स्त्री शिक्षा और अनपढ़ होने का मतलब
यह वाकया बिहार के पूर्णिया जिले के दमदाहा प्रखंड का है। हम एक गांव से गुजर रहे थे। आम के ऊंचे दरख्तों के बीच एक मैदान में कई महिलाएं बैठी हुई थीं। वे ‘जीविका’ कार्यक्रम के तहत...
यह वाकया बिहार के पूर्णिया जिले के दमदाहा प्रखंड का है। हम एक गांव से गुजर रहे थे। आम के ऊंचे दरख्तों के बीच एक मैदान में कई महिलाएं बैठी हुई थीं। वे ‘जीविका’ कार्यक्रम के तहत अपनी मीटिंग के लिए आई थीं। हर महीने अपने हिसाब-किताब के लिए वे यहां जुटती हैं। वे स्व-सहायता समूह के तहत अच्छी-खासी रकम संभालती हैं, मगर खुद को अनपढ़ बताती हैं।
महिलाओं के पास बैठकर हमने उन्हें कुरेदा, ‘आपमें से कोई पढ़ा-लिखा है?’ जवाब मिला, ‘नाही।’ सामने समूह की पासबुक रखी थी। ‘इस खाते में कितने पैसे हैं?’ ‘साठ हजार’, तुरंत जवाब मिला। ‘आपको कैसे पता चला?’ हमने उनसे पूछा। ‘अरे दीदी, क्यों नहीं जानेंगे? हमारे ही तो पैसे हैं।’ सामने नोटों की एक गड्डी थी। सौ रुपये का एक नोट खींचकर हमने सबको दिखाया, ‘यह क्या है?’ ‘सौ रुपये!’ एक साथ कई स्वर गूंजे। सभी ने एक-एक करके सभी नोटों की पहचान की। पांच सौ रुपये के नोट के अंक की तरफ इशारा करते हुए हमने कहा, ‘अब इसे लिखें आप लोग।’ ‘अरे दीदी, हम कैसे लिखें? हम तो अनपढ़ हैं।’ ‘ठीक-ठीक है,’ हमने हलके-से टोका, ‘पर कोशिश तो कीजिए।’ कुछ साहसी महिलाओं ने पेंसिल उठाई और धीरे-धीरे टेढ़े-मेढ़े अंक कागज पर उभरने लगे। 500, 100, 50, 20..।
‘मोबाइल चलाना आता है?’ कई महिलाओं के पास मोबाइल था और उन्हें चलाना भी आता था। ‘अपना नंबर बताओ।’ साड़ी का पल्लू संभालते हुए एक महिला बोली, ‘चौरानबे-ग्यारह-बीस-बत्तीस-सत्तावन।’ ‘आप इसे लिख सकती हैं?’ संकोच से पेंसिल पकड़ने के बाद वह धीरे-धीरे लिखने लगी। लिखते हुए वह अंकों को दोहरा रही थी। दो अंकों की संख्या कागज पर दिखने लगी। ‘94’ के ऊपर हमने लिखा- 91, 92, और ‘94’ इधर नीचे। लिखना शुरू किया 95, 96, 97, 98..। ‘हमने अब क्या लिखा है?’ थोड़ा जोर देने पर आहिस्ते-आहिस्ते महिलाएं सही-सही गिनने लगीं। काली साड़ी वाली महिला ने मुस्कुराते हुए समझाया, ‘नंबर कागज पर लिखकर रखते हैं। देख-देखकर बटन दबाते हैं। संभालकर करना होता है, नहीं तो ज्यादा पैसे लग जाते हैं।’ अगर कागज खो जाए तो?’ वह बोली, ‘फिर फोन में खोजना होता है। नाम का चेहरा याद रखना पड़ता है।’ थोड़ी दूर बैठी एक लंबी औरत ने कहा, ‘इतना परेशान क्यों होते हो? मेरे फोन में तो सबका फोटो है।’
हमने विषय बदल दिया। सौ के नोट पर बने गांधीजी की तरफ इशारा किया, ‘यह कौन हैं?’ सन्नाटा छा गया। फिर पूछा, ‘क्या आपने गांधीजी के बारे में सुना है? बापू?’ अचानक, एक महिला ने कहा, ‘हमको पता है..।’ गला साफ करके वह सुरीली आवाज में गाने लगी और सभी उसके साथ दोहराने लगीं, ‘श्रीराम के भोजन फल-फूल हैं, श्रीकिसन के भोजन माखन है, मेरे बापूजी के भोजन सत्तू है, देसां को आजादी कराया है..।’