बदरुद्दीन ने लिखी थी भगवान बदरीनाथ की प्रार्थना
मंदिर-मस्जिद के झगड़ों ने भले ही देश को कई कटु स्मृतियां दी हों पर दोनों समुदायों के बीच सौहार्द के उदाहरण भी कम नहीं हैं। बदरीनाथ का ही मामला लीजिए- यहां भगवान के दर्शनों के लिए कतारबद्ध भक्त जो...
मंदिर-मस्जिद के झगड़ों ने भले ही देश को कई कटु स्मृतियां दी हों पर दोनों समुदायों के बीच सौहार्द के उदाहरण भी कम नहीं हैं। बदरीनाथ का ही मामला लीजिए- यहां भगवान के दर्शनों के लिए कतारबद्ध भक्त जो प्रार्थना गाते हैं, वह एक मुस्लिम शख्श बदरुद्दीन ने लिखी थी। आदि शंकराचार्य द्वारा धुर उत्तर में स्थापित किए गए इस धाम में पूजा पाठ से लेकर धाम के कपाट खुलने की प्रक्रिया देश के चारों दिशाओं के लोगों या वस्तुओं के बिना पूरी नहीं होती।
भगवान बदरी के दर्शनों के लिए अपनी बारी का इंतजार करते समय भक्त- पवन मंद, सुगंध, शीतल/हिम मंदिर शोभितम्/निकट गंगा बहती निर्मल/ श्री बदरीनाथ विश्वम्भरम् प्रार्थना गाते हैं। 200 साल पहले यह प्रार्थना एक मुस्लिम ने लिखी थी। नन्दप्रयाग के रहने वाले यह शख्श बदरीनाथ को देख कर इस कदर प्रभावित हुए कि, इन्होंने अपना नाम कमरुद्दीन से बदलकर बदरुद्दीन रख लिया था।
आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित बदरीनाथ की यह भी विशिष्टता यह है कि, धुर उत्तर में स्थापित इस मंदिर के मुख्य पुजारी केरल के नंबूरीपाद ब्राहमण हैं। भगवान के श्रृंगार के लिए केसर कश्मीर से आती है तो चंदन कर्नाटक से। भोग के लिए चावल गुजरात से और प्रसाद के तौर पर बांटा जाने वाला सफेद मारकीन उत्तर-पूर्व से आता है।
भगवान विष्णु की मूर्ति भी यहां विशिष्टता लिए हुए है। आम तौर पर विष्णु की शंख, चक्र, गदा लिए और क्षीर सागर में शेषनाग पर लेटे हुई मूर्तियां मिलती हैं। लेकिन बदरीनाथ में भगवान तपस्या में बैठे हैं। बौद्ध इस मूर्ति में भगवान बुद्ध के दर्शन करते हैं तो जैन भगवान आदिनाथ के।