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गरीब मुल्कों के 50 करोड़ किसान भुखमरी की कगार पर

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक पर्यावरण क्षरण, .बढ़ते शहरीकरण, विदेशी निवेशकों की ओर से बडे़ पैमाने पर भूमि की खरीद और जैव ईंधन के बढ़ते इस्तेमाल से कृषि भूमि पर अत्याधिक दबाव पड़ रहा है जिससे दुनिया के...

गरीब मुल्कों के 50 करोड़ किसान भुखमरी की कगार पर
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 23 Oct 2010 04:43 PM
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संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक पर्यावरण क्षरण, .बढ़ते शहरीकरण, विदेशी निवेशकों की ओर से बडे़ पैमाने पर भूमि की खरीद और जैव ईंधन के बढ़ते इस्तेमाल से कृषि भूमि पर अत्याधिक दबाव पड़ रहा है जिससे दुनिया के तकरीबन 50 करोड़ छोटे किसान भुखमरी की कगार पर पहुंच चुके हैं।

संयुक्त राष्ट्र के भोजन का अधिकार अभियान से जुडे़ अधिकारी ओलिवर डे शटर की ओर से गरीब मुल्कों के किसानों की स्थिति बंया करने वाली एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है। इसमें शटर ने कहा है कि इन सारे कारणों ने मिलकर किसानों के लिए एक ऐसा काकटेल तैयार कर दिया है जो बेहद विस्फोटक है।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि गरीब मुल्कों में छोटे किसानों की जमीन साल दर साल घट रही है। उन्हें ऐसी जमीन पर खेती के लिए मजबूर होना पड़ रहा है जो कम उपजाऊ है या फिर जहां सिंचाई की सुविधा मौजूद नहीं है। यह सीधे तौर पर ग्रामीण आबादी के भोजन के अधिकार के लिए बडा़ खतरा है।

शटर के मुताबिक हर साल तकरीबन तीन करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि पर्यावरण क्षरण, औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण खत्म हो जाती है। इन सबसे ज्यादा एक तिहाई कृषि भूमि अनाज उपजाने की बजाए जैव ईंधन की खेती के लिए इस्तेमाल कर ली जाती है। इस हालत में वह छोटे किसान जो अपनी जीविका के लिए भूमि और जल संसाधनों पर निर्भर है बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं।

वर्ष 2008 से खाद्यान्नों की कीमतो में आई तेजी के बाद से कृषि भूमि का अन्य कार्यों के लिए इस्तेमाल बढ़ गया है। खास तौर पर चीन, दक्षिण कोरिया और खाडी़ के अमीर देश खाद्यान्न संकट से बचाव के लिए दक्षिण अफ्रीका जैसे गरीब मुल्कों में बडे़ पैमाने पर कृषि भूमि खरीदने लगे हैं। अफ्रीका में भूमि के मालिकाना हक के नियम बेहद कमजोर होने के कारण गरीब किसान विदेशियों को जमीन खरीदने से रोक नहीं पाते।

रिपोर्ट में शटर ने कहा है कि छोटे किसानों को इन मुसीबतों से बचाने के लिए गरीब मुल्कों की सरकारों को अपने यहां भूमि के अधिकार के नियम ऐसे बनाने चाहिए जिससे विदेशी निवेशक जल्दी इस पर हाथ नहीं रख सकें। इसके लिए भूमि पर व्यक्तिगत अधिकार की बजाए सामुदायिक अधिकार के नियम होने चाहिए। इसके अलावा भूमि के असमान वितरण को संतुलित बनाने के लिए इसके पुनर्वितरण की व्यवस्था भी सरकार की ओर से होनी चाहिए।

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