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साझेदारी की तदबीर से तकदीर बदल रहे खेतिहर मजदूर

पहल छोटी थी, लेकिन सामूहिक प्रयास और कड़ी मेहनत ने मुफलिसी से लड़ने का रास्ता दिखा दिया। नतीजा भारत-नेपाल सीमा पर स्थित सोनबरसा प्रखंड के दजर्नों मजदूरों ने साझी खेती को अपनाकर अपनी तकदीर बदल ली। अब...

साझेदारी की तदबीर से तकदीर बदल रहे खेतिहर मजदूर
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 09 May 2011 10:13 PM
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पहल छोटी थी, लेकिन सामूहिक प्रयास और कड़ी मेहनत ने मुफलिसी से लड़ने का रास्ता दिखा दिया। नतीजा भारत-नेपाल सीमा पर स्थित सोनबरसा प्रखंड के दजर्नों मजदूरों ने साझी खेती को अपनाकर अपनी तकदीर बदल ली। अब न तो इन्हें परदेश की खाक छाननी पड़ रही है और न ही दूसरों के खेतों में मजदूरी। अब इनके खेतों में दूसरे लोग रोजगार पा रहे हैं। तीन-चार लोग मिलकर पैसा जमा करते है, बड़े किसानों से जमीन पट्टा पर ले सब्जी की खेती करते हैं। और इसे सीमा पार नेपाली की मंडियों में बेच कर अच्छी आमदनी कर रहे हैं। इनके हाथों की उत्पादित सब्जी काठमांडू तक पहुंच रही है।

साझी खेती से सब्जी उत्पादन का चलन मयूरवा, जहदी, लक्ष्मीपुर, बलकवा, फरछहिया, चिलरा, चिलरी एवं रमनगरा गांवों में तेजी से बढ़ा है। आज सोनबरसा के लगभग दजर्नभर गांवों में 50 एकड़ से ऊपर सब्जी की साङी खेती हो रही है। मयूरवा के रामभरोस सिंह एवं भुवनेश्वर सिंह करीब चार साल पूर्व तक मजदूर थे। गांव में मेहनत-मजदूरी कर किसी तरह परिवार चलाते थे। तभी दोनों के मन में जमीन पट्टा पर लेकर सब्जी का कारोबार करने का विचार आया।

शुरू की जमीन की तलाश और आज ये मजदूर से किसान बन गये हैं। आज इनके पास अपनी जमीन है, जिस पर दूसरे लोग मजदूरी करते हैं। यहीं के सुरेन्द्र कुमार सिंह एवं रामप्रीत सिंह की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। दोनों ने भी चार वर्ष पूर्व मजदूरी छोड़ साझी खेती शुरू की। इस बार भी दोनों ने मिल कर करीब दो एकड़ की जमीन में लौकी, भिंडी एवं टमाटर की खेती की है।

यहीं के गोरख सिंह, रामाश्रय सिंह, बेचन सिंह, फरछहिया के रामदरेश महतो, किशोरी महतो, मखन पासवान, ठगा महतो, चिलरा के बैधनाथ महतो, सुपन महतो आदि ने भी मजदूरी के दंश से मुक्ति पा ली है। इन लोगों की खेती से जब अच्छी आमदनी होने लगी तो अपनी जमीन भी खरीद ली। आज समाज में इनकी पहचान आदर्श किसान के रूप में हो रही है। इनके बच्चे अब स्कूल जाने लगे हैं।

किसानों ने बताया कि नेपाली मंडी तक सब्जी पहुंचाने में परेशानी भी होती है। सीमा पर कई बार इन्हें एसएसबी के कोप का सामना करना पड़ता है। वहीं नेपाली मंडी में दस रुपये प्रति टोकरी या बोरा के हिसाब से लोकल टैक्स भी देना पड़ता है। लेकिन नेपाल में बेचने पर तीन से चार गुणा तक लाभ होता है। यहां अनुपयोगी समङो जाने वाले गोभी पत्ता, मूली पत्ता, कोहरे का पत्ता आदि की भी बिक्री पड़ोसी देश में हो जाती है।

जो सब्जियां उगाते हैं
भिंडी, खीरा, लौकी, मूली, गोभी, पत्ता गोभी, टमाटर, मिर्च, तरबूज, ककड़ी, आलू और मौसमी सब्जियऋं।
जिन मंडियों में खपत है
फरछहिया, अररिया, सोनबरसा एवं कन्हौली (लोकल हाट)
मलंगवा, सर्लाही के बयलबांस, नवलपुर तथा काठमांडू (नेपाल में)

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