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यह वर्ष है टेबलेट का

पिछले वर्ष की शुरुआत के समय आम धारणा यह थी कि नेटबुक्स पोर्टेबल कंप्यूटर मार्केट पर छा जाएंगे और ऐसा उनकी कम कीमतों और लंबी चलने वाली बैटरी के कारण होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ था। नेटबुकों को टेबलेट्स...

यह वर्ष है टेबलेट का
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 08 May 2011 11:40 PM
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पिछले वर्ष की शुरुआत के समय आम धारणा यह थी कि नेटबुक्स पोर्टेबल कंप्यूटर मार्केट पर छा जाएंगे और ऐसा उनकी कम कीमतों और लंबी चलने वाली बैटरी के कारण होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ था। नेटबुकों को टेबलेट्स ने पीछे छोड़ दिया और अब नेटबुकें दौड़ में पिछड़ते दिख रही हैं।

उपकरणों की नई जमात
एप्पल के आइपैड के 2010 अप्रैल में आगमन का नेटबुक की दुनिया पर गहरा असर पड़ा था और उसके बाद मार्केट में उससे मिलते-जुलते अनेक उपकरण दिखाई देने लगे थे। यहां दो बड़ी बातें हुई थीं। पहली, चीन ने नेटबुक और लैपटॉप्स की दुनिया में तेजी से कदम बढ़ाए और नित नए उपकरणों की एक लुभाने वाली जमात हमारे सामने थी। दूसरा, कई और छोटी कंपनियां भी बचे-खुचे स्थान को भरने तेजी से आ पहुंची थीं और उन्हें रोकना भी कठिन था।

बचाव के प्रयास
सैमसंग इनमें से सबसे उग्र हमलावर था और उसके दल की अगुवाई कर रहा था गैलेक्सी टैब। हालांकि वह एप्पल की वन-मैन आर्मी के समक्ष कमजोर था, जिसका सबसे संघारक हथियार टेबलेट्स के लिए डिजाइन किया गया ऑपरेटिंग सिस्टम (ओएस) था, जबकि गैलेक्सी टैब को अपने अपेक्षाकृत धीमे हथियार - एंड्रॉयड 2.2 (फ्रोयो) ऑपरेटिंग सिस्टम से ही जूझना पड़ा था, जिसे मोबाइल फोनों के लिए निर्मित किया गया था।

दोनों में भिन्नता का एक अन्य आयाम एप्पल आइपैड की 10.1 इंच स्क्रीन भी था, जिसके विपरीत सैमसंग के गैलेक्सी टेब की स्क्रीन 7 इंच की थी। एक ओर जहां एप्पल विशाल स्क्रीन पसंद करता था, वहीं सैमसंग अपने उपकरण में अधिकाधिक घुमावदार व्यवस्था को पसंद कर रहा था। यही वजह थी कि टेबलेट सेना में 10 इंच बनाम 7 इंच को लेकर व्यापक बहस शुरू हुई थी।

अपना अपना राग
यही वजह रही थी कि निर्माता अपने टेबलेट को प्रतिद्वंद्वी से अलग दिखाने के लिए अपनी पसंद के ऑपरेटिंग सिस्टम इस्तेमाल करने लगे थे। आइपैड बनाम गैलेक्सी टैब के कारण एप्पल और एंड्रॉयड के बीच शुरू हुई तनातनी समूचे बाजार में फैल गई और हरेक निर्माता प्रतिद्वंद्विता को समाप्त करने के लिए वही हथियार अपनाने लगा।

हकीकत तो यह है कि तब से आज तक एंड्रॉयड 2.2 (फ्रोवो) से गत दिसंबर तक के 2.3 (जिंजरब्रेड) तक अनेक अपडेट देख चुका है और अब फरवरी में आए हनीकॉम्ब से पुराने धारकों को अधिक मदद नहीं मिली थी, अलबत्ता कुछ नुकसान जरूर हुए थे।

