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अज्ञान और आत्मविश्वास

पिछले कई साल से मैं ऐसे विषयों पर लगातार लिख रहा हूं, जिनके बारे में मैं कुछ नहीं जानता। इसकी वजह यह है कि अगर मैं उन विषयों पर ही लिखने का तय करूं, जिनके बार में मैं जानता हूं, तो मैं कुछ नहीं लिख...

 अज्ञान और आत्मविश्वास
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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पिछले कई साल से मैं ऐसे विषयों पर लगातार लिख रहा हूं, जिनके बारे में मैं कुछ नहीं जानता। इसकी वजह यह है कि अगर मैं उन विषयों पर ही लिखने का तय करूं, जिनके बार में मैं जानता हूं, तो मैं कुछ नहीं लिख पाऊंगा। मैं जो करता हूं, उसे पत्रकारिता कहते हैं। पत्रकारिता में दो तरह के लोग होते हैं, एक वे जो कुछ नहीं जानते, दूसरे वे जो जिसके बारे में जानते हैं, उसके बार में नहीं लिखते। लेकिन पत्रकार ही अकेले नहीं हैं, जो अपने अज्ञान और दुस्साहस के जरिए अपना काम चलाते हैं। एक और जमात है जिसमें अज्ञान और दुस्साहस पत्रकारों से हाार गुना ज्यादा है और इसलिए वे पत्रकारों से करोड़ गुना ज्यादा सफल हैं, ये लोग आधुनिक मैनेजर हैं। मैनेजमेंट का नियम है कि जहां तक हो जानकारी से दूर रहा जाए। खासतौर पर उस विषय की जानकारी, जिसका मैनेजमेंट करना हो। मैनेजमेंट का दूसरा नियम है कि आत्मविश्वास प्रबल हो, और ऐसा आत्मविश्वास, अज्ञान के साथ-साथ ही बढ़ता है। इसीलिए मैनेजरों को पाइलट, बस ड्राइवर, ऑटो ड्राइवर आदि नहीं बनाया जाता। उन्हें डॉक्टर या नाई या कसाई भी कोई नहीं बनाता। इन सार कामों के लिए इन कामों की न्यूनतम जानकारी जरूरी है। अगर किसी मैनेजर को ऑटो रिक्शा चलाने का काम दिया जाए तो वह दो चीजें भूल कर नहीं जानेगा, ऑटो रिक्शा चलाना और शहर की कौन-सी सड़क कहाँ जाती है। इसलिए मैनेजरों को दूसर किस्म के काम दिए जाते हैं, कारखाने चलाना, बैंक और वित्तीय संस्थान चलाना आदि। इससे फायदा यह है कि देर-सबेर अगर ये कारखाने, उद्योग, व्यापार वित्तीय संस्थान डूब भी गए, जो कि डूबते ही हैं, तो ज्यादा समस्याएं नहीं होतीं। अगर कोई समस्या बहुत बड़ी हुई तो वह राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय समस्या बन जाती है और उसे सरकारं या संयुक्त राष्ट्र हल करते हैं और मैनेजर हवाई या होनोलुलू में समुद्र किनार पर छुट्टियां बिताने चले जाते हैं। कुछ मैनेजर जो किन्हीं वजहों से छुट्टी मनाने नहीं जा पाते, वे सरकार या संयुक्त राष्ट्र के सलाहकार हो जाते हैं। उनकी सलाह की वजह से जब संकट और गहरा होता है तो वे छुट्टियां मनाने चले जाते हैं। और अगर तब भी नहीं जा पाते तो फिर गहराए हुए संकट से निपटने के लिए सलाह देने लगते हैं। और जब संकट टल जाता है, क्योंकि कोई भी संकट हमेशा नहीं रहता, तब वे फिर से संस्थान चलाने लगते हैं। अब आप समझ गए होंगे कि सारी दुनिया में आर्थिक संकट किस तरह आया हुआ है।

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