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ग्रुप-सी कर्मियों पर लगाम के लिए लोकपाल जरूरी: हजारे पक्ष

अन्ना हजारे पक्ष ने लोकपाल के दायरे में निचली नौकरशाही को लाने की नए सिरे से मांग करते हुए सोमवार को दावा किया कि हर वर्ष गरीबों के लिए निर्धारित 30000 करोड़ रुपये के राशन में ग्रुप सी के कर्मचारी...

ग्रुप-सी कर्मियों पर लगाम के लिए लोकपाल जरूरी: हजारे पक्ष
एजेंसीMon, 05 Dec 2011 11:00 PM
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अन्ना हजारे पक्ष ने लोकपाल के दायरे में निचली नौकरशाही को लाने की नए सिरे से मांग करते हुए सोमवार को दावा किया कि हर वर्ष गरीबों के लिए निर्धारित 30000 करोड़ रुपये के राशन में ग्रुप सी के कर्मचारी हेरफेर करते हैं, जिससे निपटने के लिये प्रभावी भ्रष्टाचार रोधी तंत्र जरूरी है।

हजारे-पक्ष की ओर से जारी बयान में सरकार के लोकपाल विधेयक और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की सदस्य अरुणा रॉय के नेतृत्व वाले नेशनल कैम्पेन फॉर पीपुल्स राइटस टू इन्फॉर्मेशन (एनसीपीआरआई) के मसौदा विधेयक में खामियां बताई गईं।

सरकार के विधेयक में निचली नौकरशाही को केंद्रीय सतर्कता आयोग के ही दायरे में रखने और एनसीपीआरआई के मसौदे में ग्रुप सी के मामलों की पहले पुलिस की ओर से जांच कराए जाने की बात कही गई है। हजारे-पक्ष की ओर से जारी वक्तव्य में कहा गया कि जो तथाकथित निरीक्षक भ्रष्टाचार में लिप्त रहने के लिए सबसे ज्यादा बदनाम रहते हैं, वे ग्रुप सी के कर्मचारी होते हैं। राज्य स्तर पर सबसे अधिक भ्रष्टाचार ग्रुप सी के कर्मचारी करते हैं।

वक्तव्य में दावा किया गया कि हर वर्ष गरीबों के लिए निर्धारित करीब 30000 करोड़ रुपये मूल्य के राशन में ग्रुप सी के कर्मचारी हेरफेर कर देते हैं। नरेगा के कामकाज में भी ग्रुप सी के कर्मचारी ही करोड़ों रुपये की अनियमितता करते हैं। पंचायत के सचिव और अधिकारी ग्रुप सी के कर्मी होते हैं। पंचायत के स्तर पर होने वाले कामकाज में भी बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होता है।

सरकार की दलील है कि लोकपाल के दायरे में अगर पूरी नौकरशाही को रखा जाए तो उस पर अत्यधिक बोझ पड़ जाएगा। इसकी प्रतिक्रिया में हजारे-पक्ष का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुसार तो भारत को 57 लाख कर्मचारियों के भ्रष्टाचार के मामलों के निपटने के लिए 28500 के स्टाफ की जरूरत पड़ेगी।

हजारे-पक्ष ने बयान में कहा कि सीवीसी के पास 230 कर्मी हैं। क्या सरकार उसे अतिरिक्त 28500 कर्मी मुहैया कराएगी। अगर यह दलील स्वीकार्य है क्या तब सीवीसी के लिए कामकाज मुश्किल नहीं हो जाएगा। बयान के अनुसार, हम यह कैसे अनुमान लगा सकते हैं कि उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार ग्रुप ए या ग्रुप बी के अधिकारी ही करते हैं और हम कैसे यह अंदाज लगा सकते हैं कि ग्रुप सी के अधिकारी छोटे स्तर के भ्रष्टाचार में लिप्त होते हैं। ऐसे उदाहरण रहे हैं जब ग्रुप सी के अधिकारियों ने मिलीभगत की और विशेषकर नरेगा तथा पीडीएस जैसे हजारों करोड़ रुपये के घोटालों में लिप्त रहे।

हजारे-पक्ष की दलील है कि सीवीसी के पास पुलिस अधिकारी नहीं होते और वह आपराधिक मामला दर्ज नहीं कर सकता। लोकपाल और सीवीसी के तहत दो अलग-अलग पुलिसिया तंत्र रखने के तर्क पर भी हजारे-पक्ष ने सवाल उठाए हैं।

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