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किशोर बाइकर्स और अभिभावक

मैं हैरान-परेशान हूं कि आखिर अभिभावक बारह-चौदह साल के बच्चों को स्कूटर-बाइक आदि देकर भीड़ भरी सड़कों पर कैसे धकेल देते हैं। दरअसल वे दूसरों को दिखाना चाहते हैं कि मेरे नाबालिग बच्चों भी कितनी तेज...

किशोर बाइकर्स और अभिभावक
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 29 Oct 2010 01:15 AM
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मैं हैरान-परेशान हूं कि आखिर अभिभावक बारह-चौदह साल के बच्चों को स्कूटर-बाइक आदि देकर भीड़ भरी सड़कों पर कैसे धकेल देते हैं। दरअसल वे दूसरों को दिखाना चाहते हैं कि मेरे नाबालिग बच्चों भी कितनी तेज वाहन चला सकते हैं, लेकिन ऐसा करते हुए वे कई जिंदगियों को दांव पर लगा देते हैं, इसमें उनके बच्चों भी शामिल हैं। अभिभावकों को इस बात की फिक्र ही नहीं। ऐसा भी देखा गया है कि अभिभावक स्वयं अपने नाबालिग बच्चों को भीड़-भरी गलियों में स्कूटर चलाना सिखा रहे होते हैं। ऐसा दृश्य देखकर मेरा दिल दहल जाता है। अत: सरकार से अनुरोध है नाबालिग बच्चों से ऐसी गलती कराने वाले अभिभावकों को कठोर दंड दिया जाए, ताकि ऐसे निर्दयी अभिभावकों को सबक मिले।
रोशन लाल बाली, 655/5, महरौली, नई दिल्ली

जरूरी है सोच में बदलाव
पिछले दिनों विजय विद्रोही का लेख ‘आंगन से निकली, मार दिया मैदान’ पढ़ा। उस लेख में कॉमनवेल्थ गेम्स में लड़कियों द्वारा मेडल जीतने की उपयोगिता को तो दर्शाया ही गया है, यह भी बताया गया कि किस तरह गरीबी में पली-बढ़ी लड़कियों ने कमाल किया। वाकई यह बात एकदम सच है कि अगर किसी के पास कुछ करने का जज्बा है, तो वह अपना लक्ष्य पा ही लेता है, लेकिन जिस तरह से राजस्थान के पिछड़े गांव में ब्याही गई कृष्णा का उसके कोच और पति ने उसका हौसला बढ़ाया, उसकी सास तक ने कहा कि बच्चा मैं संभाल लूंगी, तू जा देश का नाम रोशन कर, अद्वितीय है। काश! कृष्णा की जैसी सास हर घर में हो।
लवली सिंह, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली

कानून तोड़ते उसके रखवाले
नियम लोगों की सुविधा के लिए बनाए जाते हैं। ये समाज में नैतिकता बनाए रखने में भी सहायक होते हैं। जब नियमों के पालन की बात आती है, तो सबसे पहले उनका उन्हें पालन करना चाहिए, जो इसे लागू करते हैं। पहले पुलिस वालों की बात करें। थाने पर लिखा होता है कि यहां कानून का पालन करने वालों का सम्मान होता है। अब पुलिसवालों को ही लीजिए। वे गाड़ियों पर बिना हेलमेट लगाए घूमते रहते हैं, लेकिन कोई व्यक्ति बिना हेलमेट पहने गाड़ी पर जा रहा हो, तो तत्काल उसका चालान कर देते हैं। इस तरह के मामले हर सरकारी विभाग में देखे जा सकते हैं। इसलिए प्रशासन को चाहिए पहले सख्ती इन ‘रक्षकों’ पर करे।  
दिलीप गुप्ता, छोटी वमनपुरी, बरेली

शर्मसार हुआ पेशा
दशहरे के दिन मुंबई में मां दुर्गा के पूजा मंडप में बेहोश हुई युवती इलाज के लिए अस्पताल पहुंची, जहां के एक डॉक्टर ने आईसीयू में उससे बलात्कार किया। डॉक्टर ने अपनी इस हरकत से इस सम्मानित पेशे के मुंह पर कालिख पोत दी है। क्या धरती के भगवान ऐसे होते हैं? एक अन्य घटना में जानलेवा बीमारी से पीड़ित महिला के साथ मालवीय नगर, दिल्ली स्थित एक अस्पताल के डॉक्टर ने छेड़खानी की। बाद में उस डॉक्टर को थाने में जमानत पर रिहा किया गया। वैसे तो महिलाओं के साथ छेड़खानी और बलात्कार की घटनाएं अक्सर सामने आती हैं, पर इन कुकृत्यों में डॉक्टरों का शामिल होना हमारे सभ्य समाज के लिए बहुत ही चिंता का विषय है। इस पर डॉक्टरों को ही ठोस कदम उठाना चाहिए।
सोम दत्त चहल, ललिता पार्क, लक्ष्मी नगर, दिल्ली

कब पढ़ाओगे गुरुजी
विश्व में दिल्ली विश्वविद्यालय अपनी एक विशेष पहचान रखता है। लेकिन इसके अधिकतर शिक्षकों को न जाने क्या हो गया है या फिर वे भूल गए हैं कि बच्चों के प्रति माता-पिता से अधिक जिम्मेदारी उनकी है। जिम्मेदार नागरिक बनाने में अध्यापकों का सहयोग अति आवश्यक है। इसकी महत्ता सरकार समझती है। तभी तो सबसे अच्छी तनख्वाह, सबसे अच्छी सुविधाएं इन्हें दी जाती हैं। पर इसके बदले में आप विद्यार्थियों को क्या दे रहे हैं? गुटबाजी, आपसी मनमुटाव एवं स्वार्थ। प्रशासन के विरुद्ध शिक्षण को मोहरा बनाना बच्चों का शोषण नहीं, तो और क्या है? आपसे अनुरोध है कि आप लोग अपना निजी स्वार्थ छोड़कर बच्चों के बारे में भी कुछ सोचें।
राजेन्द्र प्रसाद शर्मा, 4755, फाटक रशीद खां, बल्लीमारान, दिल्ली

कहां खेलें, कहां टहलें
राजधानी दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स का प्रभावशाली असर रहा। देश के खिलाड़ियों ने देश का मान बहुत बढ़ाया, जिसके लिए हम उन्हें मुबारकवाद देते हैं और आशा करते हैं कि देश में खेलों को बढ़ावा देने के लिए और भी अच्छी नीतियां बनाई जाएंगी। मगर सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि नगरों में अब ऐसे स्थान ही नहीं बचे हैं, जहां खिलाड़ी अपना अभ्यास कर सकें। दिल्ली का ही हाल देखिए कि आज हॉकी, टेनिस, फुटबाल जैसे खेलों के लिए तो कोई सुलभ स्थान है ही नहीं।  ऐसे में कैसे और कहां अभ्यास करेंगे गुदड़ी के लाल।
बृज भूषण शरण, जयपुर एस्टेट, ईस्ट निजामुद्दीन, नई दिल्ली

असली खिलाड़ी
खेल तो खेल गए खिलाड़ी
कीमत चुकाएंगे अब अनाड़ी
जांच चलेगी अगाड़ी लेकिन
‘वो’ बच निकलेंगे पिछाड़ी।
वीरेन कल्याण, विश्वास नगर, शाहदरा, दिल्ली

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