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तो अमेरिका को सब पता था

डेविड हेडली के मामले में नए-नए कुतूहल पैदा हो रहे हैं। जैसे-जैसे नए पेच खुल रहे हैं, वैसे-वैसे मुझे लग रहा है, मानो हम वह अमेरिकी टीवी शो देख रहे हैं, जहां हर कड़ी में कथावस्तु की काल्पनिक जटिलता उभर...

तो अमेरिका को सब पता था
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 24 Oct 2010 11:14 PM
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डेविड हेडली के मामले में नए-नए कुतूहल पैदा हो रहे हैं। जैसे-जैसे नए पेच खुल रहे हैं, वैसे-वैसे मुझे लग रहा है, मानो हम वह अमेरिकी टीवी शो देख रहे हैं, जहां हर कड़ी में कथावस्तु की काल्पनिक जटिलता उभर आती है।

जब यह कहानी पहली बार उजागर हुई, तो (जिस तरह किसी टीवी शो में बताते हैं कि पिछली कड़ी में क्या हुआ था, उसी तरह मुझे यह कहने की इच्छा होती है कि ‘तब 26/11 के दिन’) हमें बताया गया कि अमेरिकियों ने पाकिस्तानी मूल के एक ऐसे अमेरिकी नागरिक को पकड़ा है, जिसके आतंकवादी समूहों से संबंध रहे हैं।

उसके बाद यह बताया गया कि डेविड हेडली नाम के इस व्यक्ति ने भारत का दौरा किया था और बहुत संभव है कि वह 26/11 के हमलावरों के अग्रिम दल का हिस्सा रहा हो। स्वाभाविक तौर पर हमारी जांच एजेंसियां उससे पूछताछ करना चाहती थीं। लेकिन कई महीनों तक अमेरिकियों ने हमें हेडली तक पहुंचने नहीं दिया।

उसके बाद अमेरिकी मीडिया सक्रिय हुआ। उनकी खोज में यह पता चला कि हेडली को अमेरिका में नशीली दवाएं रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, पर 9/11 के हमले के बाद जेल से छोड़ दिया गया और फिर उसे नए अमेरिकी पासपोर्ट के आधार पर अमेरिका और पाकिस्तान के बीच खुली यात्रा की छूट दे दी गई।

अमेरिकी पत्रकारों ने अदालती दस्तावेज के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि हेडली को अमेरिकी अधिकारियों ने पाकिस्तान एक अंडरकवर एजेंट या कम से कम एक जासूस के तौर पर भेजा था। एजेंट के तौर पर काम करने के एवज में उसकी सजा को माफ कर दिया गया।

इससे कई तरह के संदेह पैदा होते हैं। गैर-सरकारी तौर पर अमेरिकी अधिकारी यह मानने को तैयार थे कि हेडली ड्र्ग इनफोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन (डीईए) का एजेंट था। लेकिन उन्होंने इस बात पर जरूर जोर दिया कि उसके सीआईए या आतंकवाद से लड़ने वाली किसी एजेंसी से कोई संबंध नहीं थे। यह इनकार न तो भारतीय खुफिया एजेंसियों के गले उतर रहे थे, और न ही अमेरिकी मीडिया के एक हिस्से के। 

व्यापक तौर पर यह माना जा रहा था कि 9/11 के बाद मुखबिरों की तलाश में सभी एजेंसियों ने अपने संसाधनों की एक-दूसरे से हिस्सेदारी की। इस बात की संभावना है कि ड्रग इनफोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन ने डेविड हेडली को किसी आतंकवाद विरोधी एजेंसी या सीआईए को सौंप दिया।

एक बार आप इस बात को मान लीजिए, तो हेडली की बहुत सारी कहानी समझ में आने लगती है। उसे अमेरिका, भारत और पाकिस्तान के बीच मुक्त आवागमन की छूट क्यों दी गई? निश्चित तौर पर अमेरिकी हवाई अड्डों पर काम करने वाले अधिकारी पाकिस्तानी मूल के किसी व्यक्ति से गहराई से पूछताछ करते हैं। उन्होंने जरूर इस बात पर हैरानी जताई होगी कि एक सजायाफ्ता नशे का तस्कर क्यों नशे के गढ़ पाकिस्तान की बार-बार यात्रा कर रहा है।

भारतीय खुफिया एजेंसियों का संदेह है कि हेडली एक अमेरिकी एजेंट था, जो सीआईए या उसके किसी सहयोगी संगठन के कहने पर आतंकी नेटवर्क में घुस गया था। उनका कहना है कि अमेरिका ने सामान्य तौर पर यह जानकारी भी दी थी कि मुंबई पर आतंकी हमला होने की संभावना है। इनमें से कुछ जानकारियां संभवत: हेडली के माध्यम से आई थीं।

ऐसा लगता है कि अमेरिका खुफियागीरी के पारंपरिक धर्मसंकट में फंस गया। क्या उसने भारत के खिलाफ साजिश से जुड़ी सारी जानकारियां दे दी थीं और इस तरह अपने एजेंट की गोपनीयता को भंग कर दिया था? या फिर वह हेडली को बचाने के लिए खामोश रहा?

