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यह फिल्म कन्फ्यूजन की स्थिति बयां करती है: बेला

बेला नेगी नैनीताल से हैं, इसलिए उत्तराखंड की पृष्ठभूमि पर फिल्म भी बनायी और वहीं शूट भी की। फिल्म का शीर्षक कन्फ्यूजन को इंडिकेट करता है। यह कन्फ्यूजन एक व्यक्ति का भी है और एक राज्य का भी। पर बेला...

यह फिल्म कन्फ्यूजन की स्थिति बयां करती है: बेला
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 30 Oct 2010 05:29 PM
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बेला नेगी नैनीताल से हैं, इसलिए उत्तराखंड की पृष्ठभूमि पर फिल्म भी बनायी और वहीं शूट भी की। फिल्म का शीर्षक कन्फ्यूजन को इंडिकेट करता है। यह कन्फ्यूजन एक व्यक्ति का भी है और एक राज्य का भी। पर बेला की फिल्म कोई पॉलिटिकल स्टेटमेंट नहीं। फिल्म एक साल से डिब्बा बंद है। अब जाकर सीमित रिलीज हुई है। निर्माता की महिमा रही कि फिल्म किसी अंतर्राष्ट्रीय समारोह में भी नहीं जा सकी। बेला नेगी से जब बात हुई तो वह मुम्बई के जाम में फंसी हुई थीं, ठीक अपनी इस फिल्म की तरह।

फिल्म का शीर्षक ‘दाएं या बाएं’ ही क्यों?

इट इंडिकेट्स कन्फ्यूजन। यह शीर्षक उत्तराखंड पर फिट बैठता है। नयी स्टेट है। फिल्म में दीपक डोबरियाल के किरदार की तरह यह स्टेट भी समझ नहीं पा रही है कि उसे क्या करना चाहिए। वह किधर जाये। 

क्या इसे पॉलिटिकल स्टेटमेंट समझा जाये ?

इसे ऐसा समझ सकते हैं, पर फिल्म पॉलिटिकल नहीं है। सोशल कांटैक्स्ट है। मैंने यही चाहा है कि मैं कॉमेडी या मनोरंजन के सहारे अपनी बात कह सकूं।

इसका मतलब यह हुआ कि फिल्म की कहानी ह्यूमन एंगल रखती है?

हां बिल्कुल। निश्चित रूप से फिल्म सर्च फॉर डिग्निटी है। फिल्म का फ्लेवर पहाड़ी है। पर अपील युनिवर्सल है।

फिल्म की पृष्ठभूमि और तमाम कलाकार पहाड़ से हैं। तब भाषा कुमाऊंनी या गढ़वाली क्यों नहीं?

यह हिन्दी में है। मैं चाहती थी कि मेरी फिल्म सभी देखें। यह खास राज्य या भाषा तक सीमित न रह जाये इसलिए।

यह फिल्म एक साल से डिब्बा बंद है। क्या किसी फेस्टिवल आदि में नहीं ले गयीं?

हां आपका यह कहना ठीक है कि यह फिल्म एक साल से बनी पड़ी है, पर फिल्म को किसी फेस्टिवल में ले जाना निर्माता के हाथ में होता है। पिछले साल यह कांस में जा सकती थी, पर तब तक फिल्म पूरी नहीं हुई थी। बाद में निर्माता की इस फिल्म से दिलचस्पी कम हो गयी। अब यह फिल्म रिलीज भी सीमित प्रिंट्स में हो रही है। इसका खास प्रचार भी नहीं किया जा रहा। लेकिन मैं इसके लिए क्या कर सकती हूं ?

दीपक डोबरियाल कैसे अभिनेता हैं?

बहुत बढ़िया। आम लोगों में चाहे इतने जाने-पहचाने न हों, पर इस फील्ड के लोग उनकी बेहद इज्जत करते हैं। वह टिपिकल हीरो नहीं हैं।

आगे क्या इरादा है?

इस फिल्म के बनने के बाद मैंने दो स्क्रिप्ट पर काम किया है।

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