टन धान की खरीद की है। वहीं बिस्कोमान और राज्य खाद्य निगम ने क्रमश: 1,15,858 टन और 53,782 टन धान खरीदा है।

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