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यूपीए का मिनी बजट

माहौल में मंदी का शोर होने के नुकसान तो बहुत हैं, लेकिन फायदे भी हैं। चतुर कंपनियां अगर मंदी के माहौल का दोहन निर्विरोध वेतन कटौती के लिए कर सकती हैं तो सरकारों को भी मंदी में बिना बदनाम हुए...

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लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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माहौल में मंदी का शोर होने के नुकसान तो बहुत हैं, लेकिन फायदे भी हैं। चतुर कंपनियां अगर मंदी के माहौल का दोहन निर्विरोध वेतन कटौती के लिए कर सकती हैं तो सरकारों को भी मंदी में बिना बदनाम हुए लोकलुभावन राजनीति करने का सुनहरा मौका मिल जाता है। वित्तीय तंत्र में अतिरिक्त 32 हाार करोड़ रुपये का नकदी प्रवाह सुनिश्चित करने वाले शुक्रवार के आर्थिक पैकेा में इसी तरह की चतुराइयों की ओर इशारा किया जा रहा है। पूछा जा रहा है कि एक के बाद एक बेल आउट पैकेा की घोषणा तो हो रही है, लेकिन क्या इस बात की समीक्षा भी हो रही है कि उनका कितना असर हो पा रहा है? रीपो, रिवर्स रीपो और सीआरआर कटौती के समष्टिगत प्रभावों का दावा तो ठीक है लेकिन क्या व्यक्ितगत स्तर पर आम पब्लिक तक उनका फायदा पहुंच रहा है? और क्या हमार व्यावसायिक बैंक रिार्व बैंक की आधार ब्याज दरों में क्रमिक कटौती का तुरंत और समानुपाती अनुगमन कर रहे हैं या ना-नुकुर पर अड़े हैं? शंका तो यह भी है कि उतनी मंदी वास्तव में है या नहीं, जितनी कि हायतौबा है। ये सवाल अपनी जगह हैं और काफी हद तक जायज भी हैं, इसका सबसे बड़ा सबूत यही है कि सरकार को एक ही माह में दूसरा वित्तीय पैकेा लाना पड़ा है, लेकिन इस प्रश्नवाचन के बावजूद कुछ बिंदु हैं जो नए पैकेा को तारीफ का हकदार बनाते हैं। अव्वल तो इस बात का श्रेय सरकार को मिलना चाहिए कि वह मंदी का मनोविज्ञान जनचेतना पर हावी नहीं होने दे रही। भारत में मंदी है या नहीं, इस पर मतभेद हो सकता है, लेकिन इसमें दोराय नहीं कि बाजार में दहशत है और जनता आशंकित है। एक के बाद एक आते पैकेा ऐसी आशंकाओं पर सीधा वार कर रहे हैं। वे प्रशासन का एक चौकन्ना चेहरा सामने ला रहे हैं। नोट करने लायक यह भी है कि मंदी की मनोवृत्ति पर दोतरफा वार हुआ है। एक तरफ से पूंजी बाजार के नियम लचीले बना उधारी के रास्ते खोले जा रहे हैं, दूसरी तरफ निर्यात, रियल एस्टेट, हाईवे-बंदरगाह, ऑटोमोबाइल जसे चुनींदा सेक्टरों में मांग बढ़ाने के उपाय किए गए हैं। यह सभी सेक्टरों को एक लाठी से हांकने की बजाय, सिर्फ दुखती रगों को ही थामने की परिपक्व शैली है। देर से ही सही, लेकिन इसका सकारात्मक असर जरूर देखने को मिलेगा।

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