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टूजी घोटाला: सिनेयुग का निदेशक बलवा व गोयनका का सहयोगी

टूजी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला मामले में एक गवाह ने सीबीआई को बताया है कि सिनेयुग फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक और मामले में सह-आरोपी करीम मोरानी ने अपने बचपन की दोस्तों डीबी रीयल्टी के प्रमोटर...

टूजी घोटाला: सिनेयुग का निदेशक बलवा व गोयनका का सहयोगी
एजेंसीSun, 01 May 2011 12:52 PM
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टूजी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला मामले में एक गवाह ने सीबीआई को बताया है कि सिनेयुग फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक और मामले में सह-आरोपी करीम मोरानी ने अपने बचपन की दोस्तों डीबी रीयल्टी के प्रमोटर शाहिद बलवा और विनोद गोयनका की मदद की थी, ताकि कलैगनार टीवी को अवैध तरीके से लाभ पहुंचाया जा सके।

जांच एजेंसी ने मामले में एक आरोपी और सिनेयुग फिल्म्स के एक निदेशक मोहम्मद गुलमाली मोरानी का बयान दर्ज किया है, ताकि घोटाला मामले में करीम मोरानी की भूमिका का पता लगाया जा सके क्योंकि बतौर सीबीआई करीम मोरानी ने महज 25.25 करोड़ रुपए की पूंजी होने के बावजूद डीबी रीयल्टी की मदद की थी।

सीबीआई ने अपने दूसरे आरोप पत्र में कहा है कि स्वान टेलीकॉम और डीबी रीयल्टी के शाहिद बलवा तथा विनोद गोयनका ने कुसेगांव फ्रूट्स एंड वेजीटेबल्स प्राइवेट लिमिटेड तथा सिनेयुग फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड के जरिए द्रमुक प्रमुख के परिवार द्वारा संचालित कलैगनार टीवी को 200 करोड़ रुपए की राशि पहुंचायी।

करीम मोरानी के छोटे भाई गुलमाली मोरानी ने अपने बयान में सीबीआई को बताया कि सिनेयुग फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड की वर्ष 1997 में पूंजी में हिस्सेदारी 25 लाख रुपए की थी, जो वर्ष 2008 में बढ़कर 25.25 करोड़ हो गई। गुलमाली ने सीबीआई को बताया कि करीम ने मुझसे कहा था कि वह सिनेयुग फिल्म्स प्राइवेटड लिमिटेड की ओर से कलेंग्नार टीवी प्राइवेट लिमिटेड में 200 करोड़ रुपए की राशि का निवेश करना चाहता है। उसने मुझे यह भी बताया था कि वह किस तरह अपने बचपन के दोस्त और डीबी समूह के विनोद गोयनका तथा शाहिद बलवा के जरिए उक्त राशि का बंदोबस्त कर रहा है।

गुलमाली ने बयान में कहा कि शेयरों का पंजीयन और शेयरधारक समझौता 19 दिसंबर 2008 को सिनेयुग और कलैगनार टीवी तथा चैनल के तीन प्रमोटर एमके दयालु, कनिमोझी करुणानिधि और शरद कुमार के बीच हुआ। गवाह के मुताबिक, कलैगनार टीवी में निवेश करने के लिए सिनेयुग फिल्म्स को कुसेगांव फ्रूट्स एंड वेजीटेबल्स से 206 करोड़ रुपए अगस्त से दिसंबर 2008 के बीच मिले। इसके लिए 27 जनवरी 2010 तक कोई लिखित समझौता नहीं हुआ। गुलमाली ने कहा कि उसे नहीं पता कि समझौता इतनी देरी से क्यों किया गया।

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