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महावीर ने दिया विशुद्धि का धर्म

महावीर जी ने बताया है कि धर्म मानसिक विशुद्घि में निवास करता है। शुद्घि उसकी होती है जो सरल है। सरलता का अर्थ है कथनी और करनी की समानता। सरलता वह प्रकाश पुंज है जिसे हम चारो ओर से देख सकते हैं। यह...

महावीर ने दिया विशुद्धि का धर्म
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 29 Oct 2010 09:40 PM
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महावीर जी ने बताया है कि धर्म मानसिक विशुद्घि में निवास करता है। शुद्घि उसकी होती है जो सरल है। सरलता का अर्थ है कथनी और करनी की समानता। सरलता वह प्रकाश पुंज है जिसे हम चारो ओर से देख सकते हैं। यह चित्त शुद्घि का अनन्य उपाय है। जब तक मन पर अज्ञान, संदेह, माया और स्वार्थ का आवरण रहता है। तब तक वह सरल नही होता है। इन दोषों को ही दूर करने पर ही व्यक्ति का मन खुली पोथी जैसा हो सकता है।

महावीर विलासिता को समाप्त करने पर जोर देते हैं। उन्होंने कहा है कि विलासिता सर्वथा अनावश्यक है। इसका पूर्ण निरोध करो, संयम करो। यह बात कुछ कटु लग सकती है किंतु है बहुत सच्ची। महावीर ने संयम का एक अभियान शुरू किया था। उस समय जब आज जितनी जनसंख्या नहीं थी तब भी उन्होंने पांच लाख व्यक्तियों का एक समाज बनाया। महावीर ने ऐसे समाज को हमारे सामने प्रस्तुत किया जो आज भी एक उदाहरण है।

महावीर ने एक सूत्र दिया है कि श्रम और अर्थ के बीच में संयम को जोड़ो। श्रम का भी शोषण न हो, आजीविका का भी विच्छेद नहीं हो। कल्पना करें एक आदमी समर्थ है। वह ज्यादा काम कर लेता है। मगर दूसरा आदमी जो कमजोर है, वह उतना काम नहीं कर पाता। किंतु रोटी दोनों को चाहिए। यदि श्रम के आधार पर ही उन्हें मूल्य दिया जाएगा तो उसका शोषण हो जाएगा। 

जो प्राथमिक आवश्यकताएं हैं उनकी पूर्ति तो होनी ही चाहिए। महावीर नें बड़े महत्वपूर्ण शब्द का चुनाव किया- भक्त पान विच्छेद यानी रोटी पानी की कमी न हो। महावीर का सारा सिद्घांत विसर्जन पर चलता है। अर्जन की कोई पद्घति महावीर नहीं बताते। वे विसर्जन से अपनी बात शुरू करते हैं।

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