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इस्तीफों के मायने

मुंबई पर आतंकी हमले के बाद यूपीए सरकार भारी दबाव में है। पहले केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल फिर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विलास राव देशमुख और वहां के उप-मुख्यंत्री आर. आर. पाटिल के इस्तीफे से यह...

 इस्तीफों के मायने
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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मुंबई पर आतंकी हमले के बाद यूपीए सरकार भारी दबाव में है। पहले केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल फिर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विलास राव देशमुख और वहां के उप-मुख्यंत्री आर. आर. पाटिल के इस्तीफे से यह बात साफ हो गई है। इससे पहले कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी इस्तीफा की पेशकश की थी, जिसे सभी ने ठुकरा दिया। इस तरह की पेशकश कुछ और बड़े पदों पर बैठे व्यक्ितयों की तरफ से भी की गई बताई जाती है। इन इस्तीफों के कुछ अर्थ हैं, जिन्हें हमें समझना चाहिए। पहला अर्थ तो यह है कि हमारा राजनीतिक नेतृत्व इतनी बड़ी वारदात की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए, दूसर लोगों को जिम्मा देने और नई व्यवस्था गढ़ने का मार्ग प्रशस्त करना चाहता है। दूसरा अर्थ यह है कि चूंकि यह हमला सामान्य मध्य या निम्न वर्ग के भीड़ भर बाजारों के बजाय, वैश्विक आर्थिक सत्ता के प्रतिनिधियों और मुंबई के धनाढय़ वर्ग पर हुआ है, इसलिए अब सरकार इसे भुला देने का आह्वान कर नहीं सकती। तीसरा अर्थ मौजूदा विधानसभा और आगामी लोकसभा चुनावों में सत्तारूढ़ यूपीए के राजनीतिक भविष्य से भी जुड़ा है। उसे लग रहा है कि इन इस्तीफों से वह अपने राजनीतिक नुकसान की थोड़ी भरपाई कर सकती है। इन इस्तीफों का एक अर्थ सामान्य जनता भी लेगी और वो यह कि जब मुंबई की लोकल ट्रेनों, जयपुर और दिल्ली के बाजारों में बम धमाके हुए और सामान्य व्यक्ित मार गए, तब किसी मंत्री ने इस्तीफा देने का साहस नहीं दिखाया। पर विशिष्ट वर्ग पर हमला हुआ तो बड़े-बड़ेमहारथी धराशायी होने लगे। इसी तरह का संदेश उत्तर प्रदेश और बिहार की वह जनता भी निकाल सकती है, जो शिवसेना के गुंडों की मार खा कर महाराष्ट्र और दिल्ली की सरकारों से कोई न्याय की उम्मीद नहीं कर पा रही थी। इस्तीफों के इन विभिन्न अर्थो के बावजूद अगर कोई सरकार देर से ही दुरुस्त हो जाए तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए। राजनीति और उसके प्रतिनिधियों की चौतरफा आलोचना के बीच चुनावों से पहले इस्तीफे महा नाटक नहीं कहे जा सकते। वे इस बात के द्योतक हैं कि परिस्थितियों और समाज के दबाव में अब राजनेता नैतिक जवाबदेही से बच नहीं सकते। लेकिन एसी गतिशीलता यहीं नहीं रुकनी चाहिए। उसे सिर्फ खोटे सिक्कों को खर सिक्कों से बदल कर खामोश नहीं होना चाहिए। उससे एसी नई प्रणाली का निर्माण भी किया जाना चाहिए, जो दिन-रात इतनी चौकस रहे कि फिर कोई अंधेरा रोशनी को डंसने की हिम्मत न कर सके।ं

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