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हार का भी लुत्फ उठाता हूं: पीटर गाडे

इंडियन ओपन सुपर सीरीज उपविजेता स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी डेनमार्क के पीटर गाडे का कहना है कि वह 34 बरस की उम्र में भी अपने खेल के शिखर पर इसलिए हैं क्योंकि वह अपने खेल का पूरा लुत्फ उठाते हैं और हार का...

हार का भी लुत्फ उठाता हूं: पीटर गाडे
एजेंसीMon, 02 May 2011 01:54 PM
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इंडियन ओपन सुपर सीरीज उपविजेता स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी डेनमार्क के पीटर गाडे का कहना है कि वह 34 बरस की उम्र में भी अपने खेल के शिखर पर इसलिए हैं क्योंकि वह अपने खेल का पूरा लुत्फ उठाते हैं और हार का भी पूरा मजा लेते हैं।

पीटर को रविवार को पुरुष एकल फाइनल में दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी मलेशिया के ली चोंग वेई के हाथों तीन गेम तक चले मुकाबले में 12-21, 21-12, 21-15 से शिकस्त झेलनी पड़ी। दुनिया के छठे नंबर के खिलाड़ी पीटर ने कहा कि मैं इस उम्र में भी ट्रेनिंग से कभी नहीं उबता। मैं अपनी जीत का पूरा लुत्फ उठाता हूं लेकिन हार पर भी निराश नहीं होता और इसका भी मजा लेता हूं क्योंकि हार भी खेल का हिस्सा है। आप हमेशा जीत नहीं सकते।

चौदह दिसंबर 1976 को डेनमार्क के आलबर्ग में जन्में पीटर ने कहा कि खेल को लेकर अब भी उनके जज्बे में कोई कमी नहीं आई है। उन्होंने कहा कि मैं यहां फाइनल में पहुंचा हूं जो दर्शाता है कि मैं इस स्तर पर प्रतिस्पर्धा के लिए अब भी तैयार हूं। मैं भले ही फाइनल हार गया लेकिन मैंने कड़ी चुनौती दी।

दुनिया के इस पूर्व नंबर एक खिलाड़ी ने कहा कि युवा खिलाड़ी पेशेवर स्तर पर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहे हैं और मैं कई वर्षों से इस जगह पर हूं। मेरी उम्र बढ़ रही है लेकिन मुझे खुशी है कि मैं अब भी सर्वश्रेष्ठ एशियाई युवा खिलाड़ियों के खिलाफ प्रतिस्पर्धा का लुत्फ उठा रहा हूं। यह इस बात का संकेत है कि मैं खत्म नहीं हुआ हूं।

इंडियन ओपन सुपर सीरीज के लिए बिना किसी कोच और फिजियो के यहां आए पीटर ने कहा कि उनके देश के बैड़मिंटन संघ के पास काफी पैसे नहीं हैं इसलिए हर प्रतियोगिता के लिए कोच नहीं भेजा जा सकता।

पंद्रह बरस से भी अधिक समय से सीनियर सर्किट में खेल रहे पीटर ने कहा कि मेरे साथ अगर कोच, ट्रेनर और फिजियो आते तो मुझे अच्छा लगता। इससे मैच के बाद की थकान से उबरने और अगले मैचों के लिए तैयार होने में मदद मिलती है लेकिन हमारे संघ के पास अधिक पैसा नहीं है इसलिए हर टूर्नामेंट के लिए कोच और ट्रेनर को नहीं भेजा जाता। डेनमार्क में सिर्फ राष्ट्रीय कोच है। वहां अकादमियां भी नहीं हैं। अब तो मैं इसका आदी हो गया हूं और कई वर्षों से एशिया में इसी तरह टूर्नामेंट खेलता रहा हूं।

उन्होंने कहा कि यहां खेलने का फैसला मेरा और टाइन (बाउन) का था और उन्होंने (संघ ने) कहा कि अगर आप वहां जाना चाहते हैं तो अपने खर्चे पर जाइए और हम यहां आ गए। पीटर के कई साथी खिलाड़ी अब कोच की भूमिका में नजर आ रहे हैं जिससे डेनमार्क का यह खिलाड़ी भी हैरान हैं। उन्होंने कहा कि गोपी (भारतीय कोच पुलेला गोपीचंद) जैसे कई खिलाड़ी जिनके साथ मैं खेला वे अब कोच बन गए हैं। यह थोड़ा अजीब है लेकिन मैं खुद को अधिक उम्र का महसूस नहीं करता। अगर कभी मुझे ऐसा महसूस हुआ तो मैं बैडमिंटन खेलना बंद कर दूंगा।

इस दिग्गज खिलाड़ी ने कहा कि जब वह विदेशों में टूर्नामेंट खेल रहे होते हैं तो उन्हें अपने परिवार और बेटियों की काफी याद आती है। उन्होंने कहा कि मुझे अपने परिवार, बेटियों की कमी खलती है। जब मैं घर में होता हूं तो काफी व्यस्त रहता हूं। मुझे अपने घर और परिवार का ख्याल रखना होता है और साथ ही कड़ी ट्रेनिंग करनी होती है।

उन्होंने कहा कि मैं जब विदेश में होता हूं तो खेलने के अलावा आराम करता हूं, सोता हूं लेकिन चार पांच दिन बाद परिवार की याद आने लगती है। ऐसे में जब मैं इस तरह फाइनल में पहुंचता हूं तो लगता है कि मेहनत सफल हो गई।

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