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बहुत हुआ अंधकार, अब तो..

अंधकार व्यापक है, रोशनी की अपेक्षा, क्योंकि अंधेरा अधिक काल तक रहता है। माँ के गर्भ में भी अंधेरा है, जहाँ से हमारे शरीर की शुरुआत हुई और जब शरीर से प्राणपखेरू निकलते हैं तो पुन: जीव अंधकार में डूबता...

बहुत हुआ अंधकार, अब तो..
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 29 Oct 2010 09:58 PM
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अंधकार व्यापक है, रोशनी की अपेक्षा, क्योंकि अंधेरा अधिक काल तक रहता है। माँ के गर्भ में भी अंधेरा है, जहाँ से हमारे शरीर की शुरुआत हुई और जब शरीर से प्राणपखेरू निकलते हैं तो पुन: जीव अंधकार में डूबता है। रोशनी बहुत थोड़े समय को होती है और अंधकार बहुत लम्बे समय का होता है।

अभी भी आपके जीवन में आपकी खुली आंखों की अपेक्षा आंखे बंद अधिक समय तक रहती हैं। वह कैसे? नींद में। जैसे आज की आपकी आयु 40 साल की है, अब आप बताइए कि 40 साल के काल में आप कितने घंटे में सोए? बहुत लम्बा समय नींद में गया। सच तो यह है कि 40 साल के जीवन काल में कम से कम 16 साल से 17 साल नींद में गुजर चुके हैं।

हाँ, अगर आप नियमित प्राणायाम, आसनों का अभ्यास करें और जैसे-जैसे आपका प्राणायाम, आसन का अभ्यास गहरा होने लग जाए, वैसे-वैसे आपके शरीर को प्रकृति से ऊर्जा लेने की और ऊर्जा को स्टोर करने की क्षमता बढ़ने लग जाती है। जिसके परिणामस्वरूप आपकी नींद का औसत कम होने लग जाता है।

अंधकार पहले भी है, बाद में भी है, जन्म से पहले भी है और अंधकार मृत्यु की घड़ी से फिर शुरु हो जाता है।  मानव मस्तिष्क ने इस अंधकार को दूर भगाने के लिये पहले अग्नि को खोजा, फिर नन्हें मिट्टी के दीये बनाकर गहरी, काली अंधियारी रातों को भी उजला कर लिया, फिर जैसे बिजली का और बल्ब का आविष्कार हुआ तो अब बल्ब जलाते हैं।

ठीक इसी तरह गुरु भी अपने शिष्यों के जीवन में अपने ज्ञान, करुणा व प्रेम के नन्हें-नन्हें दीयों को बड़े धैयपूर्वक जगा कर उनके जीवन को प्रकाशवान करता है। ज्ञान, ध्यान व स्नेह के दीयों की दीपावली नित्य ही सद्शिष्यों के जीवन को सौंदर्यवान बनाती है। जो बाहरी दीयों की ख़त्म हो जाने वाली रोशनी की जगह चिर-स्थाई अन्तर्जगत की दीपावली में हमारा प्रवेश कराती है। साधक के लिए ये बाहरी दिये संदेश हैं भीतर की दीपावली की ओर अग्रसर होने का।

अंधकार से हमें प्रकाश की ओर अग्रसर होना है। परमात्मा प्रकाश स्वरूप है। लेकिन इस प्रकाश को प्रस्फुटित होने के लिए एक द्वार तो चाहिए। जैसे बल्ब, टय़ूब ये सब किसके कारण जल रहे हैं? जो पीछे से विद्युत आ रही है, ये उसकी वजह से जलते हैं। अब जैसे पीछे से विद्युत आ रही हो, और बल्ब न हो तो रोशनी कैसे होगी? 

बिजली को रोशनी में बदलने के लिए एक माध्यम तो चाहिए, चाहे वह बल्ब हो, या टय़ूब हो। इसी तरह से ज्ञानरूप परमात्मा है, लेकिन इस ज्ञानरूप परमात्मा को भी अपना ज्ञानरूप प्रकाश देने के लिए, यह शरीर रूपी गुरु की आवश्यकता है। यह जो मनुष्य का शरीर है, इस शरीर रूपी यंत्र की आवश्यकता होती है।

ज्ञान बिजली की तरह हो गया। परमात्मा निगरुण है, निराकार है, सत्यस्वरूप है, आनंद स्वरूप है, व्यापक भी है, चेतना भी है, लेकिन हमको इसका प्रकाश कब मिलता है? जब गुरुरूप दीया बीच में आ जाए। जो लोग यह कहते हैं कि हमें व्यक्तिरूप गुरु की ज़रूरत नहीं है, वे बहुत बड़ी भूल में हैं। बहुत से ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि हम व्यक्तिरूप गुरु के पास क्यों जाएँ, जब हमारे पास सारे ग्रंथ हैं, हम इनको पढ़कर ज्ञान पा लेंगे। हम किसी संत के पास क्यों जाएँ?

परमात्मा ज्ञानरूप है, यह सच बात है। लेकिन इस ज्ञानरूप बिजली का प्रकाश अगर देखना है तो गुरु गुरुरूप दीया बीच में तुम्हें चाहिए ही चाहिए, इसीलिए कहा-
राम तजूं, पै गुरु न बिसारूं
गुरु के सम हरि को न निहारूं

अगर दोनों में से एक को चुनना ही पड़ जाए तो मैं गुरु को चुनूंगा क्योंकि गुरु के द्वारा ईश्वर को समझ लूंगा। सत्य तो गूंगा है, सत्य को जु़बान तो गुरु ही देता है। कैसे? सारे ग्रंथ, सारे शब्द, उस बांसुरी की तरह से हैं। पुस्तकों में लिखे शब्द उस बांसुरी की तरह ही हैं। तुमने ज्ञान की किताब तो खरीद ली, पर इस भ्रम में मत रहना कि उसमें से ज्ञान का राग भी निकलने लग जाएगा। ज्ञान का राग तो गुरु के मुखारविन्द से ही निकले तो असर करता है।

तुम सबके लिए मैं हृदय से मंगल कामना करती हूँ। तुम्हारा अंधकार दूर हो, तुम्हारा तमस दूर हो, तुम्हारा साधना का मार्ग प्रशस्त हो, तुम्हारे संकल्प बलवती हों, और तुम बंधनों से मुक्त हो जीवन के अमृत लाभ को ले सको। यह रोशनी जो अभी बाहर है, यह तो कल तक नहीं थी, आज है और फिर खत्म हो जाएगी। सुबह में भुवन भास्कर सूर्य देवता जब उदय होंगे तो इनकी रोशनी की चमक क्या रह जाएगी सूर्य के सामने! यह अभी इतनी प्यारी जो लग रही हैं रोशनियां, छोटी-छोटी टिमटिमाती पीली लाल नीली, सूरज के सामने फीकी हो जाएंगी।

तुम्हारे ये देह इन्द्रियों के छोटे-छोटे सुख, तुम्हारे अभिमान और तुम्हारे मन की ममता के सुख इन जलती हुई छोटी-छोटी बत्तियों की तरह ही हैं। तुम्हारे अन्दर आनन्द का जब महासूर्य उदय हो सकता है, तो इन बुझ जाने वाली छोटी-छोटी चमकदार संसार की सुख की घड़ियों के पीछे अपने जीवन को अंधकार से क्यों भरना! जीवन को उज्जवल बनाओ। बहुत भटक लिए अंधकार में, अब तो आँखें खोलो। दीपावली की सभी को मंगल कामनाएँ!

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