त्रिकालजीवी भ्रष्टाचार की अनंत कथा
ज्ञानीजन कहते हैं कि भ्रष्टाचार तो कण-कण में विद्यमान है। ऐसी कोई भी जगह नहीं है, जहां भ्रष्टाचार मौजूद नहीं है। यूं समझ लीजिए कि जैसे हवा दिखलाई नहीं देती, पर उसे महसूस किया जा सकता है। उसकी गरमाहट...
ज्ञानीजन कहते हैं कि भ्रष्टाचार तो कण-कण में विद्यमान है। ऐसी कोई भी जगह नहीं है, जहां भ्रष्टाचार मौजूद नहीं है। यूं समझ लीजिए कि जैसे हवा दिखलाई नहीं देती, पर उसे महसूस किया जा सकता है। उसकी गरमाहट या शीतलता का साफ-साफ अनुभव किया जा सकता है, ठीक वैसे ही भ्रष्टाचार भले ही नंगी आंखों से दिखाई नहीं देता है, पर उसका प्रभाव स्पष्ट महसूस किया जा सकता है। जैसे ईश्वर आदि, मध्य और अंत से रहित स्वरूप होता है, वैसे ही भ्रष्टाचार भी आदि, मध्य और अंत से रहित है। इसका ओर- छोर पता करना साधारण मानव के बस की बात नहीं है। उच्चस्तरीय जांच समिति तक पानी मांग लेती है, जब वह भ्रष्टाचार का आकार-प्रकार पता करने की कोशिश करती है। जाकर खोजेंगे, तो एकदम से सामने नजर नहीं आएगा भ्रष्टाचार। नियमों, मापदंडों के नीचे से धीरे-से प्रकट होगा भ्रष्टाचार। वह एकदम अपनी पूरी देह नहीं दिखाएगा। धीरे-धीरे संपूर्ण दर्शन करवाता है।
भ्रष्टाचार दिखता कहीं और है, जबकि उसकी जड़ें कहीं और रहती हैं और फल तो जाने किस बैंक के लॉकर में। भ्रष्टाचार का स्वरूप अत्यंत लचीला होता है। बोले तो ‘चाइना क्ले’ जैसा। वह क्षण भर में किसी भी स्वरूप में ढल जाता है। बिल्कुल फ्री स्टाइल में। दरअसल इसका अपना कोई कैरेक्टर नहीं होता, इसलिए इसे फ्री स्टाइल कहा जाता है।
भ्रष्टाचार अपर लिमिट या लोअर लिमिट के बंधन से कभी नहीं बंधता। अत: इसे कैसे भी अंजाम दिया जा सकता है। बस करने वाला एक बार ठान ले कि उसे करप्शन करना ही है, तो वह कुछ ऐसा कर गुजरता है कि देखने वाले दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। बिना मौसम, बिना बादल के ही बरसात शुरू हो जाती है। इतना सारा मिलता है कि गिनते ही नहीं बनता। जहां से हम छटांक भर भी नहीं निकाल पाए, वहां से इसने क्विंटल भर कर लिया। इसके लिए दबंगता के साथ-साथ दृढ़ इच्छाशक्ति वाला आदमी चाहिए। साथ ही उसे भविष्य से बेखबर, बिंदास बंदा होना चाहिए। ऐसा व्यक्ति लंबी रेस का घोड़ा साबित होता है और इस क्षेत्र में नए-नए कीर्तिमान बनाता है।