लगता है आखिरकार उसने मध्यमार्ग अपनाया। उसने पर्याप्त सूचनाएं देते हुए चेतावनी देने का दिखावा तो कर दिया, पर उसने हेडली के बारे में ऐसा कुछ विशेष नहीं बताया, जिससे हेडली पर स्त्रोत के रूप में संदेह जाता। उसके बाद जो कुछ हुआ वह विवाद का विषय है।

भारतीय खुफिया एजेंसियों का अर्ध-सरकारी विचार यह है कि हेडली संभवत: बदमाशी पर उतर आया और जिन आतंकी संगठनों में उसे घुसपैठ करने को कहा गया था, उनसे वह सहानुभूति रखने लगा, उसके बाद उसे अमेरिकियों ने पकड़ लिया। खुफिया एजेंसियों के एक छोटे हिस्से का यह भी मानना है कि हेडली गिरफ्तार किए जाने तक एक अमेरिकी एजेंट रहा।

अमेरिकी अधिकारियों ने उसे तब पकड़ा, जब उन्हें लगने लगा कि  उसके राज का पर्दाफाश होने वाला है। इससे अलग एक अमेरिकी राय यह भी कहती है कि वह नशीली दवाओं का मुखबिर था और वह अपनी मर्जी से आतंकवादियों के नेटवर्क से जुड़ गया, बाद में अमेरिकी जांचकर्ताओं ने उसे फंसाया। कई महीनों तक यह कयास चलते रहे और अमेरिका ने भारत को हेडली से पूछताछ नहीं करने दी।

भारतीय खुफिया एजेंसियों का मानना है कि इस देरी के कई कारण थे। अमेरिकी हेडली को यह पाठ पढ़ा रहे थे कि उसे क्या बताना और क्या छुपाना है। इस दौरान वे अपने दूसरे खुफिया जाल को समेटने में भी लगे थे, जो हेडली के बयानों या अन्य बातों से उजागर हो सकते थे। हाल के हफ्तों में दो नई घटनाओं ने इस कहानी में दिलचस्प मोड़ पैदा किया है।

हेडली से पूछताछ करने वाले भारतीय अधिकारियों (जिन्हें आखिरकार अमेरिकियों ने पूछताछ की इजाजत दे दी) की रपट ब्रिटेन के अखबार द गार्जियन को लीक कर दी गई। रपट का कहना है कि 26/11 की घटना शुरू से आखिर तक आईएसआई की कार्रवाई थी।

अगर हेडली सच बता रहा है तो इससे महत्वपूर्ण सवाल खड़े होते हैं। अगर पाकिस्तान की अपनी खुफिया एजेंसी भारत पर हमले की योजना बनाती है तो वह भारत से शांति कायम करने में कितना गंभीर है? अगर अमेरिकी हेडली के चलते यह जानते हैं कि आईएसआई आतंकवाद में किस हद तक शामिल है तो वे अपने आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में किस हद तक उस एजेंसी से सहयोग करते रह सकते हैं?

फिर हिलेरी क्लिंटन ने जैसा शुक्रवार को पाकिस्तान को आतंकवाद विरोध लड़ाई में मजबूत सहयोगी कहा, वैसा वे कैसे कह सकती हैं? अगर वे जानते हैं कि भारत में आतंकवाद पाकिस्तान से सरकारी स्तर पर चलाया जा रहा है, तो वे कैसे हमें उससे अमन के लिए कह सकते हैं? क्या हम उन्हें ओसामा बिन लादेन को चूमने और उससे समझौता करने का सुझाव दे सकते हैं?

हेडली मामले में ऐसा ही एक प्रसंग उसकी दो पूर्व पत्नियों की तरफ से अमेरिकी सरकार को सचेत करने का भी सामने आया है। उस मामले में भी अमेरिकी अधिकारियों ने कुछ नहीं किया, बल्कि एक पत्नी को तो डांट कर भगा दिया। आतंकवाद के इतने गंभीर आरोप पर उदासीनता का एक ही मतलब निकलता है कि उन्हें पहले से सब कुछ पता था।

लेखक एचटी मीडिया के संपादकीय सलाहकार हैं।

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