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ब्याज दरों में और कमी संभव

वित्तीय संकट से गुजर रही अर्थव्यवस्था के भविष्य को लेकर अभी भी अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं। मध्यावधि आर्थिक समीक्षा के तहत सरकार ने मौजूदा स्थितियों पर चिंता जताते हुये आगामी दिनों में मौद्रिक...

 ब्याज दरों में और कमी संभव
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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वित्तीय संकट से गुजर रही अर्थव्यवस्था के भविष्य को लेकर अभी भी अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं। मध्यावधि आर्थिक समीक्षा के तहत सरकार ने मौजूदा स्थितियों पर चिंता जताते हुये आगामी दिनों में मौद्रिक और प्रशासनिक प्रोत्साहनों की नई खुराक देने का संकेत दिया है। निकट भविष्य में रिार्व बैंक की ओर से ब्याज दरों में और कमी की सौगात भी आम उपभोक्ताओं और उद्योग जगत को हासिल हो सकती है। साथ ही सरकार ने अपने इस महत्वपूर्ण दस्तावेज के जरिए इस बात का भी संकेत दिया है कि वह संसद में बीमा संशोधन विधेयक पेश करने के बाद अब आर्थिक सुधारों की गति को तेज करने के लिए जल्द ही अन्य कदम भी उठा सकती है ताकि अर्थव्यवस्था की विकास गति को फिर से 8.5 सेीसदी के स्तर पर लौटाया जा सके। सरकार ने साफ तौर पर माना है कि वैश्विक संकट के चलते विकसित देशों के प्रभावित होने का दुष्प्रभाव भारत पर भी गहरा पड़ा है। लिहाजा, स्थितियों को सुधारने के लिए ब्याज दरों में कमी की दिशा में अपेक्षाकृत तेजी से काम किये जाने की जरूरत है। घरलू अर्थव्यवस्था में वैश्विक संकट के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए आर्थिक सुधारों को भी तेज किया जाना चाहिये। समीक्षा के मुताबिक चालू वित्त वर्ष के दौरान आर्थिक विकास दर महा सात फीसदी पर भी सिमट सकती है जबकि इससे पहले अर्थव्यवस्था के लगभग 7.5 फीसदी के आसपास बने रहने के संकेत थे। इसके पीछे अहम वजह चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही के दौरान अर्थव्यवस्था की विकास दर में गिरावट को माना जा रहा है। अलबत्ता सरकार ने मान लिया है कि महंगाई के मोर्चे पर उसे आने वाले दिनों में राहत मिलना तय है और यह सामान्य स्तर पर जरूर आ जाएगी। इसकी वजह जिंसों और पेट्रोल व डीाल के मूल्यों में कमी है। संसद में आज वित्त मंत्रालय की ओर से पेश इस मध्यावधि आर्थिक समीक्षा के मुताबिक आने वाले 6 से 12 महीनों के दौरान अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मौद्रिक उपायों की जरूरत महसूस की जाएगी। खासतौर पर खस्ताहाल मैन्युफैक्चरिंग स्थिति को संभालने के लिए ब्याज दरों में कमी के साथ बाजार में धन की अपेक्षित उपलब्धता को भी विशेष अहमियत दी जाएगी।

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