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मंदी से मोर्चा

अमेरिका, यूरोप, चीन और मंदी की मार झेल रहे दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत सरकार के 32 हाार करोड़ रुपए के राहत पैकेा की घोषणा से संबंधित क्षेत्रों ने राहत की सांस जरूर ली है पर वे संतुष्ट नहीं हैं।...

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लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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अमेरिका, यूरोप, चीन और मंदी की मार झेल रहे दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत सरकार के 32 हाार करोड़ रुपए के राहत पैकेा की घोषणा से संबंधित क्षेत्रों ने राहत की सांस जरूर ली है पर वे संतुष्ट नहीं हैं। कारपोरट सेक्टर ने इसे नाकाफी बताते हुए एक और पैकेा की उम्मीद लगा रखी है। उसका कहना है कि सरकार ने तो राजकोषीय राहत दी है, वास्तविक राहत अभी आनी है। इसके अलावा इस पैकेा से निकलने वाले वास्तविक कार्यक्रमों की घोषणा अभी होनी है। जहां लोग अमेरिका के आगामी राष्ट्रपति ओबामा को आर्थिक संकट से निपटने के लिए आइजनहावर और रूावल्ट बनने की सलाह दे रहे हैं, वहीं अपने यहां मनमोहन सिंह को भी लखनऊ का नवाब आसफुद्ददौला बनने की सलाह दी जा रही है, जो लोगों को रोगार देने के लिए दिन में इमारत बनवाता था और रात में गिरवा देता था। चुनाव को कुछ महीने बचे होने के कारण हर किसी ने सरकार से लगातार लोकप्रिय पैकेा के रूप में खजाना खोलते जाने की उम्मीद लगा रखी है। सरकार ने आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों को देखते हुए मंदी से मोर्चा खोल भी दिया है। पर आगे मंदी क्या रूप लेती है, यह अभी देखा जाना है। इन उम्मीदों और आशंकाओं के बावजूद, उद्योग, कपड़ा, हाउसिंग और ऑटोमोबाइल क्षेत्र में जान फूंकने की सरकार की कोशिशों को सराहा जाना चाहिए। उम्मीद की जा रही है कि इससे कमर्शियल गाड़ियों की मांग बढ़ेगी। उधर जब सार्वजनिक बैंक 20 लाख तक हाउसिंग लोन लेने वालों को और छूट देंगे तो रीयल एस्टेट का बाजार जोर पकड़ेगा। सीमेंट, इस्पात और निर्माण उद्योग के अन्य अवयवों को राहत देने के साथ गरीबों के लिए भवन निर्माण की इंदिरा आवास योजना पर ज्यादा खर्च किए जाने से हाउसिंग उद्योग को ताकत मिलेगी ही, रोगार के अवसर भी बनेंगे। सरकार ने ढांचागत योजनाओं को बढ़ावा देने के लिए योजनागत खर्च में जो 20 हाार करोड़ रुपए अतिरिक्त लगाने का एलान किया है, उससे उम्मीद है कि सड़क, पुल और बंदरगाह के निर्माण के काम में तेजी आएगी। सरकार के इस पैकेा का इरादा अर्थव्यवस्था को गति देने और सात प्रतिशत वृद्धि दर बनाए रखने के लिए है। लेकिन इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करगी कि इसे लागू करने वाली प्रशासनिक मशीनरी और बाजार की ताकतें, थोड़े समय में इस बड़े पैकेा का लाभ उठाने के लिए कितना उत्साह और चुस्ती दिखाती हैं।

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