दिल्ली हाईकोर्ट ने गांधी स्मारक निधि की एक न्यायिक आदेश के खिलाफ अपील खारिज करते हुए इस बात को लेकर नाराजगी जाहिर की कि ट्रस्ट एक आम याचिकाकर्ता की तरह आचरण कर रहा है।
गांधीवादी विचारधारा का प्रचार प्रसार कर रहे इस ट्रस्ट ने हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल कर एक औद्योगिक न्यायाधिकरण के आदेश को चुनौती दी थी। न्यायाधिकरण ने ट्रस्ट को उसके एक कर्मी एस चंद्रन को बहाल करने तथा उसकी पूरी बकाया राशि का भुगतान करने का आदेश दिया था।
न्यायमूर्ति राजीव सहाय रूंडला ने ट्रस्ट की अपील खारिज करते हुए कहा यह देख कर मुझे गहरी पीड़ा है कि गांधी स्मारक निधि एक सामान्य याचिकाकर्ता की तरह आचरण कर रहा है। ऐसा जाहिर होता है कि मामले को सौहार्दपूर्ण तरीके से हल करने के लिए किसी भी स्तर पर प्रयास नहीं किए गए।
चंद्रन गांधी स्मारक निधि से 1971 से जुड़ा था। मार्च 1999 में उसे पेशेवर दुराचार के आरोप में अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा दी गई थी, क्योंकि उसने पांच पन्ने का एक कथित पत्र न्यासियों, उसकी कार्यकारी समिति के सदस्यों और कुछ अन्य लोगों को लिखा था। कहा गया कि इस पत्र की भाषा भड़काउ और मानहानि करने वाली थी।
सजा से नाराज हो कर चंद्रन ने अदालत में याचिका दाखिल की। 2005 में सिविल जज ने उसे औद्योगिक न्यायाधिकरण में जाने का आदेश दिया। न्यायाधिकरण का फैसला चंद्रन के पक्ष में आया।