आनंद की वर्षा करते हैं नारद
शास्त्रों में नारद जी को श्री विष्णु जी का मन कहा गया है। श्रीमद्भगवद्गीता के दशम अध्याय के 26 वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण जी ने नारदजी की महत्ता को स्वीकारा है। कथन है, सृष्टि में भगवान ने...
शास्त्रों में नारद जी को श्री विष्णु जी का मन कहा गया है। श्रीमद्भगवद्गीता के दशम अध्याय के 26 वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण जी ने नारदजी की महत्ता को स्वीकारा है। कथन है, सृष्टि में भगवान ने देवर्षि नारद के रूप में तीसरा अवतार ग्रहण किया व सत्कर्मो से मुक्ति मार्ग का उपदेश दिया।
श्री नारदजी, दक्ष प्रजापति के शाप के कारण एक जगह पर नहीं ठहर पाते थे। उन्होंने दक्ष पुत्रों को समझाया था कि मनुष्य का श्रेष्ठ कर्त्तव्य समाज बंधन से मुक्ति है। दक्ष पुत्र उनकी बातों से प्रभावित होकर मोक्ष पथ की प्राप्ति के लिये चल दिये, पर दक्ष प्रजापति वंश की वृद्धि करना चाहते थे। अत: क्रोध में उन्होंने नारदजी को श्रप दिया, ‘जाओ, लोक लोकान्तरों में भटकते रहो। कहीं भी तुम्हारे ठहरने के लिये स्थान नहीं होगा।’
वायु पुराण में वर्णित है, देवलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाले ऋषिगण देवर्षि के नाम से जाने जाते हैं। धर्म, पुलस्त्य, क्रतु, पुलह,प्रत्यूष, प्रभास और कश्यप के पुत्रों को देवर्षि का पद प्राप्त हुआ। प्रजापति श्री ब्रह्मा के मानसपुत्र श्री नारदजी हैं। श्रीमद्भागवत के प्रथम स्कंद में महर्षि व्यास को भगवान्नाम की महिमा बताते हुये नारद जी पूर्वजन्म का वर्णन करते हैं। भगवान का ध्यान करते हुए उन्हें एक बार भगवान का रूप दिखा, लेकिन वह रूप एकाएक ओझल भी हो गया।’ तब आकाशवाणी हुई इस जन्म में तुम्हें मेरा दर्शन नहीं होगा। तुम मेरे उसी स्वरूप का ध्यान करो, जिसकी झलक मैंने तुम्हें दी। अंत:करण शुद्ध होने पर तुम्हें पुन: मेरे दर्शन होंगे। अंत में प्रभु के दर्शन के लिये नारद जी ने अपने पंच भौतिक शरीर को त्याग दिया। दूसरे कल्प में वे ब्रह्मा जी के मानसपुत्र पुत्र बनकर प्रकट हुये।
भक्त प्रह्लाद की मां कयाधू को नारदजी ने अपने आश्रम में रखा। प्रह्लाद के जन्म के समय उनकी रक्षा की। बाद में प्रह्लाद जी को भागवत धर्म की शिक्षा प्रदान की। देवर्षि नारद, सगुण भक्ति के प्रमुख आचार्य हैं। नारद भक्ति सूत्र में भक्ति को सूक्ष्म रूप में वर्णित किया गया है। महर्षि व्यास जी ने नारद जी की प्रेरणा पर श्रीमद्भागवत की रचना की।