कोड़ा ही सबसे अच्छा दांव
तमाड़ उपचुनाव में मुख्यमंत्री शिबू सोरन की हार के बाद झारखंड फिर राजनीतिक अस्थिरता की चपेट में है। यूपीए आलाकमान ने स्पष्ट कर दिया है कि शिबू को गद्दी छोड़नी होगी। अब अगला मुख्यमंत्री कौन होगा इसे...
तमाड़ उपचुनाव में मुख्यमंत्री शिबू सोरन की हार के बाद झारखंड फिर राजनीतिक अस्थिरता की चपेट में है। यूपीए आलाकमान ने स्पष्ट कर दिया है कि शिबू को गद्दी छोड़नी होगी। अब अगला मुख्यमंत्री कौन होगा इसे लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। शिबू सोरन के इस्तीफे की स्थिति में भी झामुमो की ओर से वरिष्ठ विधायक चंपई सोरन का नाम आगे आया है, मगर यूपीए आलाकमान को यह मंजूर होगा या नहीं, यह देखना बाकी है। यूपीए की नजर में झारखंड की सत्ता के लिए चल रहे खेल से ज्यादा अहम दो महीने बाद होने जा रहे लोकसभा के चुनाव हैं। चुनावों में उसकी सफलता राज्य में उसकी मनमाफिक सरकार पर ही निर्भर करगी। गुरुाी के उपचुनाव हारने को दिल्ली के यूपीए खेमे में शिबू सरकार के कामकाज के प्रति जनता और सरकारी तंत्र की नाराजगी के रूप में देखा जा रहा है। ऐसे में झामुमो के किसी नेता या विधायक को कमान सौंपकर शिबू के हाथ में रिमोट थमाकर वह भाजपा और राजग को कोई लाभ उठाने मौका देने का जोखिम नहीं ले सकती। यूपीए चाहता है कि कोई आजमाया हुआ घोड़ा ही झारखंड की गद्दी संभाले और मधु कोड़ा इस कसौटी पर खर उतरते हैं। यही कारण है कि कांग्रेस के मुख्य रणनीतिकार अहमद पटेल हों या राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव, कोड़ा को कमान देने के पक्ष में हैं। 27 अगस्त 2008 को शिबू सोरन को गद्दी सौंपने के पहले कोड़ा 23 महीने तक सीएम रहे। इस दौरान उन्होंने सभी को साथ लेकर चलने की कोशिश की। सरकारी तंत्र भी कोड़ा के नेतृत्व में शिबू के मुकाबले ज्यादा सहा रहा। ताजा परिस्थितियों में भी एनोस एक्का, राजा पीटर, हरिनारायण राय, कमलेश सिंह, चंद्रप्रकाश चौधरी भी कोड़ा के ज्यादा निकट हैं। हालांकि पक्के तौर पर कुछ कहना जल्दबाजी होगी मगर यूपीए का पहला प्रयास यही होगा कि वह शिबू को कोड़ा के पक्ष में मनायें। यदि झामुमो नहीं मानता है तो राष्ट्रपति शासन को विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। वैसे सत्ता के इस खेल में ऊंट कब किस करवट बैठेगा यह बता पाने की स्थिति में न कांग्रेस है न राजद और न ही खुद शिबू सोरन।