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लिट्टे का अंत करीब, प्रभाकरण के पलायन की आशंका

श्रीलंका सेना की लिट्टे पर फतह करीब पहुंचने के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या अब श्रीलंका सेना तमिलों की मांगों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेगी या जीत के बाद निहत्थे तमिलों पर नया दमन चक्र शुरू होगा। यदि...

 लिट्टे का अंत करीब, प्रभाकरण के पलायन की आशंका
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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श्रीलंका सेना की लिट्टे पर फतह करीब पहुंचने के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या अब श्रीलंका सेना तमिलों की मांगों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेगी या जीत के बाद निहत्थे तमिलों पर नया दमन चक्र शुरू होगा। यदि गलतियों से सबक न लेकर श्रीलंका सरकार ने तमिलों की उपेक्षा जारी रखी तो फिर जातीय संघर्ष का नया दौर शुरू हो सकता है। एसे में पूर्व की गलतियों से बचते हुए भारत श्रीलंका सरकार को तमिलों के प्रति मानवीय रुख अपनाने के लिए प्रेरित कर रहा है। विदेश सचिव शिवशंकर मेनन की गत सप्ताहांत की श्रीलंका यात्रा का भी यही उद्देश्य था। उन्होंने श्रीलंका के राष्ट्रपति महिन्द्रा राजपक्षे और अन्य नेताओं से बात की और अनुरोध किया कि जातीय समस्या का राजनीतिक समाधान करने की दिशा में अब तेजी से काम किया जाना चाहिए। भारत ने हिंसा प्रभावित इलाकों के लोगों को राहत सामग्री भेजी है और आगे भी भेजने की योजना है। विदेश सचिव ने श्रीलंका के नेतृत्व से फिर कहा है कि सैन्य कार्रवाई में निर्दोष लोगों की जानें न जाएं। साथ ही 13वें संविधान संशोधन के तहत तमिलों को और अधिक अधिकार दिए जाएं और श्रीलंका के संविधान के दायर में समस्या का राजनीतिक समाधान हो। पूर्व राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंगा ने तमिलों को और अधिकार देने की बात की थी लेकिन मौजूदा सरकार ने इस दिशा में कुछ नहीं किया। यह सोचना गलत होगा कि लिट्टे के सफाये के साथ तमिलों की मांग भी खत्म हो गई, उनकी मांग बरकरार है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रोफेसर अनुराधा चिनॉय का कहना है कि प्रभाकरण के सामने पलायन या साइनाइड की गोली खाकर आत्महत्या करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा है। यहां तक कि प्रभाकरण से जुदा हो कर सरकार से मिले लिट्टे के दूसर बड़े नेता करुणा के प्रभाव वाले पूर्वी प्रांत में भी असंतोष बरकरार है। इन हालात में भारत के लिए जरूरी है कि वह श्रीलंका पर दबाव बनाए रखे।

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