जैसा कि हमने पहले बात की, असल समस्या थी कि टेबलेट को कभी इंटरफेस और हार्डवेयर को मद्देनजर रख कर नहीं बनाया गया था। केवल जिंजरब्रेड में हमने विशेषकर टेबलेट्स के लिए बना एंड्रॉयड का ऐसा पहला उपकरण देखा था। तकरीबन सभी के एक टेबलेट संपन्न ब्रांड बनने के बाद, उनके बीच चल रहा शीत युद्ध अब एक आर्थिक युद्ध का रूप ले चुका था। नतीजा, कीमतें नीचे आईं - गैलेक्सी टेब को 36,000 रुपए पर लांच किया गया, लेकिन आज इसे आप 25,000 रुपए में खरीद सकते हैं। बाजार में पहले से कहीं अधिक मॉडलों का अंबार दिखने लगा।

उपकरणों में असमानता
इस द्वंद्व का नतीजा यह हुआ कि हथियार चमकाने के चक्कर में लोगों को सटीक असले का ध्यान ही नहीं रहा। मसलन, एक ओर जहां एंड्रॉयड के लिए मौजूद अधिकांश एप्लीकेशंस जो छोटी स्क्रीन के लिए डिजाइन किए गए थे, उनके विपरीत निर्माता सभी आकार-प्रकार के स्क्रीन साइज के लिए टेबलेट बाजार में लाने लगे थे। लिहाजा, माहौल गड़बड़ा गया।

स्मार्टफोनों के लिए डिजाइन किए गए एप्लीकेशन उच्चश्रेणी के टेबलेट्स के काम के नहीं थे। स्क्रीन साइज से दोगुनी क्षमता अनुसार एप्लीकेशनों को बढ़ाने पर उनमें खराबी आनी शुरू हुई। लेकिन इतना जरूर है कि आजकल केवल सबसे कमजोर एप्लीकेशन ही उन दिनों की याद दिलाते हैं।

ड्रॉयड ब्रिगेड
इस वर्ष की शुरुआत में अमेरिका के रंगीन शहर लास वेगास में संपन्न हुए दि कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स शो (सीएफएस) में भविष्य की झलक दिखाई दी थी। फरवरी में स्पेन के बार्सिलोना शहर में मोबाइल वर्ल्ड कांग्रेस (एमडब्ल्यूसी) में ब्लैकबेरी, एचटीसी, लिनोवो, ह्युलेट-पैकर्ड (एचपी), एसर, एसस, तोशिबा, एलजी और सैमसंग ने अपने आइपैड ‘किलर्स’ की नुमाइश की थी।

बढ़ती क्षमता
गत वर्ष यह स्पष्ट हो गया था कि लाइट आर्म्स के पास करीब 600 मेगाहट्र्ज की प्रोसेसिंग क्षमता होगी, जिससे स्क्रीन का बेहतर रिजोल्यूशन नजर आएगा। इसके विपरीत, बड़े मॉडलों में 1 गीगाहट्र्ज के प्रोसेसर, बड़ी रैम, बेहतर स्क्रीन रिजोल्यूशन और एचडी वीडियो को प्लेबैक करने की क्षमता थी। आज करीब हरेक टेबलेट 720पी एचडी वीडियो रिकॉर्ड और एचडी वीडियो प्लेबैक बिना रुकावट के चलाने का दावा करते हैं। समूचे क्षेत्र में हार्डवेयर के एकरूपी होने पर एक और रुकावट सामने आई। टेबलेट एप्लीकेशनों के आधार पर बिकने लगे, न कि इंटरफेस या हार्डवेयर से।

भविष्य
इस समय टेबलेट जगत में पांच तरह के ऑपरेटिंग सिस्टम चल रहे हैं। यह हैं एप्पल आइओएस, गूगल एंड्रॉयड, रिसर्च इन मोशन (आरआईएम) क्यूएनएक्स प्लेबुक ऑपरेटिंग सिस्टम, एचपी वेब और माइक्रोसॉफ्ट विंडोज 7। एप्पल को जहां टेबलेट बाजार में सफलता का स्वाद शुरू में ही मिल गया था, एंड्रॉयड धीमी लेकिन पुख्ता चाल चला और उसका आधार एंड्रॉयड के ही कई उत्पाद थे, जबकि एप्पल के पास एक ही उत्पाद था। इसके बावजूद, एंड्रॉयड में कुछ रुकावटें देखने को मिल रही हैं।

(मिंट से)

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