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ओसामा की मौत पर मत रो

ओसामा बिन लादेन को एबटाबाद सदर में मार डाला गया। उसकी मौत से मेरी आंखों में नमी तक नहीं आई। आंसू बहाना तो दूर की बात है। आखिर पिछले नौ सालों में उसके अल कायदा ने दुनिया भर में तबाही मचा दी थी। वे...

ओसामा की मौत पर मत रो
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 14 May 2011 09:25 PM
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ओसामा बिन लादेन को एबटाबाद सदर में मार डाला गया। उसकी मौत से मेरी आंखों में नमी तक नहीं आई। आंसू बहाना तो दूर की बात है। आखिर पिछले नौ सालों में उसके अल कायदा ने दुनिया भर में तबाही मचा दी थी। वे इस्लाम को बचाने की आड़ में ये सब कर रहे थे। यह अलग बात है कि उससे इस्लाम की बदनामी ही हुई। सचमुच, उन्होंने इस्लाम का नाम डुबो दिया।

मुझे लगता है कि पाकिस्तान खुद ओसामा से छुटकारा पाना चाहता था। लेकिन वह उसे खुद नहीं मारना चाहता था। इसीलिए शायद उसने अपने देश की सीमाओं में एक विदेशी को घुसपैठ करने दी। अमेरिका को उस गंदे काम को अपनी जमीन पर करने दिया। आखिर पाकिस्तान को अमेरिका मदद देता ही रहता है। सो, वे इस काम के लिए अपने असल मददगार को मना नहीं कर सकते थे।

एक इस्लामिक देश में ओसामा मारा गया। अब देखना है कि दुनिया भर के मुसलमान उसे कैसे लेते हैं? ओसामा को जेहादी हीरो की तरह देखा जाता था। अब उसके साथ शहादत भी जुड़ गई है। लोगों की निगाह में तो इस्लाम को बचाने के लिए उसने अपनी जान दे दी। मुझे डर है कि मुसलमानों की मजहबी संस्थाएं उसे कहीं शहीद न बना डालें। यह हुआ, तो वह दुखभरा दिन होगा।

सत्य साईं का जाना
श्री सत्य साईं बाबा चले गए। आज के किसी भी संत-महात्मा से ज्यादा उनका असर था। कोई शक नहीं कि वह एक बेहतर इंसान थे। उन्होंने स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल वगैरह बनवाए। नहरें तक बनवाईं। लेकिन वह ऐसे इंसान थे, जिनमें तमाम इंसानी कमजोरियां भी थीं।

लोग उन्हें मानें, इसके लिए उन्होंने जादू तक का सहारा लिया। वह अपनी उंगलियों को रगड़ कर भभूत यानी राख ला सकते थे। हवा में हाथ हिलाकर घड़ी वगैरह ले आते थे। वह भगवान नहीं थे। हम सब लोगों की तरह वह बूढ़े हुए, बीमार पड़े और मर गए। सचमुच वह अमर नहीं थे। जैसा देवताओं के बारे में भरोसा किया जाता है।

कोई नहीं जानता कि भगवान कैसा होता है? कोई भी सीमेटिक मजहब यानी ईसाई, इस्लाम और यहूदी किसी मानवीय भगवान को नहीं मानता। इस्लाम में अगर कोई ऐसा दावा करता है, तो उसकी मौत का फतवा जारी हो जाता है। बौद्ध भी दलाई लामा को भगवान नहीं, उनका प्रतिनिधि ही मानते हैं। सिख भी संतों और महात्माओं को ही मानते हैं। वे भी किसी स्वयंभू भगवान को नहीं मानते। न ही अपने दस गुरुओं के किसी अवतार को मानते हैं। हिंदू धर्म इस मामले में अलग है कि वहां मनुष्य रूप में भगवान को माना जाता है। अब अगर मानवीय भगवान मर जाए, तो क्या होगा? यह कोई नहीं जानता।

2011
इस साल में चार अजीबोगरीब तारीख पड़ी हैं। इन तारीखों में से दो यानी 1-1-11 और 11-1-11 को तो हम जनवरी में देख ही चुके हैं। बाकी दो अभी हम देखेंगे। मसलन, नवंबर में 1-11-11 और 11-11-11। अब एक खेल करो। अपने जन्म के वर्ष के आखिरी दो अंकों को लें। उसमें अपनी मौजूदा उम्र को जोड़ लें। उसका कुल जोड़ 11 या 111 ही आएगा।
 
यह साल कमाने में धमाल करने वाला है। तो आप भी बहती गंगा में हाथ धो लें। यों इस अक्टूबर महीने में पांच रविवार, पांच सोमवार और पांच ही शनिवार पड़ने वाले हैं। क्या आपको पता है कि ऐसा कितने साल बाद हो रहा है? आप हैरान रह जाएंगे। ऐसा सिर्फ 823 साल बाद हो रहा है।   
(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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