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पाशा की धमकी

पाकिस्तान की गुप्तचर संस्था आईएसआई के प्रमुख अहमद शुजा पाशा की धमकी के बाद प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने तीनों सेना प्रमुखों के साथ मुलाकात करके सुरक्षा तैयारियों का जायजा लिया। यह खतरा अब तक बना...

पाशा की धमकी
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 16 May 2011 10:55 PM
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पाकिस्तान की गुप्तचर संस्था आईएसआई के प्रमुख अहमद शुजा पाशा की धमकी के बाद प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने तीनों सेना प्रमुखों के साथ मुलाकात करके सुरक्षा तैयारियों का जायजा लिया। यह खतरा अब तक बना हुआ है कि एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन के अमेरिकियों के हाथों मारे जाने के बाद पाकिस्तानी फौजी तंत्र अपनी जनता का ध्यान बंटाने के लिए भारत के खिलाफ आक्रामक हो जाए। जाहिर है, भारतीय सुरक्षा व्यवस्था को भी पाकिस्तान की ओर से किसी कार्रवाई के लिए सतर्क रहना चाहिए, लेकिन यह भी जरूरी है कि भारत अपनी ओर से स्थिति को ज्यादा उग्र बनाने की चाहे-अनचाहे कोई कोशिश न करे, क्योंकि पाकिस्तानी सैन्य तंत्र यही चाहता है। यह बयानों का सिलसिला भारतीय थलसेना प्रमुख जनरल वी. के. सिंह के एक साधारण बयान से शुरू हुआ था। उनसे किसी पत्रकार ने पूछा कि क्या भारत एबटाबाद में अमेरिकी कार्रवाई की तरह की कार्रवाई करने में सक्षम है। जनरल सिंह ने कहा कि हम ऐसा करने में सक्षम हैं। इस बयान पर पाकिस्तानी तंत्र ने कुछ यूं प्रतिक्रिया दी, जैसे थलसेनाध्यक्ष ने ऐसी कार्रवाई करने की बात की है। इसमें सबसे भड़काऊ बयान शुजा पाशा का है कि अगर भारत ने ऐसा कुछ किया, तो पाकिस्तान ने भारत में अपने निशाने ढूंढ़ रखे हैं और वहां हमला करने की रिहर्सल भी कर ली है, हालांकि भारत सरकार की ओर से यह साफ कर दिया गया था कि भारत का ऐसी कार्रवाई करने का कोई इरादा नहीं है। दरअसल पाकिस्तानी सेना इस वक्त 1971 की हार के बाद अपने देश में विश्वसनीयता का सबसे बड़ा संकट झेल रही है। वहां की फौज ने कभी नागरिक शासन को जमने नहीं दिया और न प्रभावशाली होने दिया। पाकिस्तान के बजट का एक चौथाई से ज्यादा हिस्सा सेना पर खर्च होता है और विदेशी सहायता का बड़ा हिस्सा भी सेना के ही हाथ लगता है। इन आर्थिक और राजनैतिक हितों को बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र मजबूत न हो और नागरिक प्रशासन इतना कमजोर रहे कि प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सत्ता सेना के ही हाथ में रहे। अब पाकिस्तान में ये सवाल उठ रहे हैं कि ओसामा एबटाबाद में फौजी अकादमी के बिल्कुल पास कैसे रह रहा था और अमेरिका ने इतनी आसानी से पाकिस्तान के इतने अंदर घुसकर उसे कैसे मार दिया? दोनों ही सवालों का जवाब देने में सेना की भद्द पिटती है और इसीलिए सेना की ओर से पहले यह स्टैंड लिया गया कि यह कार्रवाई उसकी मदद से हुई है, फिर आधिकारिक स्टैंड यह लिया गया कि पाकिस्तानी सेना को अंधेरे में रखकर अमेरिका ने यह कार्रवाई की है।

अब अपनी छवि बचाने के लिए सेना ने आक्रामक रुख अपनाने का फैसला किया है। शुजा पाशा का बयान भी ऐसी ही रणनीति का एक हिस्सा है, इसलिए भारत को पाकिस्तानी सेना के जाल में फंसने से बचना चाहिए। पाकिस्तान हमारे लिए एक समस्या है, लेकिन इसका हल असैन्य सरकार और समाज की मजबूती में ही है। पाकिस्तानी सेना भारत विरोध के जरिये ही इतनी मजबूत और समृद्ध हुई है और यह रणनीति वह छोड़ने वाली नहीं है। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के अफगानिस्तान दौरे ने उसे भारत के खिलाफ आक्रामक होने का एक और बहाना दे दिया है। भारत को इतना सख्त और दृढ़ दिखना चाहिए कि वह उपमहाद्वीप में अपने हितों का संरक्षण नहीं छोड़ेगा और अफगानिस्तान-पाकिस्तान समस्या का ऐसा हल नहीं स्वीकार करेगा, जो भारत के हितों का विरोधी हो, लेकिन साथ ही अतिरिक्त आक्रामकता से बचना चाहिए। तभी भारत अफगानिस्तान-पाकिस्तान समस्या को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर पाएगा।

 

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