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खून से सने हैं उनके हाथ

हाल ही में मैंने गुजरात के सीनियर पुलिस अफसर संजीव भट्ट का हलफनामा पढ़ा। उन्होंने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाए हैं कि गोधरा हादसे के बाद उन्होंने हिंदुओं को उकसाया था, ताकि वे मुसलमानों को...

खून से सने हैं उनके हाथ
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 07 May 2011 09:15 PM
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हाल ही में मैंने गुजरात के सीनियर पुलिस अफसर संजीव भट्ट का हलफनामा पढ़ा। उन्होंने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाए हैं कि गोधरा हादसे के बाद उन्होंने हिंदुओं को उकसाया था, ताकि वे मुसलमानों को सबक सिखा सकें। गोधरा रेलवे स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस में हुए हमले में 68 कारसेवक जिंदा जला दिए गए थे। 

उसी का बदला लेना चाहते थे मोदी। अब कोई आसानी से समझ सकता है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मोदी को मौत का सौदागर क्यों कहा था? मोदी ने राज्य का खूब विकास किया है, लेकिन उनके हाथ खून से सने हैं।

सांप्रदायिक दंगों पर नजर डालने से एक बात साफ होती है। जब सरकार कोई कार्रवाई नहीं करती, तो लोग कानून को अपने हाथ में ले लेते हैं। अपने लिहाज से बदला ले डालते हैं। अब कानून-व्यवस्था सरकार का काम है। किसी और को उसे अपने हाथ में लेने का हक नहीं है।

इंदिरा गांधी की जब हत्या हुई थी, तब सरकार जानती थी कि क्या होने वाला है। इंदिरा जी की हत्या सिख बॉडीगार्ड ने की थी। जाहिर है, सिखों पर ही ठीकरा फूटने वाला था। उस वक्त सरकार को लोगों को रोकना चाहिए था। लेकिन उन्होंने तो ठगों को उकसाया। वही वजह थी कि तकरीबन पांच हजार मासूम सिखों की हत्या हो गई और उनकी प्रॉपर्टी लूट ली गई।

मोदी ने उस तजुर्बे से कुछ भी नहीं सीखा। वह जानते थे कि ट्रेन को कुछ मुसलमानों ने आग लगाई है। सो, हिंदू तो मुसलमानों के खून के प्यासे हो ही जाएंगे। उन्होंने हिंदुओं को उकसाया कि वे मुसलमानों को सबक सिखाएं। उसी सबक ने हजारों मासूम मुसलमानों को मरवा डाला। मोदी को सचमुच मौत का सौदागर कहना ही चाहिए।
 
दिल्ली बचाओ
मैंने तकरीबन दस साल पहले अपनी कार बेच दी थी। अब मैं कहीं आता-जाता भी नहीं। इधर तो मैं बस डॉक्टरों के पास ही जाता हूं। खान मार्किट में दांतों के डॉक्टर वोहरा या आंखों के डॉक्टर सचदेव या ऑप्टीशियन विपिन बख्शी।

हर बार जब भी मैं घर से निकलता हूं, तो मुझे लगता है कि सड़कों पर पहले से कहीं ज्यादा वक्त लग रहा है। आखिर दिल्ली की सड़कें ट्रैफिक से परेशान रहती हैं। नए फ्लाई ओवर, चौड़ी-चौड़ी सड़कें भी उस ट्रैफिक को ङोल नहीं पा रही हैं। मेट्रो ने खासी राहत दी है, लेकिन उससे भी बात बन नहीं रही है। ये जाम शहर को रहने लायक भी नहीं छोड़ेगा।

इधर मैंने एक छोटी-सी किताब देखी। ‘टेन पॉइंट सॉल्यूशन फॉर ट्रैफिक प्रॉब्लम्स ऑफ डेल्ही।’ उसे रामनिवास मलिक ने लिखा है। मलिक पब्लिक हेल्थ के चीफ इंजीनियर रह चुके हैं। उनका कहना है कि काम के घंटों में बदलाव करना चाहिए। सारे दफ्तर एक ही वक्त में शुरू और खत्म नहीं होने चाहिए। अलग-अलग काम के घंटे होंगे, तो फर्क पड़ेगा। 

उनका दूसरा सुझाव है कि कुछ खास दिनों में खास जगह पर ट्रैफिक पर पाबंदी लगा देनी चाहिए। यानी इतवार को कनॉट प्लेस में गाड़ियां न चलें, लेकिन दुकानें खुली रहें। मैंने इस तरह की व्यवस्था टोक्यो में देखी थी। गजब पिकनिक-सा माहौल होता है। हमें चांदनी चौक जैसे बाजारों से कार-स्कूटर गायब कर देने चाहिए।
 
हमें पार्किग के लिए भी कुछ गंभीरता से सोचना चाहिए। मल्टी स्टोरी पार्किग के बिना काम चलने वाला नहीं है। मेरा एक सुझाव है कि लाल बत्तियों वाली गाड़ियां बंद कर देनी चाहिए। आखिर खास लोगों यानी वीआईपी   को भी आम आदमी की दिक्कतों का एहसास होना ही चाहिए।

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