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अफसरशाही की भेंट चढ़ रही हैं सूबे की ग्रामीण सड़कें

सूबे की ग्रामीण सड़कें भी अफसरशाही की भेंट चढ़ती दिख रही है। ग्रामीण सड़कों के निर्माण की दुर्दशा की बयां करने के लिए सिर्फ एक उदाहरण काफी है। वित्तीय वर्ष 2008-0े दो -तिहाई समय बीत गये पर मात्र एक...

 अफसरशाही की भेंट चढ़ रही हैं सूबे की ग्रामीण सड़कें
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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सूबे की ग्रामीण सड़कें भी अफसरशाही की भेंट चढ़ती दिख रही है। ग्रामीण सड़कों के निर्माण की दुर्दशा की बयां करने के लिए सिर्फ एक उदाहरण काफी है। वित्तीय वर्ष 2008-0े दो -तिहाई समय बीत गये पर मात्र एक तिहाई योजनाओं की ही प्रशासनिक स्वीकृति अब तक मिल पायी है। और तो और वित्तीय वर्ष 2007-08 में चयनित योजनाओं के टेंडर का क्लीयरंस भी मुख्यालय स्तर के वरीय अधिकारियों की शिथिलता के कारण नहीं हो पा रहा है। स्थिति इतनी खराब है कि एक ही योजना का टेक्िनकल बीड चार-चार महीने तक लंबित रखा जा रहा है। फाइनेंसियल बीड भी मामला ‘सलटाने’ में भी महीने से ऊपर समय लगाया जा रहा है।ड्ढr ड्ढr विभागीय अधिकारियों की मानें तो इन तकनीकी बाधाओं के कारण ही निर्माण की राशि उपलब्ध रहते हुए भी सड़कें नहीं बन रहीं है। इसका असर यह है कि धरातल पर विकास कार्य दिख नहीं रहा है और सरकार की छवि धूमिल हो रही है। धरातल पर सड़क निर्माण के लिए जिम्मेवार अधिकारियों को स्थानीय स्तर पर जनविरोध का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे अधिकारियों ने विभाग के उच्च अधिकारियों के पास कई बार गुहार लगाई है कि जिन योजनाओं का मुख्यमंत्री ने शिलान्यास कर दिया है कम से कम उन योजनाओं का तकनीकी क्िलयरंस शीघ्र कर काम शुरू करने की अनुमति दी जाए। उनका मानना है किमुख्यालय स्तर पर अधिकारियों की शिथिलता के कारण हीमुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना, नाबार्ड, न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम समेत गांवों के सड़कों की कायाकल्प वाली कई योजनाएं अब भी फाइलों में दौड़ लगारही हैं।

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