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भागलपुर में ट्वेंटी-20 के नाम पर सट्टा!

सुबह के साढ़े सात बजे हैं। भीखनपुर झुग्गी झोपड़ी के कुछ बच्चे स्कूल की तरफ तो कुछ मुंदीचक गढ़ैया मैदान की तरफ जा रहे हैं। कुछ के हाथों में किताबें कुछ बिना किताबों के। मन में जिज्ञासा हुई। बच्चे...

 भागलपुर में ट्वेंटी-20 के नाम पर सट्टा!
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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सुबह के साढ़े सात बजे हैं। भीखनपुर झुग्गी झोपड़ी के कुछ बच्चे स्कूल की तरफ तो कुछ मुंदीचक गढ़ैया मैदान की तरफ जा रहे हैं। कुछ के हाथों में किताबें कुछ बिना किताबों के। मन में जिज्ञासा हुई। बच्चे स्कूल के समय में गढ़ैया मैदान की तरफ बढ़ रहे हैं। आखिर माजरा है क्या। नजदीक जाने के बाद पता चला कि वहां टवेंटी-20 किक्रेट मैच होनेवाला है। देखते देखते दोनों टीमों के बीच मैच शुरू हुई। टीम में 11 से 16 आयुवर्ग के बच्चे हैं। देखनेवालों की भीड़ भी इकट्ठा होने लगी।ड्ढr ड्ढr दरअसल यह अलग तरह का टवेंटी-20 मैच था। असल में दोनों टीमों पर अलग अलग दो ‘श्रीमान’ ने सट्टा लगाया है। यानी यह सिर्फ क्रिकेट मैच नहीं बल्कि सट्टा का खेल है। और यह सिलसिला नया नहीं काफी समय से जारी है। बहरहाल आज मैच जीतने पर लगा है 1051 रुपए का सट्टा। वैसे हर रो का रट अलग-अलग होता है। इन बच्चों पर मैच जीतने के लिए सट्टेबाज का पूरा दबाव है। करीब ढ़ाई घंटे बाद मैच खत्म हुई। विजेता टीम पर सट्टा लगानेवालों की जेबें गर्म हुई। लेकिन जितनेवाले टीम के बच्चों के हिस्से में आया एकाध समोसे व थोड़ी सी झाल-मूढ़ी और हारनेवाली टीम के बच्चों को भूखे-प्यासे ही लौटना पड़ा। यह एकमात्र जगह नहीं है बल्कि शहर के कई इलाकों में भी बच्चों के क्रिकेट मैच के नाम पर सट्टा का खेल चलता है। सैंडिस कंपाउंड भी इसका एक स्थान है। इसके अलावा शहर के कई स्कूलों के मैदान में यह खेल होता है। सप्ताह में यह खेल तीन चार दिन जरूर होता है। बच्चों के नाम पर सट्टा का कारोबार फलफूल रहा है और धीर-धीर इसका नेटवर्क फैलता जा रहा है। प्रशासन इससे पूरी तरह से बेखबर है। सट्टा के इस खेल ने प्राइमरी एजुकेशन के नाम पर शासन की योजनाओं पर कई प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। जो तस्वीर उभर कर सामने आई है, इससे तमाम योजनाएं निर्थक सी लगती है। प्राइमरी शिक्षा मुहैया कराने के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं दिखता। बाहर के बच्चों को स्कूल तक लाने की जिम्मेदारी जिनपर है, वह भी बेखबर हैं। पुलिस प्रशासन द्वारा बच्चों को स्कूल लाने के लिए चलाए गए अभियान भी कब, कैसे और क्यों खत्म हो गया किसी तो पता नहीं । बच्चों के पिता मजदूरी और हॉटलों में काम करते हैं।

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